रांची : सदियों से मां की उपमा लिये और देश की करीब 45 करोड़ से अधिक की आबादी को प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर पालनेवाली गंगा अगली पीढ़ी के लिए इतिहास बनने की राह पर है. गंगा अभी जिस हाल में है, स्थिति वैसी ही रही, तो आज जो बच्चे जन्म ले रहे हैं, वह अपनी जवानी के दिनों में गंगा को नाले के रूप में बहते हुए देखेंगे.
गंगा पर अनवरत शोध में लगे वैज्ञानिकों के निष्कर्ष ऐसे ही संकेत दे रहे हैं. वैज्ञानिक आधार पर निकले ताजा परिणाम हर स्तर पर खतरनाक संकेत दे रहे हैं.
प्रभात खबर से खास बातचीत (दूरभाष पर) में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू, वाराणसी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक व गंगा अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ यूके चौधरी कहते हैं कि हर स्तर पर गंगा मिट रही है. अद्यतन आंकड़ों के अनुसार गंगा का रिड्यूस लेवल (चौड़ाई) 57.23 मीटर हो गया है, जबकि इसे 57.85 होना चाहिए. गंगा जल में ऑक्सीजन कंटेंट आठ मिलिग्राम प्रति लीटर होना चाहिए, जबकि यह हरिद्वार, प्रयागराज से लेकर बनारस तक में तीन से पांच के बीच पहुंच गया है.
बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड कभी भी गंगा में एक से ज्यादा नहीं होता था और गंगा में रहनेवाले जलचरों के लिए इतने से ज्यादा होना भी नहीं चाहिए, जबकि अभी यह 10-12 के बीच पहुंच गया है. गंगा में गंदगी का हाल यह है कि टोटल डिजोल्व सॉलिड (टीडीएस) 150से अधिक काफी खतरनाक माना जाता है, जबकि अभी यह 370 तक पहुंच गया है. डॉ चौधरी कहते हैं कि सरकारों ने गंगा को खत्म करने की पूरी तैयारी कर ली है.
गंगा पर सिर्फ शोर-शराबा हो रहा है. इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर गर्व महसूस किया जा रहा है. दूसरी ओर समानांतर रूप से हरिद्वार और नरोवा में लगभग 95 प्रतिशत जल को निकाल कर इस सदानीरा नदी को धीरे-धीरे, सदा-सदा के लिए खत्म करने की तैयारी भी सरकारों की ही है.
डॉ चौधरी कहते हैं कि ज्यादा नहीं, बस 2050 आते-आते गंगा वैसी ही बहती दिखेगी, जैसे बनारस में आज अस्सी और वरुणा नदियां बहती हैं (जबकि इन्हीं दो नदियों वरुणा और अस्सी के नाम पर ही काशी का नाम वाराणसी हुआ था). यानी नाले के रूप में. |
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