Thursday, 6 January 2011

हर दिल जोड़ लेंगे पानी बचाने के वास्ते


वाराणसी, कार्यालय प्रतिनिधि : जल आज की जरूरत है, इसे सभी मानते हैं, समझते हैं और जानते भी हैं पर कुछ ही लोग ऐसे है जिन्हें जल से इतना प्यार है कि वे नाहक इसे बर्बाद नहीं करते हैं और दूसरों को भी इसकी सीख देते नजर आते हैं। जल संरक्षण की इस मुहिम में उन्होंने न सिर्फ अपने विद्यार्थियों को शामिल किया है बल्कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आसपास के 11 गांवों में बकायदे जल संरक्षण समितियां तक गठित कर डाली है। इन समितियों के माध्यम में वह पानी बचाने के इरादे से गांवों के लोगों को शामिल किए हुए हैं। इरादा यही है कि पानी की एक भी बूंद बर्बाद न होने पाए, बारिश का जल भी बेकार न हो और इस जल को भूजल पुनर्भरण की प्रक्रिया में लगा दिया जाए। बीएचयू स्थित पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र के संस्थापक सदस्य प्रो. बीडी त्रिपाठी ने पानी के प्रति दिल जोड़ने की मुहिम छेड़ी है। कहते हैं कि पानी जीवन की आवश्यकता है और यही नहीं रहा तो विकास व तमाम उपलब्धियों का कोई मायने नहीं रहेगा, लिहाजा जरूरी है कि सबसे पहले पानी बचाया जाए। बस इसी सोच में उन्होंने अपनी नजर गांवों की ओर की और समितियां बनाकर वर्षा जल संचयन व भूजल पुनर्भरण के प्रति प्रेरित करने का सिलसिला शुरू कर दिया। विश्वविद्यालय परिसर के आसपास के 11 गांवों में ये समितियां सक्रिय हैं जो लोगों को जागरूक कर रही हैं। प्रो. त्रिपाठी बताते हैं कि प्रत्येक गांव का प्रधान इस समिति का संयोजक है और इसमें सदस्य के रूप में दस महिला व दस पुरुष शामिल हैं। इन्हें इसलिए प्रशिक्षित किया जा रहा है जिससे कि ये लोग कम से कम अपने गांव में सभी को जल संरक्षण के प्रति शिक्षित व प्रशिक्षित कर सकें। इन गांवों में बनी हैं समितियां- प्रो. त्रिपाठी कहते हैं रमना, टिकरी, चितईपुर, मुड़ादेव, सराय डगरी, सीर-गोवर्धनपुर, करौंदी, सुसवाहीं, नुआंव, नासिरपुर व कंचनपुर में ये समितियां बनाई गई है। इन समितियों के माध्यम से जल के महत्व, संरक्षण के तरीके से लोगों को अवगत कराया जा रहा है। डाक्यूमेंट्री-नुक्कड़ नाटक भी- जल संरक्षण की वस्तु स्थिति से अवगत कराने के लिए प्रो. त्रिपाठी ने डाक्यूमेंट्री भी बना रखी है। इसे वह लोगों को अक्सर दिखाते भी रहते हैं। कहते हैं कि ग्रामीणों को उनके भावों के आधार पर नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से जागरूक करते हैं। केवल इतना ही नहीं सिंचाई के दौरान कम से कम पानी का अधिक से अधिक उपयोग के तरीके भी बताते हैं जिससे कि जल का पूरा व समुचित उपयोग हो सके। जल संचयन का बताते हैं तरीका- प्रो. त्रिपाठी कहते हैं कि वर्षा जल संचयन के लिए परिसर सात भवनों पर रूफ टाप रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया है। समितियों के सदस्यों को इसे दिखाकर इसकी उपयोगिता आदि बताई जाती है जिससे कि वे दूसरों को इसके प्रति प्रेरित कर सकें। तालाबों के पुनरोद्धार की प्रेरणा- प्रो. त्रिपाठी कहते हैं कि ग्रामीणों को उनके गांवों में तालाबों के पुनरोद्धार के प्रति भी प्रेरित किया गया है। इसके सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं। बताते हैं कि इन गावों में गर्मी के दिनों में जो कुएं सूख जाया करते थे प्रशिक्षण के उपरांत अब ऐसे कुएं में पानी दिखता है। इससे स्पष्ट होता है कि उनकी मुहिम सफलता की ओर बढ़ रही है। अगला इरादा शहर की ओर- प्रो. त्रिपाठी कहते हैं कि प्रशिक्षण का यह कदम रुकेगा नहीं। गांव के बाद अब वे शहर के सभी वार्डो में जल संरक्षण समितियों का गठन करने का इरादा रखते हैं। कहते हैं सभी 90 वार्डो में पार्षदों को संयोजक व प्रत्येक वार्ड से दस पुरुष व दस महिला को सदस्य बनाकर जल संरक्षण की मुहिम को बल देंगे। मशाल जलाई तो बुझने नहीं देंगे- प्रो. त्रिपाठी कहते हैं कि जल संरक्षण की जो मशाल जलाई है उसे बुझने नहीं देंगे। अपने इस इरादे में वह सभी को साथ- साथ लेने की हर जुगत की जा रही है। इसके परिणाम भी सार्थक ही निकलेंगे क्योंकि जल सभी के जीवन से जुड़ा है।

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