Wednesday 29 December, 2010

Unicolour meeting point of Ganga, Yamuna Similar Water Colour Due To High Pollution Makes Identification of Their Meeting Point Difficult

Allahabad: Jagan, a boatman at the Sangam, serving the pilgrims for over a decade, is perplexed these days. The reason being that this experienced boatman is not able to demarcate the meeting point of river Ganga and Yamuna, which was in earlier years so clear — Ganga being muddish while Yamuna being dark green.
TOI visited the Sangam on Monday to get a feel of the existing situation. It was found that the water of both the river has drastically changed the colour. “ We all know that the colour of Ganga has always been muddish while that of Yamuna is dark green and the same was quiet visible till last year. But this year it is very hard to make out the difference the meeting point,” Papu Nishad, a boatman said.
Recently, the media had reported that Ganga is turning blackish in colour and that was due to the effluents of paper mills situated along the Dhela, Kosi and Ramganga rivers, the tributaries of the Ganga in Uttarakhand.
“After getting the news, our department checked the sample of water at Moradabad and found that it was polluted because of which the river could have changed its colour. Later, the pollution control board wrote to authorities concerned. The effluents are being checked and the level of pollution has come down, but since the volume of water in Ganga has declined, the amount of silt has increased.
These two factors, acting simultaneously, are responsible for the present colour of water in Ganga,” an official of UP pollution control board said.
The pollution in Yamuna and its tributaries is also increasing. More the pollution, more are the chances that the river water would lose its original colour i.e. dark green, said A K Rai, who has done extensive research on the pollution of Ganga in Kanpur. “I have come back to Allahabad after five years with my friends to see the different colours of the two rivers. But after coming to Sangam, I am confused as to where is the meeting point of the two rivers. The water of both Ganga and Yamuna is more or less the same colour,” said an AU alumni.


LOST IDENTITY: (Above and inset) The meeting point of the two rivers (Sangam) where it is hard to identify the difference in colour

असि : नदी से नाला, अब नाली

वाराणसी : पुरातन नगरी काशी की पहचान असि नदी अब पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। इसके लिए जितने जिम्मेदार शासन-प्रशासन के लोग हैं उतने ही यहां के लोग भी। मीलों रास्ता तय कर गंगा में पहुंचने से पहले ही उसका दम घोंट दिया गया। पुरनिये बताते हैं कि इसी नदी से खेतों में सिंचाई होती रही। हालत यह हुई कि इसका रूप बदल कर घरों से निकलने वाली मोरी (नाली) की तरह हो चुका हैं। यही हाल रहा तो आने वाले समय में इसके वजूद का भी पता नहीं चलेगा। सिर्फ कागज पर ही बहती नदी, नाला व मोरी दिखाई पड़ेगी। इसके किनारे अतिक्रमण का बोलबाला है और विभाग कुंभकरणी नींद में है। भू-स्वामियों ने अतिक्रमण कर मकान तो बनवाया साथ ही दिन-प्रतिदिन इसे पाट कर अपनी सीमा रेखा में मिलाया भी। यह काम आज भी जारी है। अतिक्रमणकारी पहले नाले में बोल्डर डालते हैं फिर घर का कूड़ा करकट डालकर उसे पाटने लगते हैं। नाले की बदबू का भी उन कोई असर नहीं। नाले के किनारे अवैध कालोनियां डेवलप हों और अफसर मौन तो आखिर कैसे मुक्त हो असि।

Monday 27 December, 2010

तय करिए अब वाराणसी का नया नाम



वाराणसी : भौतिक सुख के चरम स्पर्श को लालायित रहने वाले हमारे मन ने न सिर्फ परिजनों को दुखी किया वरन पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंचाई है। इन सबमें सबसे भयानक मानवीय प्रवृत्ति, अतिक्रमण ने बला की हद तक काशी के भूगोल संग इतिहास को बदला है। हम अपनी एक नदी अस्सी, जिसे कुछ लोग असि, असी भी कहते हैं, का अवसान देख चुके हैं। यह नदी अब दो फीट, वह दो फीट जिसमें मुकम्मल 24 इंच ही होते हैं, की नाली में कन्वर्ट हो चुकी है। दूसरी नदी वरुणा भी उसी डगर पर है। वरुणा का हश्र देखना हो तो नगर के पुराना पुल पर आपका स्वागत है। सन 1955 से मई 1956 के बीच 15 लाख 50 हजार रुपये मात्र की लागत से बनकर तैयार यह पुल किसी दौर में वरुणा की भव्यता को प्रतिबिंबित करता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. सम्पूर्णानंद ने दूर से आने वाले लोगों के लिए तब इसका निर्माण करवाया था जब सारनाथ में प्रथम बौद्ध महोत्सव आयोजित होना था। तत्कालीन सिंचाई मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस पुल को बैराज का स्वरूप प्रदान करने का अनुरोध किया ताकि इस नदी से सिंचाई व्यवस्था का लाभ लिया जा सके। मुख्यमंत्री ने अनुरोध स्वीकारते हुए पुल को वैसा ही आकार दिया और इस तरह 7 फाटकों वाली यह सुंदर रचना आज हमारे सामने है।

पेच कहां फंसा : दरअसल बैराज बनना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि इस नदी में कभी कितना पानी रहा होगा। आखिर सिंचाई परियोजना हवा में तो चल नहीं जायेगी। आज मंजर बदल चुका है। आप पुराना पुल पर खड़े हो जायें, बैराज के बंद फाटकों के एक तरफ वरुणा में नाले नालियों व सीवर का पानी लबालब दिखलाई देगा वहीं पुल के दूसरी ओर बैराज फाटकों से रिसता बदबूदार झागयुक्त दो-चार बाल्टी पानी घिसटता हुआ गंगा की ओर बहता दिखेगा। आखिर एक मुकम्मल नदी चली कहां गई। यदि वरुणा के सभी सीवर, नालों व नालियों को बंदकर दिया जाय तो यह फटी हुई धरती के अलावा कुछ नहीं। उद्गम से लेकर संगम तक वरुणा का ऐसा कबाड़ा आखिर हो कैसे गया। जानकार बताते हैं कि तमाम प्राकृतिक बरसाती जलस्त्रोत कंक्रीट निर्माण के चलते नष्ट हो गये, शहर की गंदगी ने वाटर होल को पैक कर दिया और नदी के कचड़े ने पानी को जमीन में जब्त करने की हैसियत से महरूम कर दिया। अगर आपको याद हो, कुछ बरस पूर्व चौकाघाट के ध्वस्त हुए पुल का मुकम्मल मलबा आज भी नये पुल के नीचे नदी में ही दफन है। पुल के साथ ही गिरे एक कई चक्का ट्रक को हफ्तों बाद निकाला जा सका था, मलबा आज भी नदी में है। ऐसी ही तमाम दास्तानें हैं जिन्होंने मिल जुलकर नदी का कबाड़ा कर दिया।

हालात यह हैं कि जिन दो नदियों वरुणा व असी के नाम पर नगर का नाम वाराणसी पड़ा था, उनमें से एक नदी असी का अवसान हो चुका है, वरुणा भी उसी डगर पर है। गंगा का हाल हम सब देख ही रहे हैं। आखिर कोई भगीरथ इस शहर में सामने आयेगा भी ..या कि फिर अब इस शहर का नाम ही बदला जाए

तय करिए अब वाराणसी का नया नाम



वाराणसी : भौतिक सुख के चरम स्पर्श को लालायित रहने वाले हमारे मन ने न सिर्फ परिजनों को दुखी किया वरन पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंचाई है। इन सबमें सबसे भयानक मानवीय प्रवृत्ति, अतिक्रमण ने बला की हद तक काशी के भूगोल संग इतिहास को बदला है। हम अपनी एक नदी अस्सी, जिसे कुछ लोग असि, असी भी कहते हैं, का अवसान देख चुके हैं। यह नदी अब दो फीट, वह दो फीट जिसमें मुकम्मल 24 इंच ही होते हैं, की नाली में कन्वर्ट हो चुकी है। दूसरी नदी वरुणा भी उसी डगर पर है। वरुणा का हश्र देखना हो तो नगर के पुराना पुल पर आपका स्वागत है। सन 1955 से मई 1956 के बीच 15 लाख 50 हजार रुपये मात्र की लागत से बनकर तैयार यह पुल किसी दौर में वरुणा की भव्यता को प्रतिबिंबित करता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. सम्पूर्णानंद ने दूर से आने वाले लोगों के लिए तब इसका निर्माण करवाया था जब सारनाथ में प्रथम बौद्ध महोत्सव आयोजित होना था। तत्कालीन सिंचाई मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस पुल को बैराज का स्वरूप प्रदान करने का अनुरोध किया ताकि इस नदी से सिंचाई व्यवस्था का लाभ लिया जा सके। मुख्यमंत्री ने अनुरोध स्वीकारते हुए पुल को वैसा ही आकार दिया और इस तरह 7 फाटकों वाली यह सुंदर रचना आज हमारे सामने है।

पेच कहां फंसा : दरअसल बैराज बनना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि इस नदी में कभी कितना पानी रहा होगा। आखिर सिंचाई परियोजना हवा में तो चल नहीं जायेगी। आज मंजर बदल चुका है। आप पुराना पुल पर खड़े हो जायें, बैराज के बंद फाटकों के एक तरफ वरुणा में नाले नालियों व सीवर का पानी लबालब दिखलाई देगा वहीं पुल के दूसरी ओर बैराज फाटकों से रिसता बदबूदार झागयुक्त दो-चार बाल्टी पानी घिसटता हुआ गंगा की ओर बहता दिखेगा। आखिर एक मुकम्मल नदी चली कहां गई। यदि वरुणा के सभी सीवर, नालों व नालियों को बंदकर दिया जाय तो यह फटी हुई धरती के अलावा कुछ नहीं। उद्गम से लेकर संगम तक वरुणा का ऐसा कबाड़ा आखिर हो कैसे गया। जानकार बताते हैं कि तमाम प्राकृतिक बरसाती जलस्त्रोत कंक्रीट निर्माण के चलते नष्ट हो गये, शहर की गंदगी ने वाटर होल को पैक कर दिया और नदी के कचड़े ने पानी को जमीन में जब्त करने की हैसियत से महरूम कर दिया। अगर आपको याद हो, कुछ बरस पूर्व चौकाघाट के ध्वस्त हुए पुल का मुकम्मल मलबा आज भी नये पुल के नीचे नदी में ही दफन है। पुल के साथ ही गिरे एक कई चक्का ट्रक को हफ्तों बाद निकाला जा सका था, मलबा आज भी नदी में है। ऐसी ही तमाम दास्तानें हैं जिन्होंने मिल जुलकर नदी का कबाड़ा कर दिया।

हालात यह हैं कि जिन दो नदियों वरुणा व असी के नाम पर नगर का नाम वाराणसी पड़ा था, उनमें से एक नदी असी का अवसान हो चुका है, वरुणा भी उसी डगर पर है। गंगा का हाल हम सब देख ही रहे हैं। आखिर कोई भगीरथ इस शहर में सामने आयेगा भी ..या कि फिर अब इस शहर का नाम ही बदला जाए

गंगा-वरुणा को मैला कर रही तीन फैक्ट्रियों पर ताला



वाराणसी : नियम को ताक पर रखकर साड़ी छपाई व रंगाई के दौरान बिना शोधन के केमिकल गंगा व वरुणा नदी में बहाना तीन फैक्ट्रियों पर भारी पड़ गया। जिला प्रशासन के नेतृत्व में टीम ने मंगलवार को शिवपुर थाना क्षेत्र में संचालित तीनों फैक्ट्रियों पर ताला जड़ दिया।

