Monday, 23 May 2011

देश में पीने के पानी का भी होगा अकाल


तेजी से गिर रहे भूजल स्तर से गंगा-यमुना का मैदानी इलाका भी गंभीर जल संकट के भंवर में है। खेती-बाड़ी वाले बड़े राज्यों में जल संकट की वजह से खाद्य सुरक्षा की नई चुनौती खड़ी हो गई है। सूखा और पानी के अंधाधुंध दोहन से देश के 35 फीसदी ब्लॉकों में जमीन का पानी तेजी से सूख रहा है। उत्तरी राज्यों में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आधे से अधिक ब्लॉक डार्क एरिया में तब्दील हो चुके हैं। केंद्र सरकार भी इस पर चिंता जताने से आगे नहीं बढ़ पाई है। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट भूजल संकट की और भी खतरनाक तस्वीर सामने रख रही है। इसमें चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध जल दोहन का हाल यही रहा, तो अगले एक दशक में भारत के 60 फीसदी ब्लॉक सूखे की चपेट में होंगे। तब फसलों की सिंचाई तो दूर पीने के पानी के लिए भी मारामारी शरू हो सकती है। इन्हीं तथ्यों का हवाला देते हुए केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने राज्यों को पत्र लिखकर राज्य भूजल प्राधिकरण के गठन के निर्देश को फिर याद दिलाने की रस्म अदायगी कर ली है, लेकिन एक भी ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 5723 ब्लॉकों में से 1820 ब्लॉक में जल स्तर खतरनाक हदें पार कर चुका है। जल संरक्षण न होने और लगातार दोहन के चलते 200 से अधिक ब्लॉक ऐसे भी हैं, जिनके बारे में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संबंधित राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव से जल दोहन पर पाबंदी लगाने के सख्त कदम उठाने का सुझाव दिया है। जल संसाधन मंत्रालय ने अंधाधुंध दोहन रोकने के उपाय भी सुझाए हैं। इनमें सामुदायिक भूजल प्रबंधन पर ज्यादा जोर दिया गया है। भूजल के भारी दोहन से दिल्ली के तीन जिले डार्क एरिया में शुमार हैं। नतीजतन, यहां पेयजल की आपूर्ति भूजल के बजाय अब गंगा और यमुना के पानी पर अधिक हो गई है। मगर अभी बाकी देश खासतौर से उत्तरी राज्यों में इस दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जा सका है। उत्तरी राज्यों में हरियाणा के 65 फीसदी, पंजाब के 81, राजस्थान के 86 और उत्तर प्रदेश के 30 फीसदी ब्लॉकों में भूजल चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है, वहां की सरकारें आंखें बंद किए हुए हैं।

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