Sunday 15 July, 2012

वरुणा के लिए समिति बना कर पैकेज दे सरकार




सेवापुरी। वरुणा की अविरलता और निर्मलता के लिए संघर्षरत साधु-संतों और ग्रामीणों ने शुक्रवार को भी आधा दर्जन गांवों में पदयात्रा कर ग्रामीणों को लामबंद करने का प्रयास किया। इसके बाद खरगूपुर स्थित प्राचीन शिवमंदिर परिसर में प्रतीकात्मक कुंभकर्णी प्रशासन को ढोल, नगाड़ा बजा कर जगाने का प्रयास किया। कुंभकर्ण का अभिनय मंदिर के महंत पं. दीनानाथ मिश्र ने किया।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत साधु-संतों और ग्रामीणों ने हाथी, बैजलपुर, बसवरिया समेत कुल आधा दर्जन गांवों में पदयात्रा की। शाम पांच बजे खरगपुर शिवमंदिर के परिसर में वरुणा की निर्मलता के लिए शासन और प्रशासन की ओर से कार्रवाई नहीं किए जाने पर रोष जताया। कहा कि लंबे समय से संघर्ष चल रहा है लेकिन प्रशासन की कुंभकर्णी निद्रा नहीं टूट रही है। वरुणा नदी की सफाई, नदी क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने और नदी के सुंदरीकरण के लिए समिति बना कर पैकेज देने की मांग सरकार से की। इस मौके पर वरुणा मुक्ति संघर्ष अभियानम के संयोजक राधेश्याम सिंह उर्फ लल्लू बाबा, दया बाबा, अध्यक्ष महेंद्र सिंह चंदेल, प्रेमनारायण, गुलाब सिंह, शिवशक्ति युवा जनसमूह के अध्यक्ष सुखदेव मिश्र शनि, चंद्रशेखर मिश्र आजाद, दीपक तिवारी, मुखई पाल, उदयशंकर सिंह, चंद्रिका, देवेंद्र मिश्र, ग्राम प्रधान मनबास पटेल, जटाशंकर सिंह, विकास मिश्र, भरत मिश्र, रविशंकर मिश्र आदि थे। 14 जुलाई को आदि शक्ति श्री देवी मंदिर कुंडरिया के परिसर में महिलाएं देवी गीत और पचरा गाकर देवी से वरुणा मुक्ति की कामना करेंगी।

Monday 9 July, 2012

गंगा अभियान: असि व वरुणा बचाने को आगे आए काशी

वाराणसी। विकास की अंधी दौड़ में नदियों की चिंता किसी को नहीं हैं। गंगा की ही तरह वरुणा देव नदी है। इसकी रक्षा बेहद जरूरी है वरना असि की तरह यह भी विलुप्त हो जाएगी। गंगा सेवा अभियानम ने नदियों की रक्षा का संकल्प ले रखा है। गंगा से इसकी शुरुआत की गई है। जिस दिन गंगा अविरल हो जाएगी, वरुणा की भी दशा सुधर जाएगी। इसी के साथ गंगा-वरुणा से जुड़ी अन्य सहायक नदियों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।

यह विचार हैं जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के। वह सोमवार को श्रीविद्यामठ में गंगा पर बात कर रहे थे। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि असि जैसी पौराणिक महत्व की नदी, आज नाले के रूप में हमारे सामने है। इसकी जमीन पर बड़ी-बड़ी कालोनियां खड़ी हो गईं। सवाल यह कि इसकी जमीन बेची किसने और उन्हें जमीन बेचने की अनुमति किसने दी। इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। वरुणा के साथ भी यही हो रहा है। एक तरफ वरुणा नाला बन सिमटती-सिकुड़ती जा रही है तो इसकी जमीन पर कब्जे होते जा रहे हैं। असि नदी से सबक लेते हुए हमें नदियों की रक्षा के प्रति जागृत होना होगा। शंकराचार्य ने कहा कि देश की कमोवेश सभी नदियां असि नदी की राह पर हैं। बड़े-बड़े नालों की भरमार और बेहिसाब दोहन ने नदियों के भविष्य को खतरे में डाल रखा है। कहा, जीवन को चलाने के लिए अन्न और जल चाहिए। ऐसे में जल संरक्षण की भावना जागृत करने आगे आना होगा।