एडीएम (सिटी) अटल राय ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जनपद में संचालित 9 फैक्ट्रियों की सूची सौंपी थी। इन फैक्ट्रियों द्वारा बिना शोधन के गंगा व वरुणा नदी में केमिकल बहाया जा रहा था। संबंधित मजिस्ट्रेटों को अपने-अपने क्षेत्र में संचालित फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कहा गया था लेकिन आदेश का अनुपालन नहीं हुआ। संज्ञान में आने के बाद प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों ने एसीएम (चतुर्थ) सभाजीत तिवारी के नेतृत्व में मय फोर्स शिवपुर रेलवे फाटक के समीप शमशेर सिंह के कंपाउंड में संचालित तीन फैक्ट्रियों मेसर्स साई प्रिंट्स, मेसर्स शिल्पी प्रिंट्स व मेसर्स शकील प्रिंट्स पर छापा मारा। सिर्फ एक फैक्ट्री का संचालक मौके पर मिला। अन्य दो फैक्ट्रियों पर ताले लगे थे। तीनों फैक्ट्रियों को टीम ने जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 की धारा 33-ए के तहत सीज कर दिया। एडीएम (सिटी) ने बताया कि एक सप्ताह के भीतर अन्य छह फैक्ट्रियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। शिवपुर में छापेमारी के दौरान क्षेत्राधिकारी कैंट किरण यश, एएसओ एसबी फ्रेंकलिन, एसएन सिंह समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।

Friday 24 December, 2010

वरुणा बनी मला ढोने वाली नदी-

गंगा की कटान को रोक कर नगर के भूमिगत जलस्तर को संतुलित व शुद्ध रखने वाली वरुणा नदी भी अपने वजूद से जूझती ही नजर आ रही है। वरुणा पार क्षेत्र के तकरीबन 80 एमएलडी मलजल को ढो रही इस नदी में शहर के लगभग 100 एमएलडी और मलजल को गिराने की तैयारी की जा रही है। अब अतिक्रमण की होड़ से दिनोंदिन सिकुड़ते पाट और इसमें गिरनेवाले नालों की बढ़ती संख्या ने इसे मैला ढोनेवाली नदी बना दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर के एक बड़े क्षेत्र के अवजल स्रोतों का ढलान वरुणा की तरफ होने से जहां नदी में अवजल की मात्रा बढ़ती जा रही है वहीं गंगा बेसिन का जलस्तर गिरने से वरुणा के मौलिक जल की मात्रा भी कम होती जा रही है। किसी नदी के नाला में तब्दील होने की वजह भी यही होती है। नदी से नाला बनी असि नदी का इतिहास सबके सामने है।

Saturday 18 December, 2010

वरुणा नदी की भी अजब कहानी





तैयारी सजाने की, हालत यह
वाराणसी, संवाददाता : वरुणा नदी की भी अजब कहानी है। एक तरफ अत्याचार तो दूसरी तरफ करुणा का अंबार। सरकार इस नदी को सजाने, संवारने और उपयोगी बनाने के लिए 171 करोड़ का बजट बना रही है वहीं अतिक्रमण और प्रदूषण से कराह रही इस नदी में स्थानीय स्तर पर शहर का तकरीबन सौ एमएलडी मलजल गिराने की भी तैयारी चल रही है। वह भी तब तक गिरता रहेगा जब तक 496 करोड़ की प्रस्तावित योजना के तहत सथवा में ट्रीटमेंट प्लांट मूर्तरूप नहीं ले लेता। अब तो इस योजना का कास्ट भी बढ़ कर 595 करोड़ के आसपास हो गया है और यह योजना इस समय टेंडर में अटकी पड़ी है। बताते चलें कि महानगर में वर्ष 2003 से चल रही 41.61 करोड़ की रिलीविंग ट्रंक सीवरेज योजना (आटीएस) गंगा एक्शन प्लान के दूसरे फेज का प्रोजेक्ट है। इसके तहत नगर में सड़क खोदकर कुल 5280 मीटर भूमिगत पाइप बिछाने, गंगा की तरफ जा रही पुरानी सीवर लाइनों को मोड़कर बिछाई जा रही सीवर लाइनों से जोड़ने, गंगा घाटों पर बने मेनहोलों का ओवरफ्लो रोकने और नगवा नाले पर पंपिंग स्टेशन का निर्माण करना था। यद्यपि इसे वर्ष 2005 में ही पूरा हो जाना था लेकिन शासन और प्रशासन की माकूल मॉनेटरिंग के अभाव में यह योजना 2010 में पूर्ण होने जा रही है। सिर्फ सिगरा में मेनहोल बनाने का काम शेष है। जिसका काम चल रहा है और दिसंबर तक इसे भी पूर्ण कर लेने का दावा किया गया है। अब प्रस्तावित योजना के तहत सिगरा पर दूसरे फेज का काम समाप्त होने के साथ ही 496 करोड़ के तीसरे फेज का काम भी शुरू हो जाना चाहिए था। ताकि शहरी मलजल का शोधन कर उसे नदी में हवाले करने की महत्वाकांक्षी योजना समय रहते मूर्तरूप ले सके लेकिन यहां तीसरे फेज के प्रति शासन की अनदेखी से आगे का काम अधर में है। ऐसे में अब तक बिछाई गई पाइप लाइनों के ही जरिए ओवर लोड चल रही पूरानी सीवर लाइनों को जोड़ कर सारे मलजल को (चौकाघाट) वरुणा के किनारे निस्तारित करने की तैयारी चल रही है। भविष्य में जब 496 करोड़ की योजना (संशोधन के बाद 595 करोड़) मूर्त रूप लेगी तब कहीं जाकर चौकाघाट (वरुणा किनारे) के पास गिर रहे मलजल को पंपिंग स्टेशन के जरिए सथवां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को भेजा जाएगा। शहर को सीवर जाम से निजात दिलाने का यही रास्ता : संबंधित अधिकारियों का कहना है कि शहर की पुरानी मेन सीवर लाइनें अमूमन ध्वस्त हो चुकी हैं। पूरा शहर सीवर जाम की समस्या से जूझ रहा है। सीवर का पानी कहीं सड़क पर फैल रहा है या फिर वॉटर लाइनों के जरिए लोगों के घरों में जा रहा है। इससे निजात तभी मिल सकती है जब ध्वस्त सीवर लाइनों के मलजल को नए पाइप लाइनों के जरिए निकासी की व्यवस्था की जाए। प्रस्तावित योजना के तहत चौकाघाट में पंपिंग स्टेशन का निर्माण कर सारे मलजल को वहीं से सथवा भेजा जाना है लिहाजा पाइप लाइनों की निकासी उधर की गई है। अब दो ही विकल्प हैं या तो योजना को मूर्तरूप लेने तक शहर को सीवर जाम की समस्या से जूझने दिया जाए या फिर इसकी निकासी की जाए। क्या है तीसरे फेज का कार्य : कार्यदायी संस्था गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों के अनुसार तीसरे फेज में सिगरा से दुर्गाकुंड तक पाइप लाइन बिछाना, चौकाघाट, सथवा में पंपिंग स्टेशन, सथवां में 140 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी का निर्माण किया जाना है। बताया कि वर्ष 2003 से लंबित इस एक्सटेंशन प्रोजेक्ट को वर्ष 2010 में जा कर हरी झंडी तो मिल गई लेकिन अभी यह टेंडर प्रक्रिया में है और इसे मूर्तरूप देने की अवधि पांच वर्ष है।

Thursday 16 December, 2010

वरुणा के लिए 171 करोड़ का प्रोजेक्ट



वाराणसी : वरुणा का तट हरा-भरा और मनोरम होगा। यहां प्रात:कालीन बेला में टहलने का भी एक अलग आनंद होगा। इसके तट तक पहुंचना भी आसान हो जाएगा। धूल-धक्कड़ में सड़कों पर जाम में फंसने के बजाए स्टीमर से शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना हो सकेगा। इस नदी क्षेत्र के विकास के लिए 171 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार कर लिया गया है। अब 14 दिसम्बर को राज्य विकास परिषद के अध्यक्ष सतीश मिश्र के वाराणसी आगमन व इस संबंध में स्थानीय अफसरों से कार्ययोजना मांगे जाने से इसमें गति आ गयी है। जानकारी के मुताबिक वरुणा नदी के जीणरेद्धार के लिए प्लानर इंडिया ने प्रोजेक्ट बनाया है। इसमें लैंड स्केप, वरुणा की गहराई बढ़ाना, घाट, पौधरोपण, एप्रोच रोड आदि को शामिल किया गया है। कमिश्नर एके उपाध्याय की पहल पर नए सिरे से प्रोजेक्ट तैयार कर राज्य सलाहकार परिषद के समक्ष मंजूरी के लिए रखा जा चुका है। परिषद के अध्यक्ष सतीश मिश्र की सहमति से उस प्रस्तावित प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिलने का रास्ता साफ हो गया है। सनद रहे कि वरुणा को बचाने के लिए जागरण ने कई बार ध्यान आकृष्ट कराया। इसका नतीजा रहा कि स्थानीय प्रशासन चेता और वाराणसी सीमा के भीतर करीब बीस किमी के लिए 170 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार कराया। इसे राज्य सलाहकार परिषद के एजेंडा में कई माह पूर्व ही रखा गया था। जब फ्लाईओवर और अन्य परियोजनाओं की घोषणा की गई थी उस समय भी इस प्रोजेक्ट को बंधी प्रखंड की तरफ से रखा गया था लेकिन उसे परिषद ने नामंजूर कर दिया था। उसके बाद नए सिरे से प्रोजेक्ट तैयार कर भेजा गया। वह इस समय विचाराधीन है। ताजा हालात -देखा जाए तो आज वरुणा नदी खतरे में है। उसे पाटने या नाले में तब्दील करने का प्रयास चल रहा है। इस खतरे को अच्छी तरह कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता हैं। कभी इसी तरह की एक नदी असी हुआ करती थी जो समाप्त हो गई। आज कोई असी का नाम ले तो उस पर लोग हंसेंगे ही। उसके पूरे जलग्रहण क्षेत्र में मकान बन गए। जबकि वाराणसी का नाम वरुणा और असी के योग से ही है। आज उसी तरह का खतरा वरुणा के साथ भी दिख रहा है। भदोही में गिर रहा कालीन के डाइंग प्लांटों का पानी -भदोही सीमा में वरुणा नदी की लम्बाई 30 किमी से अधिक है। यह जौनपुर के जंघई से आकर जनपद भ्रमण करते हुए चौरी के रास्ते कपसेठी से वाराणसी जिले में प्रविष्ट हो जाती है। ठंड व गर्मी में नदी सूखी रहती है। बारिश के दिनों में नदी में पानी दिखता है। अन्य दिनों में वरुणा में मोरवा नदी से होकर जाने वाला कालीन के डाइंग प्लांटों का ही पानी जगह-जगह दिखता है। वहीं वरुणा में वाराणसी जनपद की सीमा पर आकर मिलने वाली बसुही नदी में नहर का पानी प्रवाहित होने से वरुणा के वाराणसी सीमा क्षेत्र में पानी दिखता है शेष स्थानों पर स्थिति बेहद खराब है।

Wednesday 15 December, 2010

पेड़ों की कटाई रोको


पेड़ कटते जा रहे हैं और कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। अंधाधुंध पेड़ों की कटाई को नहीं रोका गया तो एक दिन ऐसा आएगा कि खुली हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा। आक्सीजन देने वाले बड़े पेड़ों को काटा जा रहा है। शहर का विस्तार हो रहा है जबकि गांव सिकुड़ते जा रहे हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। इस प्रकार के कठोर कानून बनाएं ताकि पेड़ काटने से पूर्व हजार बार लोग सोचे। इस धरता के आभूषण कहे जाने वाले पेड़ों से न केवल वायुमंडल शुद्ध होता है बल्कि व्यक्ति भी निरोग रहता है।

हाथों में पर्यावरण के नारे लिखी तख्तियां लेकर सड़क पर उतरे नन्हे सितारे

बच्चों ने लगाई धरती बचाने की गुहार

वाराणसी। नन्हे मुन्ने बच्चे पर्यावरण संरक्षण की गुहार लेकर सड़क पर उतरे। बच्चों ने आम जनता और प्रबुद्ध जनों से प्रदूषण से बर्बाद हो रही धरती को बचाने की गुहार लगाई। वे ...सूखी धरती करे पुकार, वृक्ष लगाकर करो शृंगार, इस धरती को स्वर्ग बनाओ, स्टॉप ग्लोबल वार्मिंग जैसे नारे भी बुलंद कर रहे थे। विभिन्न वेशभूषा और हाथों में तख्तियां लिए बच्चे पूरे उत्साह के साथ धरती को हरा भरा रखने के लिए लोगों से अपील कर रहे थे। ये बच्चे थे यूनीक एकेडमी के। मंगलवार को यूनीक एकेडमी की ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘ए ग्रैंड इको फेस्ट’ रैली निकाली गई।
यूनीक एकेडमी के सभी शाखाओं के बच्चे इस रैली में शामिल हुए। सुबह दस बजे से यह रैली शास्त्री नगर स्थित आईपी मॉल से रवाना की गई। रैली में बच्चे हरे हरे वस्त्रों में वृक्षों के रूप में कुछ ने जानवरों का रूप धरा था। सभी पर्यावरण को बचाने की मांग कर रहे थे। आईपी मॉल, सिगरा थाना, फातमान रोड और मलदहिया होते हुए यह रैली मलदहिया स्थित शाखा पर समाप्त हुई। रैली का नेतृत्व डॉली भाटिया ने किया। रैली में सभी शाखाओं की शिक्षिकाओं का सहयोग रहा।

वरुणा के जीर्णोद्धार को हरी झंडी


वाराणसी, जागरण टीम : आखिर शहर से अटूट रिश्ता रखने वाली वरुणा नदी की भी सुन ली गई। अब उसका कायाकल्प होगा। शासन स्तर से इस नदी का जीर्णोद्धार कर इसे नया रूप देने व इसमें परिवहन सुविधा बहाल करने के लिए सर्वे को हरी झंडी दे दी गई है। इस बाबत कमिश्नर को रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसके साथ ही नगर को यातायात की समस्या से निजात दिलाने के लिए नए फ्लाईओवर की जरूरतों व विकास की अन्य परियोजनाओं की बाबत अलग से सर्वे रिपोर्ट प्रस्तुत करने का प्रशासनिक अमले को निर्देश दिया गया है। यह जानकारी राज्य सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र ने मंगलवार को यहां दी। वह वाराणसी नगर के विकास को मिले 871 करोड़ रुपये की 28 परियोजनाओं का हाल जानने के लिए सीएम के दूत के रूप में यहां पहुंचे थे। कमिश्नरी सभागार में समीक्षा बैठक के बाद विकास कार्यो की धीमी प्रगति से खासे नाराज श्री मिश्र ने मीडिया से बातचीत में दावा किया कि पाण्डेयपुर व चौकाघाट फ्लाईओवर का निर्माण कार्य 31 मार्च तक हर हाल में पूरा कर लिया जाएगा। हर हफ्ते डीएम व कमिश्नर वर्क चार्ट के आधार पर मानीटरिंग करेंगे और शासन को रिपोर्ट देंगे। पेयजल की पाइप लाइन, सीवर लाइन के साथ ही खोदाई का कार्य वर्षा से पहले पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। नगर निगम की चुटकी लेते हुए कहा कि सड़क के किनारों पर आज की ही तरह गंदगी कभी नहीं दिखनी चाहिए। रोज इसी तरह पूरे नगर की सफाई होनी चाहिए। सड़क के किनारे अतिक्रमण, नालियां जाम होने जैसी स्थिति पाए जाने पर नाराजगी जताई। चेताया, बराबर अभियान चलाकर साफ-सफाई पर ध्यान दें, किसी भी कीमत पर अनाधिकृत कब्जा न होने पाए। सालिड वेस्ट मैनेजमेंट परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए अप्रैल 2011 तक का नगर निगम को टारगेट दिया। एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि वर्ष 2014 तक विद्युत उत्पादन में उत्तर प्रदेश सरप्लस स्टेट हो जाएगा। विश्वनाथ मंदिर समेत सभी घाटों के सुंदरीकरण समेत विकास से जुड़ी विभिन्न योजनाओं की बराबर मानीटरिंग करते रहने की अधिकारियों को हिदायत भी दी गई है। समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव राजप्रताप सिंह, प्रमुख सचिव नगर विकास आलोक रंजन, प्रमुख सचिव लोक निर्माण रवींद्र सिंह, आयुक्त अजय कुमार उपाध्याय, डीएम रवींद्र समेत अन्य आला अधिकारी भी थे

Sunday 12 December, 2010

जलवायु परिवर्तन का जानलेवा असर बच्चों पर

जलवायु परिवर्तन का जानलेवा असर बच्चों पर


बच्चे जलवायु-परिवर्तन के जिम्मेदार तो नहीं हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन की सबसे गहरी चोट उन्हीं को लगेगी। जलवायु-परिवर्तन से बच्चों की जिन्दगी को सबसे ज्यादा खतरा है।बाल अधिकारों की वैश्विक संस्था सेव द चिल्ड्रेन द्वारा जारी फीलिंग द हीट-चाइल्ड सरवाईवल इन चेजिंग क्लाइमेट नामक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चों की सेहत को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है।

रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक बुरा असर गरीब मुल्कों पर पड़ेगा-खासकर उपसहारीय अफ्रीकी देशों और दक्षिण एशिया के देश इसकी गंभीर चपेट में होंगे। विश्व के इन हिस्सों में जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव दूरगामी होगा-बीमारियों की प्रकृति में बदलाव आएगा,बीमारों की तादाद बढ़ेगी और पहले से ही कमजोर सामाजिक तथा स्वास्थ्य-ढांचे पर बोझ और ज्यादा बढ जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति वर्ष 90 लाख बच्चे पाँच साल की उम्र पूरी करने से पहले मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।इनमें से ज्यादातर मौतें (98 फीसदी) कम और मंझोली आमदनी वाले मुल्कों में होती हैं।एक तथ्य यह भी है कि सर्वाधिक गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु की तादाद अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है।ज्यादातर बच्चों की मौत गिनी-चुनी बीमारियों और स्थितियों मसलन-कुपोषण, न्यूमोनिया, खसरा, डायरिया, मलेरिया और प्रसव के तुरंत बाद होने वाली देखभाल के अभाव जैसी स्थितियों में होती है।

वैश्विक स्तर होने वाली बच्चों की मृत्यु की विशाल संख्या में उपसहारीय अफ्रीका(40 लाख 70 हजार) और दक्षिण एशिया(30 लाख 80 हजार) का हिस्सा बहुत ज्यादा है।विश्व के इन हिस्सों में मौजूद भयंकर गरीबी, बीमारी और प्राकृतिक संसाधन पर निर्भरता की स्थिति अगामी सालों में जलवायु-परिवर्तन के बीच बच्चों के जीवन के लिए पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक माहौल पैदा करेगी।

रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि बच्चों की मृत्यु का प्रत्यक्ष और सबसे बड़ी कारण भले ही बीमारी हो लेकिन इसके साथ-साथ कुछ अप्रत्यक्ष और ढांचागत कारण भी हैं जिससे बीमार बच्चों का समय रहते ठीक हो पाना संभव नहीं हो पाता।ऐसे कारणों में शामिल है-स्वास्थ्य सुविधाओं का पर्याप्त मात्रा और समुचित रीति से ना उपलब्ध हो पाना, स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई का अभाव,गरीबी,जचगी के संबंध में वैज्ञानिक जानकारी का अभाव और सामाजिक असमानता।जलवायु परिवर्तन इन्हीं स्थितियों की गंभीरता में इजाफा करके बच्चों की जिन्दगी के लिए भारी खतरा पैदा करेगा।

रिपोर्ट में इस बात पर दुःख प्रकट किया गया है कि बच्चों की जिन्दगी पर जलवायु परिवर्तन के खतरे के संबंध में पर्याप्त प्रमाण होने के बावजूद इस पर अब भी नीतिगत स्तर पर सार्वजनिक बहस नहीं होती और ना ही कोई राजनीतिक पहलकदमी के प्रयास दिखते हैं।रिपोर्ट में चेतावनी के स्वर में कहा गया है कि सरकारों और व्यापक जन-समुदाय को यह बात समय रहते समझ लेनी होगी कि दांव पर खुद मानवता का भविष्य लगा है।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों और बच्चों की सेहत पर होने वाले असर के बीच के संबंध को समझना मसले पर राजनीतिक समझ बनाने की दिशा में पहला कदम है।एक उदागरण डायरिया का लिया जा सकता है।

अनुमान के मुताबिक सिर्फ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली स्थितियों के कारण प्रति व्यक्ति 6000 डॉलर सालाना से कम आमदनी वाले देशों में डायरिया की घटना में 2020 तक 2 से 5 फीसदी की बढोतरी होगी। एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में डायरिया के मामलों में 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।इसके अलावा जल-संक्रमण से होने वाली अन्य बीमारियों की तादाद में भी बढ़ोतरी होगी।

अतिसार या डायरिया जिसके उपचार को विकसित मुल्कों में चुटकी का खेल माना जाता है,आश्चर्यजनक तौर पर विकासशील और पिछड़े देशों में बच्चों के लिए जानलेवा साबित होती है।रिपोर्ट के अनुसार सालाना 20 लाख बच्चे सिर्फ डायरिया से मरते हैं और इसमें जलवायु-परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों के कारण होने वाली डायरिया से मरने वाले बच्चों की तादाद 85 हजार है।

रिपोर्ट के अनुसार डायरिया के ज्यादातर मामलों में मूल कारण साफ-सफाई की कमी और स्वच्छ पेयजल का अभाव है।दुनिया में तकरीबन 1 अरब 30 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नसीब नहीं है और अगर जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप विश्व का तापमान 2 डिग्री संटीग्रेड और बढ़ गया तो 1 अरब 30 करोड़ अतिरिक्त आबादी साफ पेयजल से महरुम होगी। इससे डायरिया और जल के संक्रमण से होने वाली बीमारियों का प्रकोप तेज होगा।

रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने पर भजल संदूषित होता है।संदूषित भूजल के कारण स्वच्छ पेयजल की समस्या और गंभीर होगी।दूसरे,जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की स्थिति भी बढ़ेगी और सूखे की स्थिति में स्वच्छ पेयजल के अभाव से पहले से ही ग्रस्त लोग मात्र संदूषित पानी के आसरे होंगे। ऐसे में डायरिया की आशंका बलवती होगी।

रिपोर्ट में सप्रमाण बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन, आबादी की बढ़ोतरी,जमीन के इस्तेमाल के बदलते तरीके और निर्वनीकरण की स्थितियां एक साथ मिलकर मलेरिया और डेंगू जैसी कई बीमारियों के प्रकोप में इजाफा करेंगी और इसका सर्वाधिक शिकार बच्चे होंगे।गौरतलब है कि सालाना 10 लाख बच्चे सिर्फ मलेरिया की चपेट में आकर मरते हैं।इनमें पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की तादाद 80 फीसदी होती है।

जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों के कारण बच्चों की सेहत पर खतरे को भांपते हुए रिपोर्ट में सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे कोपेनहेगेन सम्मेलन में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में 80 फीसदी की कटौती के मसौदे पर सहमत हों।

तूफानों के सामने को रहें तैयार, ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ी ताकत

तूफानों के सामने को रहें तैयार, ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ी ताकत


दुनिया को धीरे-धीरे अपनी चपेट में ले रही ग्लोबल वार्मिंग ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अटलांटा, चीन और इंडोनेशिया में तूफानों के कहर में ग्लोबल वार्मिंग की अहम भूमिका है। पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के कई देशों में तूफानों की संख्या में इजाफा हुआ है। नवीनतम शोध के मुताबिक इस सदी के अंत तक अटलांटा और न्यूयॉर्क में तूफानों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्चरों का मानना है कि मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसों में लगातार इजाफे से भी ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है। वेस्ट लेफेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफ टे्रप ने बताया कि इससे असमय बारिश, बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं बढ़ी है। प्रभावित इलाकों में आर्थिक नुकसान के अलावा सामाजिक तानाबाना पर बुरा असर पड़ता है।

ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) बढ़ने का मतलब है कि हमारी पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। इससे आने वाले दिनों में सूखा, बाढ़ ओर मौसम की मिजाज बुरी तरह बिगड़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय दुनिया का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड है। वर्ष 2100 तक इसमें 1.5-6 डिग्री तक बढ़ोतरी हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण औद्योगीकरण, जंगलों का तेजी से कम होना, पेट्र्रोलियम पदार्थों से उत्सर्जित प्रदूषण, फ्रिज-एयरकंडीशन का बढ़ता प्रयोग आदि है।

तूफानों के सामने को रहें तैयार, ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ी ताकत

तूफानों के सामने को रहें तैयार, ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ी ताकत


दुनिया को धीरे-धीरे अपनी चपेट में ले रही ग्लोबल वार्मिंग ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अटलांटा, चीन और इंडोनेशिया में तूफानों के कहर में ग्लोबल वार्मिंग की अहम भूमिका है। पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के कई देशों में तूफानों की संख्या में इजाफा हुआ है। नवीनतम शोध के मुताबिक इस सदी के अंत तक अटलांटा और न्यूयॉर्क में तूफानों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्चरों का मानना है कि मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसों में लगातार इजाफे से भी ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है। वेस्ट लेफेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफ टे्रप ने बताया कि इससे असमय बारिश, बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं बढ़ी है। प्रभावित इलाकों में आर्थिक नुकसान के अलावा सामाजिक तानाबाना पर बुरा असर पड़ता है।

ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) बढ़ने का मतलब है कि हमारी पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। इससे आने वाले दिनों में सूखा, बाढ़ ओर मौसम की मिजाज बुरी तरह बिगड़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय दुनिया का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड है। वर्ष 2100 तक इसमें 1.5-6 डिग्री तक बढ़ोतरी हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण औद्योगीकरण, जंगलों का तेजी से कम होना, पेट्र्रोलियम पदार्थों से उत्सर्जित प्रदूषण, फ्रिज-एयरकंडीशन का बढ़ता प्रयोग आदि है।

गर्म हो रहे बादल पृथ्वी को कर रहे हैं और गर्म

गर्म हो रहे बादल पृथ्वी को कर रहे हैं और गर्म


मानवीय गतिविधियों का बादलों पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। टेक्सास के ए एंड एम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि मानीवीय गतिविधयों का नकारात्मक असर बादलों पर भी पड़ रहा है, जिसके कारण पूरी पृथ्वी जल्द ही बहुत अधिक गर्म हो जाएगी। साथ ही वैश्विक मौसम भी बुरी तरह प्रभावित होगी। प्रमुख शोधकर्ता एंड्रयू डेसलर ने बताया कि ग्रीन हाउस गैसों में वृद्घि के कारण तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके कारण बादल भी काफी गर्म हो रहे हैं। बादलों का गर्म होना पृथ्वी के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है।

बादलों के गर्म होने के बाद पृथ्वी का तापमान और बढ़ने लगेगा। इस प्रक्रिया को क्लाउड फीडबैक कहा जाता है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले सौ वर्षों में पृथ्वी का तापमान काफी बढ़ जाएगा, जिसका सामना करना आसान नहीं होगा। नासा के टेरा सेटेलाइट द्वारा लिए गए चित्रों में बादलों की बदलती प्रवृत्ति स्पष्ट नजर आ रही है।

डेसलर ने बताया कि यह एक दुष्चक्र है। गर्म तापमान का मतलब है कि बादल और अधिक गर्म हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन मानवीय गतिविधियों में आ रहे बदलाव ने पूरे पर्यावरण को ही बिगाड़ कर रख दिया है। इसके बावजूद मानव जाति भारी समस्या को समझना नहीं चाहती और सचेत होने के बजाय वह निर्भीक है। इस कारण लगातार मौसम में परिवर्तन हो रहा है और ग्लेसियर्स के बर्फ तेजी से पिघल रहे हैं, जिसके कारण समुद्र के जलस्तर में भी काफी वृद्घि हुई है

घाटों का शहर है वाराणसी

घाटों का शहर है वाराणसी

वाराणसी में 100 से अधिक घाट हैं. शहर के कई घाट मराठा साम्राज्य के अधीनस्थ काल में बनवाये गए थे. अधिकतर घाट स्नान-घाट हैं, कुछ घाट अन्त्येष्टि घाट हैं. कई घाट किसी कथा आदि से जुड़े हुए हैं, जैसे मणिकर्णिका घाट, जबकि कुछ घाट निजी स्वामित्व के भी हैं. पूर्व काशी नरेश का शिवाला घाट और काली घाट निजी संपदा हैं. वाराणसी में अस्सी घाट से लेकर वरुणा घाट तक सभी घाटों की क्रमवार सूची इस प्रकार से है:

अस्सी घाट
गंगामहल घाट
रीवां घाट
तुलसी घाट
भदैनी घाट
जानकी घाट
माता आनंदमयी घाट
जैन घाट
पंचकोट घाट
प्रभु घाट
चेतसिंह घाट
अखाड़ा घाट
निरंजनी घाट
निर्वाणी घाट
शिवाला घाट
गुलरिया घाट
दण्डी घाट
हनुमान घाट
प्राचीन हनुमान घाट
मैसूर घाट
हरिश्चंद्र घाट
लाली घाट
विजयानरम् घाट
केदार घाट
चौकी घाट
क्षेमेश्वर घाट
मानसरोवर घाट
नारद घाट
राजा घाट
गंगा महल घाट
पाण्डेय घाट
दिगपतिया घाट
चौसट्टी घाट
राणा महल घाट
दरभंगा घाट
मुंशी घाट
अहिल्याबाई घाट
शीतला घाट
प्रयाग घाट
दशाश्वमेघ घाट
राजेन्द्र प्रसाद घाट
मानमंदिर घाट
त्रिपुरा भैरवी घाट
मीरघाट घाट
ललिता घाट
मणिकर्णिका घाट
सिंधिया घाट
संकठा घाट
गंगामहल घाट
भोंसले घाट
गणेश घाट
रामघाट घाट
जटार घाट
ग्वालियर घाट
बालाजी घाट
पंचगंगा घाट
दुर्गा घाट
ब्रह्मा घाट
बूंदी परकोटा घाट
शीतला घाट
लाल घाट
गाय घाट
बद्री नारायण घाट
त्रिलोचन घाट
नंदेश्वर घाट
तेलिया- नाला घाट
नया घाट
प्रह्मलाद घाट
रानी घाट
भैंसासुर घाट
राजघाट
आदिकेशव या वरुणा संगम घाट

कभी गंगा भी एक नदी हुआ करती थी

कभी गंगा भी एक नदी हुआ करती थी!












