वाराणसी : खोजवां स्थित शंकुलधारा तालाब की सफाई के लिए रविवार को श्रमदान शुरू हुआ। केंद्रीय देव दीपावली महासमिति व श्रीद्वारिकाधीश शंकुलधारा श्रमदान समिति की ओर से इसके लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया था। पहले दिन तालाब की सीढि़यों की सफाई के साथ पानी से कुछ कचरा भी निकाला गया। इस क्रम में द्वारिकाधीश मंदिर में गोष्ठी आयोजित की गई। मुख्य वक्ता नगर आयुक्त विजय कांत दुबे ने कहा कि भौतिक संसाधनों से संस्कृति का क्षरण कभी नहीं रोका जा सकता। उन्होंने तालाबों के संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने की जरूरत बताई। विकास प्राधिकरण के संयुक्त सचिव सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि कुंडों की रक्षा प्रशासन के साथ नागरिकों का भी दायित्व है। उन्होंने शंकुलधारा तालाब की सफाई में मदद के लिए नाव देने की घोषणा की। डॉ. केके शर्मा, महंत रामादाचार्य, महासमिति के अध्यक्ष बागीश दत्त मिश्र, छेदीलाल वर्मा, गुप्तेश्वर चौधरी, श्रीनारायण द्विवेदी, अशोक कुमार गुप्त, तुलसीदास मिश्र आदि ने विचार व्यक्त किए। संयोजन पन्नालाल सेठ ने किया।
Monday, 23 May 2011
मिट रही उद्धार की इबारत भी
अब तो मां गंगा के उद्धार की उद्घोषणा करने वाले शब्द भी मिटने लगे हैं। इसके लिए लगाया गया शिलापट्ट भी एक कोने में इस तरह दुबक गया है कि ढूंढ़ना मुश्किल। काशी के जिस घाट पर यह उद्घोषणा की गई थी, वह घाट भी अब झुग्गीनुमा दुकानों की भीड़ में गुम हो गया है। न तो यह स्थान मामूली है और न ही उद्घोषणा करने वाला व्यक्ति। यह वह स्थल है जहां से तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने गंगा को प्रदूषण से निजात दिलाने का एलान किया था। मां गंगा की दशा बद से बदतर होती जा रही है पर राजीव गांधी का वह भगीरथ प्रयत्न परवान नहीं चढ़ सका है। स्व. राजीव गांधी ने मां गंगा को निर्मल व स्वच्छ बनाने की योजना बनाई थी। इसके तहत गंगा में गिरने वाले नालों व सीवर को ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ दिया जाना था। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के इस राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत काशी के ही प्रसिद्ध राजेन्द्र प्रसाद घाट से हुई थी। दश्वाश्वमेध घाट से सटे इस घाट पर राजीव ने ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी, 14 जून 1986 को पांच साल के भीतर मां गंगा के मूलरूप को वापस लौटाने का एलान किया था। यह कोई आम एलान नहीं था वरन देश की सर्वोच्च सत्ता द्वारा की गई घोषणा थी। यह अलग बात है कि आज तक यह कार्य पूरा न हो सका बल्कि आज तो इस घोषणा का नामों निशान तक मिटने लगा है। स्थिति यह है कि बाहर से देखने पर राजेन्द्र प्रसाद घाट ढूढ़ा ही नहीं जा सकता। इस घाट पर जाने वाले मार्ग पर झुग्गीनुमा दुकानों का कब्जा है। कभी रेडिश मार्केट का हिस्सा रहीं इन दुकानों को इस घाट पर बसा दिया गया है। घाट पर अगर किसी तरह कोई पहुंच भी जाए तो उसे यह पता नहीं चल सकेगा कि इस स्थल पर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने गंगा को प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए कोई घोषणा की थी या कोई परियोजना शुरू की थी। इस अवसर पर बनाया गया शिलापट्ट अब लापता है। इसकी जगह मानमंदिर की दीवार में राजेन्द्र प्रसाद घाट के निर्माण व उद्घाटन के संबंध में चस्पा शिलापट्ट के अंत में कुछ पंक्तियां गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान की शुरूआत को समर्पित कर दी गई हैं। इसमें लिखा गया है कि ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी संवत 2043 तदनुसार 14 जून 1986 दिन शनिवार को राजीव गांधी प्रधानमंत्री भारत सरकार ने गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान की शुरुआत की थी। वैसे इस शिलापट पर लिखे यह अक्षर भी अब मिटने लगे हैं। यह हालात तब हैं जबकि 1991 में स्व. गांधी की शहादत से उभरी सहानुभूति लहर ने कांग्रेस को केन्द्र में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता दिलाई थी। अब भी केन्द्र सरकार कांग्रेस की ही है।
देश में पीने के पानी का भी होगा अकाल
तेजी से गिर रहे भूजल स्तर से गंगा-यमुना का मैदानी इलाका भी गंभीर जल संकट के भंवर में है। खेती-बाड़ी वाले बड़े राज्यों में जल संकट की वजह से खाद्य सुरक्षा की नई चुनौती खड़ी हो गई है। सूखा और पानी के अंधाधुंध दोहन से देश के 35 फीसदी ब्लॉकों में जमीन का पानी तेजी से सूख रहा है। उत्तरी राज्यों में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आधे से अधिक ब्लॉक डार्क एरिया में तब्दील हो चुके हैं। केंद्र सरकार भी इस पर चिंता जताने से आगे नहीं बढ़ पाई है। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट भूजल संकट की और भी खतरनाक तस्वीर सामने रख रही है। इसमें चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध जल दोहन का हाल यही रहा, तो अगले एक दशक में भारत के 60 फीसदी ब्लॉक सूखे की चपेट में होंगे। तब फसलों की सिंचाई तो दूर पीने के पानी के लिए भी मारामारी शरू हो सकती है। इन्हीं तथ्यों का हवाला देते हुए केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने राज्यों को पत्र लिखकर राज्य भूजल प्राधिकरण के गठन के निर्देश को फिर याद दिलाने की रस्म अदायगी कर ली है, लेकिन एक भी ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 5723 ब्लॉकों में से 1820 ब्लॉक में जल स्तर खतरनाक हदें पार कर चुका है। जल संरक्षण न होने और लगातार दोहन के चलते 200 से अधिक ब्लॉक ऐसे भी हैं, जिनके बारे में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संबंधित राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव से जल दोहन पर पाबंदी लगाने के सख्त कदम उठाने का सुझाव दिया है। जल संसाधन मंत्रालय ने अंधाधुंध दोहन रोकने के उपाय भी सुझाए हैं। इनमें सामुदायिक भूजल प्रबंधन पर ज्यादा जोर दिया गया है। भूजल के भारी दोहन से दिल्ली के तीन जिले डार्क एरिया में शुमार हैं। नतीजतन, यहां पेयजल की आपूर्ति भूजल के बजाय अब गंगा और यमुना के पानी पर अधिक हो गई है। मगर अभी बाकी देश खासतौर से उत्तरी राज्यों में इस दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जा सका है। उत्तरी राज्यों में हरियाणा के 65 फीसदी, पंजाब के 81, राजस्थान के 86 और उत्तर प्रदेश के 30 फीसदी ब्लॉकों में भूजल चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है, वहां की सरकारें आंखें बंद किए हुए हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)