Wednesday, 26 January 2011

तालाब आजादी की ओर


काशी विद्यापीठ ब्लाक, वाराणसी : इसे स्वत: स्र्फूत सकारात्मक जंग का नाम दे सकते हैं। कारण कि इधर से गुजरने वाले की नजर पड़ती और लोग कुछ देर ठहरकर स्थिति को समझते और जूझ पड़ते। यह सर्जनात्मक कार्य रोहनिया-बाईपास संपर्क मार्ग के नजदीक गांव हरिहरपुर में रविवार को शुरू हुआ। यहां के लोगों ने जलकुंभी में कैद तालाब को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया। बड़ी खासियत यह थी कि इसकी अगुवाई ग्राम प्रधान लल्ली देवी कर रहीं थी, साथ में थे पति और गांव के लोग। सफाई शुरू होते ही लोगों की संख्या बढ़ने लगी और तालाब से बाहर होने लगी जलकुंभी। यूं तो देखने में यह काम बड़ा मुश्किल लग रहा था पर इसने नजीर का रूप लिया। यह नजीर इसलिए कि इस ओर से गुजरने वाले भी कुछ देर के लिए ठहरते, देखते और सराहना करते नहीं थकते। युवाओं का जोश भी उफान पर था और वे बगैर थके अपने लक्ष्य को पाने में जुटे थे। ग्रामप्रधान लल्ली देवी व उनके पति निखिद्दी राजभर कहते हैं कि गांव वालों से तालाब की सफाई का प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव ने मंत्र सा काम किया और लोग जूझ पड़े जलकुंभी के खिलाफ। आदर्श जलाशय योजना के तहत वर्ष 2006-07 में एक लाख रुपये की अधिक की लागत से तालाब की खोदाई, जीर्णोद्धार, घाट, सीढ़ी, आदि का निर्माण कराया गया मगर कुछ दिनों के बाद इस तालाब की पहचान को जलकुंभी व कीचड़ ने ढक लिया। ग्रामीणों ने श्रमदान से अपने गांव के तालाब को नया कलेवर देने का जज्बा बना लिया है। अब इस जज्बे में शामिल है तालाब को मॉडल के पैमाने पर खड़ा करना। ग्राम प्रधान कहती हैं कि बढ़े कदम पीछे नहीं हटेंगे। श्रमदान की यह मुहिम तब तक चलती रहेगी जब तक अपने गांव के इस तालाब के नीर को स्वच्छ लबालब नहीं कर लेंगे।

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