शंकराचार्य ने पूछा, कहां गई असि नदी और कैसे

संवाददाता, वाराणसी : विकास की अंधी दौड़ में नदियों की चिंता किसी को नहीं हैं। गंगा की ही तरह वरुणा देव नदी है। इसकी रक्षा बेहद जरूरी है वरना असि की तरह यह भी विलुप्त हो जाएगी। गंगा सेवा अभियानम ने नदियों की रक्षा का संकल्प ले रखा है। गंगा से इसकी शुरुआत की गई है। जिस दिन गंगा अविरल हो जाएगी, वरुणा की भी दशा सुधर जाएगी। इसी के साथ गंगा-वरुणा से जुड़ी अन्य सहायक नदियों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।
यह विचार हैं जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के। वह सोमवार को श्रीविद्यामठ में दैनिक जागरण से गंगा पर बात कर रहे थे। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि असि जैसी पौराणिक महत्व की नदी, आज नाले के रूप में हमारे सामने है। इसकी जमीन पर बड़ी-बड़ी कालोनियां खड़ी हो गईं। सवाल यह कि इसकी जमीन बेची किसने और उन्हें जमीन बेचने की अनुमति किसने दी। इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। वरुणा के साथ भी यही हो रहा है। एक तरफ वरुणा नाला बन सिमटती-सिकुड़ती जा रही है तो इसकी जमीन पर कब्जे होते जा रहे हैं। असि नदी से सबक लेते हुए हमें नदियों की रक्षा के प्रति जागृत होना होगा। प्यास बुझाने के लिए नदियों का अविरल-निर्मल होना बहुत जरूरी है। ईश्वर ने काशी को असि, वरुणा और गंगा जैसी नदियां दी हैं लेकिन हम इनकी अविरलता-निर्मलता की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। शंकराचार्य ने कहा कि देश की कमोवेश सभी नदियां असि नदी की राह पर हैं। बड़े-बड़े नालों की भरमार और बेहिसाब दोहन ने नदियों के भविष्य को खतरे में डाल रखा है। कहा, जीवन को चलाने के लिए अन्न और जल चाहिए। इसमें जल सर्वोपरि है। ऐसे में जल संरक्षण की भावना जागृत करने आगे आना होगा।

बचाओ असि व वरुणा को ताकि बचा रहे वाराणसी


-बचाएंगे हर हाल में बनारस की पहचान : बोले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
संवाददाता, वाराणसी : जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा है कि वरुणा और असि से ही 'वाराणसी' चरितार्थ है। इसे बने रहने दिया जाना चाहिए, इसे बचाना ही चाहिए।
श्रीविद्यामठ में बुधवार को उन्होंने दैनिक जागरण द्वारा नदियों के उद्धार के बाबत किए जा रहे प्रयासों पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि गंगा सेवा अभियानम् ने नदियों की अविरलता निर्मलता लौटाने का संकल्प ले रखा है। खासतौर से काशी में गंगा के साथ ही असि और वरुणा को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। इसके तमाम तरीके हैं और इन तरीकों से ही कई नदियों को पुनर्जीवन मिला भी है। बस काशीवासियों में इच्छाशक्ति जागने की जरूरत है।
आमंत्रित किए जाएंगे जल विशेषज्ञ
गंगा अभियानम के सार्वभौम संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि गंगा के माध्यम से नदियों के संरक्षण की शुरुआत की गई है। चातुर्मास संपन्न होते ही वरुणा की दशा सुधारने और असि को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम उठाया जाएगा। इसके लिए जलपुरुष राजेंद्र सिंह सहित अन्य जल विशेषज्ञों को काशी आमंत्रित किया जाएगा। हमारा यह अभियान काशी की गंगा जमुनी तहजीब के तहत चलेगा। इस अभियान में एक नदी की जिम्मेदारी हिंदू समाज के कंधों पर होगी तो दूसरी की कमान मुस्लिम समाज के हाथों में होगी। कहा, जब गंगा को बचाने का बीड़ा दोनों समाज के लोगों ने उठा लिया है तो काशी की पहचान और भविष्य से जुड़ी अन्य दोनों नदियों का भी उद्धार दोनों मिलकर करेंगे।

आज सूखी वरुणा में धान रोपेंगे किसान

सेवापुरी। एक ओर साधु-संत और ग्रामीण सूखती वरुणा नदी में पुन: जलप्रवाह देखने की आकांक्षा लिए आंदोलनरत हैं, वहीं शासन-प्रशासन की बेरुखी उन्हें उद्वेलित कर रही है। वरुणा के पुनरुद्धार के प्रति बेपरवाह बनी प्रशासनिक मशीनरी को जगाने के लिए संतों और ग्रामीणों ने नया रास्ता खोजा है। रविवार को वरुणा मुक्ति अभियान के तहत लोग विभिन्न गांवों में पदयात्रा के जरिये अलख जगाते हुए तेंदुई स्थित अमिलहा घाट पहुंचेंगे और यहां सूखी वरुणा में धान की रोपाई करेंगे।
शनिवार शाम संतों ने सेवापुरी ब्लाक के खरगूपुर, पचवार, बरनी, हाथी आदि गांवों में पदयात्रा निकाल ग्रामीणों को वरुणा की रक्षा के लिए जागरूक किया। इसके बाद संतों की टोली भिटकुरी स्थित विहारेश्वर महादेव मंदिर पहुंची। यहां महंत बाबा रामदास के आचार्यत्व में शिवार्चन किया गया। तत्पश्चात आचार्य सभाजीत पांडेय के नेतृत्व में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ किया गया।

