वाराणसी : पुरातन नगरी काशी की पहचान असि नदी अब पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। इसके लिए जितने जिम्मेदार शासन-प्रशासन के लोग हैं उतने ही यहां के लोग भी। मीलों रास्ता तय कर गंगा में पहुंचने से पहले ही उसका दम घोंट दिया गया। पुरनिये बताते हैं कि इसी नदी से खेतों में सिंचाई होती रही। हालत यह हुई कि इसका रूप बदल कर घरों से निकलने वाली मोरी (नाली) की तरह हो चुका हैं। यही हाल रहा तो आने वाले समय में इसके वजूद का भी पता नहीं चलेगा। सिर्फ कागज पर ही बहती नदी, नाला व मोरी दिखाई पड़ेगी। इसके किनारे अतिक्रमण का बोलबाला है और विभाग कुंभकरणी नींद में है। भू-स्वामियों ने अतिक्रमण कर मकान तो बनवाया साथ ही दिन-प्रतिदिन इसे पाट कर अपनी सीमा रेखा में मिलाया भी। यह काम आज भी जारी है। अतिक्रमणकारी पहले नाले में बोल्डर डालते हैं फिर घर का कूड़ा करकट डालकर उसे पाटने लगते हैं। नाले की बदबू का भी उन कोई असर नहीं। नाले के किनारे अवैध कालोनियां डेवलप हों और अफसर मौन तो आखिर कैसे मुक्त हो असि।
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