Thursday 10 November, 2011

फ्लोराइड से घिरी वरुणा


वरुणा के जल में प्रदूषण की बात तो आम है लेकिन अब इसके दोनों किनारों पर भूजल में फ्लोराइड का भी आक्रमण हो चुका है। यह इस क्षेत्र में रहने वालों के लिए खतरे की घंटी है। काशी हिंदूविश्वविद्यालय के एक शोध में फ्लोराइड की मौजूदगी के सबूत मिले हैं
अब इस क्षेत्र में फ्लोराइड के और विस्तार का अध्ययन किया जाना है।विवि के रसायन अभियांत्रिकी विभाग के डॉ.पीके मिश्रा के अनुसार इस क्षेत्र में भूजल में फ्लोराइड की मौजूदगी ने चिंतित कर दिया है। संभवत: वरुणा के प्रदूषण और मात्रा में कमी ने फ्लोराइड के प्रसार को बल दिया है। उन्होंने बताया कि वरुणा के दोनों किनारों पर फुलवरिया से सलारपुर के बीच 30 स्थानों से सैंपल लिये गए। लैब में इनकी जांच की गई तो दो मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक के हिसाब से यह फ्लोराइड मिला है। उन्होंने बताया कि लगभग तीन सौ फीट नीचे से पानी का सैंपल लिया गया था। उन्होंने बताया कि कोटवा, फुलवरिया,पुरानापुल, सलारपुर, रुस्तमपुर, लेढ़ूपुर आदि से सैंपल लिये गए थे।
अब इसके विस्तार व कारण की जानकारी के लिए पहल की जाएगी।दूसरी ओर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की स्थानीय शाखा के पदाधिकारी डॉ. अरविंद सिंह कहते हैं कि फ्लोराइड स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इससे दांत तो खराब होते ही है हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं। रक्त संबंधी बीमारियों की भी आशंका बनी रहती है। यह कैंसर का जनक भी हो सकता है।

वाराणसी: गंगा-वरुणा की तटीय आबादी में पानी का अकाल

वाराणसी। गंगा-वरुणा की तटीय आबादी इस साल गरमी में भीषण जल संकट का सामना करेगी। खिसकते जलस्तर और सूरज के बढ़ते ताप से नदी तटों पर पानी के लिए मारामारी मचने लगी है। शुरुआती गरमी में ही नहाने-धोने की परेशानी सिर उठाने लगी है। पक्के महाल की उंचली सतह वाली सघन बस्तियों में जहां बोरिंग सूखने लगी है, वहीं कुओं में पाइपें बढ़ाने को लोग मजबूर होने लगे। जल संस्थान की टोटियों में पानी न आने से जन जीवन मुश्किल की ओर बढ़ने लगा है। उधर वरुणा के तटीय नक्खी घाट बस्ती में भी पानी का जुगाड़ जी का जंजाल साबित होने लगा है।

भूगर्भ अब जल संचय की दृष्टि से तटीय बाशिंदों का साथ नहीं देने वाला है। वजह है नदियों के प्रवाह का लगातार कम होना। इससे भूगर्भीय जल स्रोत कमजोर हो रहे हैं। गंगा के जल स्तर में कमी का असर जल संकट के रूप में साफ नजर आने लगा है। पिछले साल मार्च की तुलना में इस बार पक्के महाल में १५ से २० फुट तक जल स्तर नीचे चला गया है। इससे कुएं, हैंडपंप और बोरिंग तीनों संसाधन प्रभावित हुए हैं। सिद्धेश्वरी गली, संकठा जी, गढ़वासी टोला, मणिकर्णिका, गौमठ समेत आसपास के इलाकों में अभी से जल संकट की काली छाया मंडराने लगी है।

जल विज्ञानी रमेश चोपड़ा की मानें तो इस बार जिस गति से भू-जल सतह में परिवर्तन आया है, वैसा पहले नहीं देखा गया था। अमूमन मई के बाद ही पक्के महाल में दिक्कत जोर पकड़ती थी लेकिन गंगा की वाटर रिचार्जिंग क्षमता नष्ट होने से जल स्रोत या तो बंद हो रहे हैं या फिर उनमें दबाव नहीं रह गया है। वरुणा के किनारे नक्खी घाट बस्ती में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।

बस्ती के बीच लगा एक हैंडपंप उखाड़ लिया गया है। इससे महिलाओं-बच्चों को दूर के कुएं या टोटी से पानी का जुगाड़ करना पड़ता है। दो हैंडपंपों पर सुबह से शाम तक बाल्टी-डिब्बा भरने के लिए लाइन लगी रहती है। बस्ती की नसीमा बानो, सरस्वती, कलावती, मीरा, लक्ष्मी की मानें तो अगर समय रहते पानी का समुचित इंतजाम नहीं किया गया तो गरमी में गला तर कर पाना मुश्किल हो जाएगा।

आज का यक्ष प्रश्न ?

क्या माननिया बहन जी, वाराणसी को पहचान और नाम देने वाली प्रागतिहासिक नदी वरुण पर भी ध्यान देंगी?