वाराणसी : भौतिक सुख के चरम स्पर्श को लालायित रहने वाले हमारे मन ने न सिर्फ परिजनों को दुखी किया वरन पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंचाई है। इन सबमें सबसे भयानक मानवीय प्रवृत्ति, अतिक्रमण ने बला की हद तक काशी के भूगोल संग इतिहास को बदला है। हम अपनी एक नदी अस्सी, जिसे कुछ लोग असि, असी भी कहते हैं, का अवसान देख चुके हैं। यह नदी अब दो फीट, वह दो फीट जिसमें मुकम्मल 24 इंच ही होते हैं, की नाली में कन्वर्ट हो चुकी है। दूसरी नदी वरुणा भी उसी डगर पर है। वरुणा का हश्र देखना हो तो नगर के पुराना पुल पर आपका स्वागत है। सन 1955 से मई 1956 के बीच 15 लाख 50 हजार रुपये मात्र की लागत से बनकर तैयार यह पुल किसी दौर में वरुणा की भव्यता को प्रतिबिंबित करता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. सम्पूर्णानंद ने दूर से आने वाले लोगों के लिए तब इसका निर्माण करवाया था जब सारनाथ में प्रथम बौद्ध महोत्सव आयोजित होना था। तत्कालीन सिंचाई मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस पुल को बैराज का स्वरूप प्रदान करने का अनुरोध किया ताकि इस नदी से सिंचाई व्यवस्था का लाभ लिया जा सके। मुख्यमंत्री ने अनुरोध स्वीकारते हुए पुल को वैसा ही आकार दिया और इस तरह 7 फाटकों वाली यह सुंदर रचना आज हमारे सामने है।
पेच कहां फंसा : दरअसल बैराज बनना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि इस नदी में कभी कितना पानी रहा होगा। आखिर सिंचाई परियोजना हवा में तो चल नहीं जायेगी। आज मंजर बदल चुका है। आप पुराना पुल पर खड़े हो जायें, बैराज के बंद फाटकों के एक तरफ वरुणा में नाले नालियों व सीवर का पानी लबालब दिखलाई देगा वहीं पुल के दूसरी ओर बैराज फाटकों से रिसता बदबूदार झागयुक्त दो-चार बाल्टी पानी घिसटता हुआ गंगा की ओर बहता दिखेगा। आखिर एक मुकम्मल नदी चली कहां गई। यदि वरुणा के सभी सीवर, नालों व नालियों को बंदकर दिया जाय तो यह फटी हुई धरती के अलावा कुछ नहीं। उद्गम से लेकर संगम तक वरुणा का ऐसा कबाड़ा आखिर हो कैसे गया। जानकार बताते हैं कि तमाम प्राकृतिक बरसाती जलस्त्रोत कंक्रीट निर्माण के चलते नष्ट हो गये, शहर की गंदगी ने वाटर होल को पैक कर दिया और नदी के कचड़े ने पानी को जमीन में जब्त करने की हैसियत से महरूम कर दिया। अगर आपको याद हो, कुछ बरस पूर्व चौकाघाट के ध्वस्त हुए पुल का मुकम्मल मलबा आज भी नये पुल के नीचे नदी में ही दफन है। पुल के साथ ही गिरे एक कई चक्का ट्रक को हफ्तों बाद निकाला जा सका था, मलबा आज भी नदी में है। ऐसी ही तमाम दास्तानें हैं जिन्होंने मिल जुलकर नदी का कबाड़ा कर दिया।
हालात यह हैं कि जिन दो नदियों वरुणा व असी के नाम पर नगर का नाम वाराणसी पड़ा था, उनमें से एक नदी असी का अवसान हो चुका है, वरुणा भी उसी डगर पर है। गंगा का हाल हम सब देख ही रहे हैं। आखिर कोई भगीरथ इस शहर में सामने आयेगा भी ..या कि फिर अब इस शहर का नाम ही बदला जाए
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