Thursday, 16 June 2011

वाराणसी :जलमार्ग पर तने मकान

कम लोगों को पता होगा कि कभी सारनाथ तक मालवाहक नावें भी चला करती थीं। लंदन के टेम्स नदी सरीखे उस जलमार्ग के किनारे लोगों के आशियाने व आश्रम थे। भगवान बुद्ध की तपोभूमि तक श्रद्धालुओं के पहुंचने के लिए कभी यह प्रमुख मार्ग था। लगभग 17 सौ वर्ष पूर्व गुप्तकाल में सारनाथ से अकथा होते हुए वरुणानदी में मिलने वाले नरोखर रजवाहा जिसे आज लोग नरोखर नाले के रूप में जानते हैं, का उपयोग जलमार्ग के रूप में होता था। आज उसका अस्तित्व खतरे में है। भू माफियाओं से लेकर सरकारी मशीनरी तक ने गुप्तकाल की इस धरोहर का विनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध सारनाथ आए थे। उनके महाप्रयाण के बाद सम्राट अशोक के समय स्तूप, मंदिर आदि के निर्माण के लिए पत्थरों की आवश्यकता हुई। नावों के जरिए चुनार (मीरजापुर) से पत्थर गंगा नदी के रास्ते बनारस तक पहुंचा। सारनाथ तक उन विशालकाय पत्थरों को पहुंचाने को एकमात्र रास्ता जलमार्ग था। नाव सरायमोहना से वरुणा में नक्खीघाट तक तो पहुंची लेकिन वहां से सारनाथ के लिए कोई रास्ता नहीं था। तब कामगारों ने सलारपुर के पास पुराना ओवरब्रिज के समीप से जलमार्ग तैयार करना शुरू किया। 20 से 35 फीट तक चौड़ा लगभग 15 किलोमीटर लंबा यह जलमार्ग टडि़या, अकथा, तिसरिया, परशुरामपुर, गंज, खजुही होते हुए सारनाथ तक पहुंचा। बाढ़ के दौरान सारनाथ इलाका कहीं डूब न जाए, उस समय की दक्ष इंजीनियरिंग का नमूना पेश करते हुए कामगारों ने 84 बीघे में नरोखर ताल का निर्माण किया और उसे चारों ओर भीटा से घेर कर बांध की शक्ल दी ताकि बढ़ा हुआ पानी वहां इकट्ठा हो सके। बौद्ध धर्म के अनुयायी व वहां रहने वालों के लिए विशालकाय ताल स्नान आदि का प्रमुख स्थल बना। समय का पहिया घूमने के साथ ही नरोखर रजवाहा पर भू माफियाओं ने कब्जा करना शुरू कर दिया। जिसे जहां जगह मिली वहीं ईट से घेरकर अपनी नेमप्लेट लगा ली। आलम यह है कि रजवाहा कहीं दस तो कहीं चार फीट रह गया है। गनीमत है कि उसका कुछ नामोनिशान वन विभाग के डीयर पार्क के चलते अभी बचा है। ऐसा ही कुछ हाल नरोखर ताल का भी है। भीटे पर सरकार ने कछुआ प्रजनन केंद्र व जिला शिक्षा प्रशिक्षण खोल दिया। भू माफियाओं ने ताल की जमीन के साथ भीटे को काटकर दर्जनों बीघे जमीन की प्लाटिंग कर डाली। भू माफियाओं की इस करतूत में नगर निगम व तहसील प्रशासन ने उनका खूब साथ दिया। बीते दस वर्षो के भीतर सैकड़ों मकान ताल, भीटा पर खड़े हो गए। अनुमति के बगैर जगह-जगह पुलिया का निर्माण कर दिया गया। नरोखर ताल में ही वर्तमान में पर्यटन विभाग की ओर से लोटस पार्क बनाने की तैयारी चल रही है। दूसरी ओर चौबेपुर से गंगा नदी से एक पाइपलाइन नरोखर ताल तक लाई जा रही है ताकि वहां एकत्र पानी का शोधन कर पेयजल की सप्लाई की जा सके।

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