डॉ.नरेन्द्र कोहली
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प्रिय व्योेमेश जी,
आपका संदेश मिला। सूर्यभान ने जीवट का काम किया है। यह प्रसन्नदता का विषय है कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी संस्कृपति की रक्षा के लिए दत्तनचित्ता है। देश का भूगोल हमारी संस्कृतति का महत्वदपूर्ण अंग है। उसकी रक्षा, उसकी स्वतच्छाता की रक्षा, संस्कृीति की रक्षा है। दार्शनिक और आध्या्त्मिक दृष्टि से भी हमारी यह मान्य ता है कि ब्रह्म ने ही स्वकयं अपने आप को प्रकृति के रूप में प्रकट किया है। स्वायमी विवेकानन्दह ने कहा था, इट इज़ नॉट क्रियेशन, इट इज़ प्रोजेक्श।न। प्रकृति ब्रह्म से भिन्न् नहीं है। इसलिए गंगा और वरुणा उस ब्रह्म का ही प्रकटीकृत रूप हैं। उनकी पूजा कर हम ब्रह्म की ही आराघना करते हैं और प्रकृति की पूजा उसकी स्वीच्छबता की रक्षा कर ही की जातीहै।
मैं आज तक यह समझ नहीं पाया कि वे लोग, जो सारे महानगरों का मल स्व च्छ सरिताओं में मिलाने की योजनाएं बनाते हैं, जो गंदे नालों को पीने के स्वहच्छछ जल में मिला कर उसे विष में परिणत कर देते हैं, वे स्वकयं को अभियन्ताह, वास्तुेश्रिल्पीि और नगरनिर्माता कहने का साहस कैसे करते हैं। कैसे हमारी शैक्षिक संस्थासएं उनको वे उपाधियों देती हैं और कैसे हमारी सरकारें उनको अधिकारी विद्वान् मानती हैं।
मैं उन लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूं, जो गंगा और वरुणा के स्व च्छन अस्तित्वक की रक्षा के लिए प्रयत्नर ही नहीं कर रहे, अपने प्राणों पर संकट झेल कर अनशन पर बैठे हैं। मैं भारत माता से प्रार्थना करता हूं कि वह अपने इन सपूतों के भाल पर स्वैयं अपने हाथ से सफलता का तिलक अंकित कर दें।
आपका
नरेन्द्र कोहली
14.6.2008
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