Thursday, 10 November 2011

वाराणसी: गंगा-वरुणा की तटीय आबादी में पानी का अकाल

वाराणसी। गंगा-वरुणा की तटीय आबादी इस साल गरमी में भीषण जल संकट का सामना करेगी। खिसकते जलस्तर और सूरज के बढ़ते ताप से नदी तटों पर पानी के लिए मारामारी मचने लगी है। शुरुआती गरमी में ही नहाने-धोने की परेशानी सिर उठाने लगी है। पक्के महाल की उंचली सतह वाली सघन बस्तियों में जहां बोरिंग सूखने लगी है, वहीं कुओं में पाइपें बढ़ाने को लोग मजबूर होने लगे। जल संस्थान की टोटियों में पानी न आने से जन जीवन मुश्किल की ओर बढ़ने लगा है। उधर वरुणा के तटीय नक्खी घाट बस्ती में भी पानी का जुगाड़ जी का जंजाल साबित होने लगा है।

भूगर्भ अब जल संचय की दृष्टि से तटीय बाशिंदों का साथ नहीं देने वाला है। वजह है नदियों के प्रवाह का लगातार कम होना। इससे भूगर्भीय जल स्रोत कमजोर हो रहे हैं। गंगा के जल स्तर में कमी का असर जल संकट के रूप में साफ नजर आने लगा है। पिछले साल मार्च की तुलना में इस बार पक्के महाल में १५ से २० फुट तक जल स्तर नीचे चला गया है। इससे कुएं, हैंडपंप और बोरिंग तीनों संसाधन प्रभावित हुए हैं। सिद्धेश्वरी गली, संकठा जी, गढ़वासी टोला, मणिकर्णिका, गौमठ समेत आसपास के इलाकों में अभी से जल संकट की काली छाया मंडराने लगी है।

जल विज्ञानी रमेश चोपड़ा की मानें तो इस बार जिस गति से भू-जल सतह में परिवर्तन आया है, वैसा पहले नहीं देखा गया था। अमूमन मई के बाद ही पक्के महाल में दिक्कत जोर पकड़ती थी लेकिन गंगा की वाटर रिचार्जिंग क्षमता नष्ट होने से जल स्रोत या तो बंद हो रहे हैं या फिर उनमें दबाव नहीं रह गया है। वरुणा के किनारे नक्खी घाट बस्ती में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।

बस्ती के बीच लगा एक हैंडपंप उखाड़ लिया गया है। इससे महिलाओं-बच्चों को दूर के कुएं या टोटी से पानी का जुगाड़ करना पड़ता है। दो हैंडपंपों पर सुबह से शाम तक बाल्टी-डिब्बा भरने के लिए लाइन लगी रहती है। बस्ती की नसीमा बानो, सरस्वती, कलावती, मीरा, लक्ष्मी की मानें तो अगर समय रहते पानी का समुचित इंतजाम नहीं किया गया तो गरमी में गला तर कर पाना मुश्किल हो जाएगा।

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