इलाहाबाद, विधि संवाददाता : कड़े निर्देशों के बावजूद गंगा का पानी भूरा होने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है। साथ ही बुधवार को अदालत में हाजिर प्रदेश के मुख्य सचिव अतुल गुप्ता को गंगा में प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर तीन सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा है कि पिछले पांच वर्ष से याचिका पर निर्देश जारी हो रहे हैं। माघ मेले के दौरान नरोरा से पानी छोड़ने के सिवाय किसी आदेश का पालन नहीं किया गया और अधिकारियों ने विरोधाभासी हलफनामा दाखिल किये। न्यायालय ने मुख्य सचिव से गंगा की मुख्य धारा में पानी बने रहने व उससे पानी खींचने की मात्रा के बारे में सरकार के विचार पेश करने को कहा है। साथ ही गंगा में 50 फीसदी पानी को छोड़ना जारी रखने का भी आदेश दिया है। न्यायालय ने सरकार से इस बारे में अपना पक्ष स्पष्ट करने को भी कहा है।
याचिका की अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी। गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति अरुण टंडन की खंडपीठ कर रही है। न्यायालय ने कहा है कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जनता को शुद्ध पानी पाने का अधिकार है। इम्पावर कमेटी ने गंगा में अधिकतम बीओडी तीन से अधिक न होने की रिपोर्ट दी है। तमाम प्रयासों के बाद इलाहाबाद संगम में बीओडी 8.6 है। मुख्य सचिव ने कानपुर के चमड़ा उद्योगों को शिफ्ट करने या ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए पानी सिंचाई के लिए उपयोग में लाने जैसे चार विकल्पों पर विचार करने की जानकारी दी। न्यायालय ने इस मामले की जांच कर रहे गुड़गांव के कंसल्टेंट की रिपोर्ट 28 फरवरी तक पेश करने को कहा है। साथ ही कहा कि रिपोर्ट को आइआइटी, कानपुर व नेरी संगठन को अध्ययन के लिए सौंपा जाय ताकि न्यायालय इसके बेहतर विकल्प की स्वीकार्यता पर विचार कर सके। न्यायालय ने राज्य सरकार को अपने वायदे के अनुरूप फरवरी तक शहर की सड़कों की पूर्ववत बहाली का भी निर्देश देते हुए काम पूरा करने को कहा है। न्यायालय ने शहर में बिछ रही सीवर लाइन डीपीआर के विपरीत होने के मामले में मुख्य सचिव से कड़ी कार्रवाई को कहा है
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