वजूद के लिए जूझती वरुणा की जीवनधारा

संवाददाता, वाराणसी : वरुणा नदी अपने वजूद से जूझ रही है। अतिक्रमण की होड़ से जहां इसके पाट सिकुड़ रहे हैं वहीं इसमें गिरने वाले नालों की बढ़ती संख्या ने इसे मैला ढोने वाली नदी बना दिया है।
बीएचयू में गंगा अन्वेषण केंद्र के संस्थापक रहे प्रो. यूके चौधरी की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि शहर के एक बड़े क्षेत्र के अवजल स्रोतों का ढलान वरुणा की तरफ होने से जहां नदी में अवजल की मात्रा बढ़ती जा रही है वहीं गंगा बेसिन का जलस्तर गिरने से वरुणा के मौलिक जल की मात्रा भी कम होती जा रही है। किसी नदी के नाला में तब्दील होने की वजह भी यही होती है। किसी नदी की महत्ता उसके जल की मात्रा, गुणवत्ता व वेग पर आधारित होती है। काशी के लिए वरुणा का महत्व इसलिए भी और बढ़ जाता है क्योंकि यह नदी गंगा की ओर से भूमिगत जल प्रवाह को अपनी ओर खींचकर न केवल नगर के भूमिगत जलस्तर को बढ़ाती है वरन मृदाक्षरण रोककर शहर को स्थिरता भी प्रदान करती है। ऐसे में वरुणा का जल जैसे-जैसे दूषित-गतिहीन होता जाएगा, गंगा का किनारा असुरक्षित होता जाएगा।
रोका जाए नाले का पानी : प्रो. चौधरी
प्रो. चौधरी कहते हैं कि वरुणा को जीवित रखने के लिए पहले तो इसमें गिर रहे नालों का पानी रोका जाए। दूसरा इसके बेसिन (नदी तक जल पहुंचाने वाले क्षेत्र) एरिया में वर्षाजल को संरक्षित करने की व्यवस्था की जाए ताकि वर्षाजल का त्वरित निस्तारण रुके और इसका प्रयोग वरुणा के न्यूनतम प्रवाह को बरकरार रखने में किया जाए। बताया, नगर का वरुणा की तरफ ढलान अधिक होने से वर्षा का जल तुरंत नदी में निस्तारित हो जाता है। लिहाजा वर्षा बाद नदी का मौलिक जल घटने लगता है और नाले के पानी का अनुपात बढ़ने लगता है। बेहतर हो कि नदी के बेसिन में छोटे-छोटे जलभरण बनाकर भूमिगत जल संरक्षण की क्षमता बढ़ाई जाए। यही उपाय वरुणा को नया जीवन दे सकता है।
प्रस्तावित योजना की दशा :
वरुणा में गिर रहे नालों का फिलहाल कोई बंदोबस्त नहीं हो सका है। वरुणापार क्षेत्र को सीवर सुविधायुक्त करने की योजना पर काम चल रहा है। पाइप बिछाए जा रहे हैं लेकिन इससे जुड़े सीवर ट्रीटमेंट प्लान का दूर-दूर तक पता न होने से अभी इस योजना का लाभ वरुणा को मिलने वाला नहीं है।
वाराणसी। निश्चित रूप से वरुणा व असि नदी को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सरीखे किसी ऐसे जीवट व्यक्तित्व वाले संत का ही इंतजार है, जो उसके वैभवशाली अतीत को वापस ला देदिनों असि तो लुप्त प्राय है जबकि वरुणा कई स्थानों पर नाला बन गई है तो कई स्थानों पर इसमें पानी ही नहीं है। सोमवार को वरुणा व असि नदी की रक्षा के लिए शंकराचार्य की उठी आवाज के सकारात्मक परिणाम आए हैं। सं। इन तों -महात्माओं संग काशीवासियों ने दोनों नदियों के अस्तित्व की रक्षा का संकल्प लिया है।
संत, गंगा संग वरुणा व असि नदी को बनारस के लिए बेशकीमती कुदरती तोहफा मानते हैं। संतों का कहना है, जिन दिनों गंगा का पानी तेजी से बढ़ता है तो वरुणा ही उसके तेज को संभालती रही है। इससे शहर को बाढ़ से ज्यादा क्षति नहीं होने पाती। जिस दिन असि नदी की तरह वरुणा भी पाट कर नाला बना दी गई तो शहर को बचाना भी मुश्किल हो जाएगा। हालांकि इन दिनों काशी की प्राचीन दोनों नदियों के आसपास मकान बन गए हैं।

इस दिशा में न तो सरकारी तंत्र में कोई दृढ़ता दिख रही और न ही स्वयंसेवी संगठनों में ही। नतीजा यह है कि वरुणा नदी का जलग्रहण क्षेत्र जहां घटता जा रहा है वहीं गंदे पानी को डालने का क्त्रम भी तेज है। काशी के प्रबुद्ध वर्ग का कहना है कि यदि वरुणा को गहरा कर वर्ष भर जल संग्रह के लिए कुछ स्थानों पर छोटे बंधे बना दिए जाएं तो यहां के जलस्तर में सुधार हो सकता है। गंगा के साथ ही साथ वरुणा की भी योजना बननी चाहिए।
शंकराचार्य के आहृवान के बाद संत, जन-जन में सभी नदियों व तालाबों के प्रति संरक्षण का भाव भरने के लिए संकल्पित हैं। गंगा तपस्या अभियान के सार्वभौम राष्ट्रीय संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का मानना है कि गंगा की तरह ही वरुणा भी किसी दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व का इंतजार कर रही है, जो उसे उबारे। कहा कि पुराणों में काशी क्षेत्र के उत्तर में वरुणा, पूर्व में गंगा और दक्षिण में असि नदी का उल्लेख मिलता है। प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर ये तीनों नदियां प्राकृतिक रूप से काशी नगरी को स्थिरता प्रदान करती रही हैं। शायद इसी लिए काशी को अविनाशी नगरी के रूप में मान्यता मिली और यह भारतीय धर्म दर्शन, संस्कृति, साहित्य व कला की संरक्षक नगरी के रूप में विकसित हुई।
बेशक, इन दिनों गंगा के दक्षिणी मोड़ पर मिलने वाली असि नदी को अब नदी मानने में कठिनाई हो रही है। वजह, इसका वजूद आज अस्सी नाला के रूप में ही शेष रह गया है। गंगा-वरुणा के सतह से काफी ऊचाई पर बहने वाली इस नदी का गंगा में प्राकृतिक संगमीय कोण 45 से 60 डिग्री हुआ करता था। वर्तमान में अप्राकृतिक रूप से इसे स्थानांतरित कर दक्षिणी छोर पर ही तकरीबन 90 डिग्री कोण से गंगा में मिलाया गया है और इसमें नदी के एक भी चारित्रिक गुण नहीं है जबकि प्राचीन पुराण काल में इसको शुष्का नदी के नाम से बहुधा पुकारा गया है। यहां तक कि इससे संबद्ध शिवलिंग का नाम भी शुष्केश्वर कहा गया है।
कुछ समय पूर्व प्रकाशित गंगा रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक वरुणा-असि नदी का अपना मौलिक जल, गुण, मात्रा और आवेग हुआ करता था। जो नगर के भूमिगत जल स्तर को संतुलित करने के साथ ही गंगा के कटान क्षेत्र में बंधा का काम करता था।
गंगा के लिए वरुणा डाउन स्टीम (राजघाट क्षेत्र) में और असि अप स्टीम (गंगा के नगर प्रवेश क्षेत्र) में दो पहरेदारों की तरह सीमा रक्षा का काम करती रही हैं। ये नदियां अपने द्वारा लाई गई मिट्टी को गंगा के कटाव वाले क्षेत्रों में भर कर उसे स्थिरता प्रदान करती हैं। इसके अलावा गर्मी के दिनों में गंगा का जल स्तर गिरने पर नगर के भूमिगत जल रिसाव को अपनी ओर मोड़ कर मृदक्षरण रोकने का भी काम करती रही है।
संतों का कहना है कि काशी में गंगा के आदि कालीन अर्धचंद्राकार स्वरूप की स्थिरता का कारण ये तीन नदियां हैं तो ये ही त्रिशूल भी हैं जो काशी को अविनाशी स्वरूप प्रदान करती हैं। इन नदियों का जल, गुण, मात्रा और आवेग का आपसी तालमेल जिस अनुपात में बिगड़ेगा नगर की स्थिरता व भूमिगत जल उपलब्धता तथा गुण का संतुलन भी उसी अनुपात में बिगड़ता जाएगा। वरुणा व असि के लिए शंकराचार्य की उठी आवाज रंग लाएगी, ऐसा विश्वास है।