Saturday 11 June, 2011
वॉटर मैनेजमेंट के लिए भेजा प्लान
बगावत पर उतारू पाताल, पानी का साथ छोड़ते कुंए, तालाब, ताल-तलैया और सूखते हलक को देखते हुए अब वॉटर मैनेजमेंट पर सोचना बेहद जरूरी हो गया है। एक तरफ गंगा को बचाने की गंभीर चुनौती हमारे सामने है तो दूसरी तरफ पेयजल और सिंचाई सुविधा को बरकरार रखने की जरूरत। ऐसे में खासतौर से सरकारी स्तर पर पानी को लेकर मजबूत व ठोस पॉलिसी बनानी पड़ेगी जिससे पेयजल व सिंचाई के लिए गंगा व भूमिगत जल के बेहिसाब दोहन पर अंकुश लगे। इस बाबत राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के वैज्ञानिक सदस्य और बीएचयू के पर्यावरणविद् प्रो. बीडी त्रिपाठी ने वॉटर मैनेजमेंट पर आधारित एक अध्ययन रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रेषित की है। साथ ही इसकी एक प्रति गंगा बेसिन मैनेजमेंट प्लान के लिए गठित आईटियन्स ग्रुप के कोआर्डिनेटर प्रो. विनोद तारे को भी भेजी है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि हाल ही में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की बैठक में उन्होंने अगाह किया कि हालात को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर वॉटर मैनेजमेंट पॉलिसी तैयार करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है अन्यथा गंगा घाटी क्षेत्र को ड्राईजोन में तब्दील होने से रोका नहीं जा सकेगा। इस बाबत उनसे सुझाव मांगे गए थे। बुधवार को भेजे गए अपने पत्र में उन्होंने बताया है कि, गंगा का प्रवाह घटने से जहां प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है तो बालू जमाव बढ़ने से जल-जीव मर रहे हैं। बड़ा संकट यह है कि गंगा और इसकी घाटी का ईको सिस्टम लड़खड़ा रहा है। ऐसे में गंगा का फ्लो बढ़ाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही ध्यान यह भी रखना होगा कि सिंचाई व पेयजल के नाम पर गंगा का दोहन संतुलित मात्रा में किया जाए। खासतौर से सिंचाई के लिए तो हरहाल में विकल्प तलाशनें होंगे। इसके लिए हमारे पास री-साइकलिंग ऑफ वेस्ट वॉटर तकनीक मौजूद है। हमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के शोधित जल को गंगा में गिराने के बजाए उसे आसपास के कैनाल व नहरों के हवाले कर उसे सिंचाई में प्रयोग करने की योजना बनानी होगी। इससे जहां कैनालों में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी तो खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी कामयाब होंगे। हमें फ्लड एरिगेशन सिस्टम की जगह माइक्रो एरिगेशन तकनीक व्यवहार में लाना होगा ताकि कम पानी में बेहतर सिंचाई कर सकें। ट्रीटमेंट वॉटर के आधार पर नहरों को थोड़ा और विस्तार दे दिया गया तो ये नहर हमारे ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज करने में भी सहायक हो सकती हैं। ठीक इसी तरह पेयजल के लिए हमें वर्षाजल को संरक्षित करने के संसाधनों को हरहाल में विकसित करना होगा। पुराने कुएं, तालाब, बावड़ी, कुंड को वजूद में लाना होगा। ये हमारे भूमिगत जल स्तर को न केवल बढाएंगे बल्कि एक तरफ गंगा जल के दोहन पर हद तक अंकुश लगाएंगे। साथ ही ये हमारे इकोनामिक ग्राफ को भी बढ़ाएंगे। मखाना, मछली पालन, सिंघाड़ा आदि पानी तो लेते नहीं उल्टे धन जरूर दे जाते हैं। हमें वॉटर मैनेजमेंट पॉलिसी तैयार करते समय लोकल स्तर पर भी मॉनीटरिंग कमेटी के गठन पर विचार करना होगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment