Sunday, 15 April 2012

लोक कल्याण के लिए निकल पड़े स्वामी सानंद

- प्रमोद मालवीय

वाराणसी। मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरी घड़ी रात के 1.30 बजने की जानकारी दे रही थी। मेरे एक तरफ मनकोही (मध्यप्रदेश) के घटाटोप जंगल की स्तब्धता तो दूसरी तरफ इस मौन को खंडित करती नर्मदा नदी की अविरल कल-कल। मेरी आंखें महज दो हाथ की दूरी पर पाषाण खंड पर गठरी बने एक वैभव को निहार रही थी। निविड़ अंधकार के बावजूद गठरी बने इस वैभव के चारों ओर एक आभा मंडल प्रकाशित था जिससे उन्हें पहचानने में कोई दिक्कत न थी। कोई भी स्वामी सानंद के इस तेजस्वी रूप के आगे नतमस्तक हो सकता था। गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए तपस्यारत स्वामी जी के इस स्वरूप को देख कर मन में बस यही भाव उठ रहे थे मानों लोक कल्याण के लिए महर्षि दधीचि ने एक बार फिर देहदान की ठान ली हो। न चाहते हुए भी गंगा की दुर्गति के जिम्मेदार लोगों के प्रति क्षोभ की एक आंधी सी मन में उठी और आंसुओं की शक्ल में आंखों से छलक उठी। स्मृति पटल पर अतीत की कुछ धुंधली तस्वीरें गड्डमड्ड हो रही थीं जिन्हें आकार लेने से रोक पाना मरे बस का न था। वेदना इस बात की थी कि गंगा के लिए आज संन्यास धर्म निबाह रहे इस परमहंस को अभी कल तक पद और प्रतिष्ठा कर्ण के कवच-कुंडल की तरह हासिल थीं। मां गंगा की एक पुकार पर मनीषी सानंद ने मात्र एक पल में सारी श्री -समृद्धि को तन के उत्तरीय की तरह उतार फेंका। आज वही व्यक्तित्व सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। सिर्फ इस कामना के लिए कि गंगा अविरल बहती रहे, लोक का मंगल करती रहे। क्षोभ इस बात का है कि इस पवित्र-पावनी को अविरल-निर्मल बनाए रखने में सरकारों का क्या नुकसान हो रहा है, सुनसान और अंधेरी रात में मैं इस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहा हूं बुधवार को फेसबुक पर मन को झकझोर देने वाला यह संदेश अविछिन्न गंगा सेवा अभियानम् के सार्वभौम संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सजल आंखों और क्षोभ से कांपती अंगुलियों से दर्ज किये। मनकोही के जंगलों में तपस्या के दौरान उन्होंने फेसबुक पर जो लिखा उसका मजमून कुछ यूं रहा -बहुत दूर नहीं है हम, जहां स्वामी सानंद जी सो रहे हैं। कितनी सहजता से कल उन्होंने पुन: जलत्याग कर तपस्या आरंभ कर दी। वे तो सो रहे हैं शांति से पर न जाने क्यों हमें नीद नहीं आ रही, जो व्यक्ति देश भर के लिए समर्पण की तरह है, जिनके ज्ञान का लाभ देश उठा सकता है, उनकी बातों को अनसुना किया जा रहा है।

No comments: