जलवायु परिवर्तन का जानलेवा असर बच्चों पर
बच्चे जलवायु-परिवर्तन के जिम्मेदार तो नहीं हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन की सबसे गहरी चोट उन्हीं को लगेगी। जलवायु-परिवर्तन से बच्चों की जिन्दगी को सबसे ज्यादा खतरा है।बाल अधिकारों की वैश्विक संस्था सेव द चिल्ड्रेन द्वारा जारी फीलिंग द हीट-चाइल्ड सरवाईवल इन चेजिंग क्लाइमेट नामक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चों की सेहत को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है।
रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक बुरा असर गरीब मुल्कों पर पड़ेगा-खासकर उपसहारीय अफ्रीकी देशों और दक्षिण एशिया के देश इसकी गंभीर चपेट में होंगे। विश्व के इन हिस्सों में जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव दूरगामी होगा-बीमारियों की प्रकृति में बदलाव आएगा,बीमारों की तादाद बढ़ेगी और पहले से ही कमजोर सामाजिक तथा स्वास्थ्य-ढांचे पर बोझ और ज्यादा बढ जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति वर्ष 90 लाख बच्चे पाँच साल की उम्र पूरी करने से पहले मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।इनमें से ज्यादातर मौतें (98 फीसदी) कम और मंझोली आमदनी वाले मुल्कों में होती हैं।एक तथ्य यह भी है कि सर्वाधिक गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु की तादाद अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है।ज्यादातर बच्चों की मौत गिनी-चुनी बीमारियों और स्थितियों मसलन-कुपोषण, न्यूमोनिया, खसरा, डायरिया, मलेरिया और प्रसव के तुरंत बाद होने वाली देखभाल के अभाव जैसी स्थितियों में होती है।
वैश्विक स्तर होने वाली बच्चों की मृत्यु की विशाल संख्या में उपसहारीय अफ्रीका(40 लाख 70 हजार) और दक्षिण एशिया(30 लाख 80 हजार) का हिस्सा बहुत ज्यादा है।विश्व के इन हिस्सों में मौजूद भयंकर गरीबी, बीमारी और प्राकृतिक संसाधन पर निर्भरता की स्थिति अगामी सालों में जलवायु-परिवर्तन के बीच बच्चों के जीवन के लिए पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक माहौल पैदा करेगी।
रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि बच्चों की मृत्यु का प्रत्यक्ष और सबसे बड़ी कारण भले ही बीमारी हो लेकिन इसके साथ-साथ कुछ अप्रत्यक्ष और ढांचागत कारण भी हैं जिससे बीमार बच्चों का समय रहते ठीक हो पाना संभव नहीं हो पाता।ऐसे कारणों में शामिल है-स्वास्थ्य सुविधाओं का पर्याप्त मात्रा और समुचित रीति से ना उपलब्ध हो पाना, स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई का अभाव,गरीबी,जचगी के संबंध में वैज्ञानिक जानकारी का अभाव और सामाजिक असमानता।जलवायु परिवर्तन इन्हीं स्थितियों की गंभीरता में इजाफा करके बच्चों की जिन्दगी के लिए भारी खतरा पैदा करेगा।
रिपोर्ट में इस बात पर दुःख प्रकट किया गया है कि बच्चों की जिन्दगी पर जलवायु परिवर्तन के खतरे के संबंध में पर्याप्त प्रमाण होने के बावजूद इस पर अब भी नीतिगत स्तर पर सार्वजनिक बहस नहीं होती और ना ही कोई राजनीतिक पहलकदमी के प्रयास दिखते हैं।रिपोर्ट में चेतावनी के स्वर में कहा गया है कि सरकारों और व्यापक जन-समुदाय को यह बात समय रहते समझ लेनी होगी कि दांव पर खुद मानवता का भविष्य लगा है।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों और बच्चों की सेहत पर होने वाले असर के बीच के संबंध को समझना मसले पर राजनीतिक समझ बनाने की दिशा में पहला कदम है।एक उदागरण डायरिया का लिया जा सकता है।
अनुमान के मुताबिक सिर्फ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली स्थितियों के कारण प्रति व्यक्ति 6000 डॉलर सालाना से कम आमदनी वाले देशों में डायरिया की घटना में 2020 तक 2 से 5 फीसदी की बढोतरी होगी। एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में डायरिया के मामलों में 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।इसके अलावा जल-संक्रमण से होने वाली अन्य बीमारियों की तादाद में भी बढ़ोतरी होगी।
अतिसार या डायरिया जिसके उपचार को विकसित मुल्कों में चुटकी का खेल माना जाता है,आश्चर्यजनक तौर पर विकासशील और पिछड़े देशों में बच्चों के लिए जानलेवा साबित होती है।रिपोर्ट के अनुसार सालाना 20 लाख बच्चे सिर्फ डायरिया से मरते हैं और इसमें जलवायु-परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों के कारण होने वाली डायरिया से मरने वाले बच्चों की तादाद 85 हजार है।
रिपोर्ट के अनुसार डायरिया के ज्यादातर मामलों में मूल कारण साफ-सफाई की कमी और स्वच्छ पेयजल का अभाव है।दुनिया में तकरीबन 1 अरब 30 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नसीब नहीं है और अगर जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप विश्व का तापमान 2 डिग्री संटीग्रेड और बढ़ गया तो 1 अरब 30 करोड़ अतिरिक्त आबादी साफ पेयजल से महरुम होगी। इससे डायरिया और जल के संक्रमण से होने वाली बीमारियों का प्रकोप तेज होगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने पर भजल संदूषित होता है।संदूषित भूजल के कारण स्वच्छ पेयजल की समस्या और गंभीर होगी।दूसरे,जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की स्थिति भी बढ़ेगी और सूखे की स्थिति में स्वच्छ पेयजल के अभाव से पहले से ही ग्रस्त लोग मात्र संदूषित पानी के आसरे होंगे। ऐसे में डायरिया की आशंका बलवती होगी।
रिपोर्ट में सप्रमाण बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन, आबादी की बढ़ोतरी,जमीन के इस्तेमाल के बदलते तरीके और निर्वनीकरण की स्थितियां एक साथ मिलकर मलेरिया और डेंगू जैसी कई बीमारियों के प्रकोप में इजाफा करेंगी और इसका सर्वाधिक शिकार बच्चे होंगे।गौरतलब है कि सालाना 10 लाख बच्चे सिर्फ मलेरिया की चपेट में आकर मरते हैं।इनमें पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की तादाद 80 फीसदी होती है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों के कारण बच्चों की सेहत पर खतरे को भांपते हुए रिपोर्ट में सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे कोपेनहेगेन सम्मेलन में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में 80 फीसदी की कटौती के मसौदे पर सहमत हों।
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