रांची : सदियों से मां की उपमा लिये और देश की करीब 45 करोड़ से अधिक की आबादी को प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर पालनेवाली गंगा अगली पीढ़ी के लिए इतिहास बनने की राह पर है. गंगा अभी जिस हाल में है, स्थिति वैसी ही रही, तो आज जो बच्चे जन्म ले रहे हैं, वह अपनी जवानी के दिनों में गंगा को नाले के रूप में बहते हुए देखेंगे.

गंगा पर अनवरत शोध में लगे वैज्ञानिकों के निष्कर्ष ऐसे ही संकेत दे रहे हैं. वैज्ञानिक आधार पर निकले ताजा परिणाम हर स्तर पर खतरनाक संकेत दे रहे हैं.

प्रभात खबर से खास बातचीत (दूरभाष पर) में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू
, वाराणसी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक व गंगा अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ यूके चौधरी कहते हैं कि हर स्तर पर गंगा मिट रही है. अद्यतन आंकड़ों के अनुसार गंगा का रिड्यूस लेवल (चौड़ाई) 57.23 मीटर हो गया है, जबकि इसे 57.85 होना चाहिए. गंगा जल में ऑक्सीजन कंटेंट आठ मिलिग्राम प्रति लीटर होना चाहिए, जबकि यह हरिद्वार, प्रयागराज से लेकर बनारस तक में तीन से पांच के बीच पहुंच गया है.

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड कभी भी गंगा में एक से ज्यादा नहीं होता था और गंगा में रहनेवाले जलचरों के लिए इतने से ज्यादा होना भी नहीं चाहिए
, जबकि अभी यह 10-12 के बीच पहुंच गया है. गंगा में गंदगी का हाल यह है कि टोटल डिजोल्व सॉलिड (टीडीएस) 150से अधिक काफी खतरनाक माना जाता है, जबकि अभी यह 370 तक पहुंच गया है. डॉ चौधरी कहते हैं कि सरकारों ने गंगा को खत्म करने की पूरी तैयारी कर ली है.

गंगा पर सिर्फ शोर-शराबा हो रहा है. इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर गर्व महसूस किया जा रहा है. दूसरी ओर समानांतर रूप से हरिद्वार और नरोवा में लगभग
95 प्रतिशत जल को निकाल कर इस सदानीरा नदी को धीरे-धीरे, सदा-सदा के लिए खत्म करने की तैयारी भी सरकारों की ही है.

डॉ चौधरी कहते हैं कि ज्यादा नहीं
, बस 2050 आते-आते गंगा वैसी ही बहती दिखेगी, जैसे बनारस में आज अस्सी और वरुणा नदियां बहती हैं (जबकि इन्हीं दो नदियों वरुणा और अस्सी के नाम पर ही काशी का नाम वाराणसी हुआ था). यानी नाले के रूप में.

जले हजारों दीप, रामेश्वर वरुणा घाट हुआ जगमग


हरहुआ : कार्तिक पूर्णिमा पर रामेश्वर वरुणा घाट पर सुबह जहां हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान कर धाम में भगवान शिव व मां तुलजा भवानी का दर्शन-पूजन किया। वहीं शाम को वरुणा घाट व धाम के मंदिरों में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं दीप जलाकर देव दीपावली मनायी, जिससे पूरा क्षेत्र जगमग हो उठा। इस अवसर पर क्षेत्रीय युवाओं ने वरुणा को स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया। चंदौली के सांसद रामकिसुन ने भी दीपदान कर वरुणा महोत्सव में भाग लिया। इस अवसर पर स्कूली बच्चों ने वरुणा पदी की आरती उतारी व महिलाओं ने मंगलगीत गाये। देर रात तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों भजन-कीर्तन व लोकगीतों का आयोजन हुआ। जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीणों व विशिष्टजनों ने भाग लिया।

वरुणा का अस्तित्व बचाने को १७१ करोड़ का खाका तैयार


वाराणसी। नाले के रूप में तब्दील हो रही वरुणा नदी के कायाकल्प की विस्तृत कार्ययोजना बनाई गई है। सप्ताह भर में अंतिम रूप देकर इसे जल्दी ही प्रदेश सरकार के जरिये केंद्र को भेजा जाएगा।
इलाहाबाद जिले के फूलपुर के मलहान नामक स्थान से निकली वरुणा वाराणसी में आदि केशव घाट पर मिलती है। विभिन्न स्थानों पर औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले उत्प्रवाह के अलावा वाराणसी में घरों से निकलने वाला सीवेज भी करीब तीन दर्जन छोटे-बड़े नालों के जरिय वरुणा में गिरता है। वरुणा के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराते देख इसके कायाकल्प के लिए १७१ करोड़ रुपये की कार्ययोजना बनाई गई है। प्लानर इंडिया के श्यामलाल ने कार्ययोजना में शामिल प्रस्तावों का प्रोजेक्टर के जरिये आज मंडलायुक्त कैंप कार्यालय में विभागीय अधिकारियों के समक्ष प्रदर्शन किया। मंडलायुक्त अजय कुमार उपाध्याय ने बताया कि शहरी क्षेत्र में दानियालपुर से आदि केशव घाट तक १८ किमी की दूरी में वरुणा का कायाकल्प किया जाएगा। इसके तहत नदी में दशकों से कई मीटर गहराई तक जमे सिल्ट को निकला जाएगा। साथ ही वरुणा में जल परिवहन की सुविधा विकसित की जाएगी। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जल परिवहन की व्यवस्था के बाबत १८ किमी की दूरी तक गहराई दो मीटर से अधिक रखी जाएगी। साथ ही नदी की चौड़ाई भी ४५ मीटर रखी जाएगी। बीच-बीच में छह स्थानों पर पर्यटकों के आने-जाने के लिए प्लेटफार्म बनाए जाएंगे। ये प्लेटफार्म संपर्क मार्गों से जुड़ेंगे। नदी के दोनों तरफ ग्रीन बेल्ट के साथ ही पाथवे भी बनाया जाएगा। राजघाट के पास चैनल गेट भी लगाया जाएगा। जल परिवहन की सुविधा विकसित होने से शहर में लगातार बढ़ रहे यातायात दबाव में कमी भी आएगी