वाराणसी : नगर के मध्य से होकर बहने वाली वरुणा नदी का पानी स्नान तो दूर, स्पर्श के लायक भी नहीं रह गया है। वरुणापार इलाके में खुले तमाम स्लाटर हाउस मालिक व चिकेन मटन विक्रेता, मृत जानवरों के अपशिष्ट नदी में धड़ल्ले से डाल रहे हैं। बस, दो मिनट के लिए शास्त्री घाट पर ठहर जाइए, नदी में तैरते अपशिष्ट व उसे खाने के लिए लड़ते कुत्ते नदी की सारी व्यथा बयां कर देंगे। रही सही कसर नगर निगम के कर्मचारी व जमीन के धंधे से जुड़े लोग नदी को पाटने की कोशिश में कूड़ा-कचरा डालकर पूरी कर दे रहे हैं। वरुणा के किसी भी पुल से गुजरते वक्त इतनी तीव्र दुर्गध आती है कि लोगों का जी मिचलाने लगता है। वाहन सवार पुल पर पहुंचते ही 'नरक' से गुजरने के अहसास के साथ वाहन की स्पीड बढ़ा देते हैं। प्रशासनिक अमला अस्तित्व को जूझ रही वरुणा को बचाने के लिए समय-समय पर वादों व कार्ययोजनाएं गिनाने की झड़ी लगा देता है। कभी टेम्स बनाने का तो कभी हरित पट्टी, डैम बनाने से लेकर पर्यटन की दृष्टि से वरुणा को विकसित करने का दावा कई बार हो चुका है लेकिन अभी तक कोई कवायद शुरू नहीं हुई।
नगर निगम है दोषी : जिला प्रशासन का कहना है कि नदी में गिर रहे अपशिष्ट पदार्थ के लिए सीधे तौर पर नगर निगम जिम्मेदार है। एडीएम सिटी एमपी सिंह के अनुसार पूर्व में नगर निगम के एक अधिकारी ने जिला प्रशासन को धोखे में रखते हुए हुकुलगंज क्षेत्र में कई स्लाटर हाउस को संचालन की अनुमति दे दी। मामला संज्ञान में आने के बाद जब पूछताछ की गई तो निगम से जवाब आया कि उनके लाइसेंस निरस्त किए जाएंगे। कई माह गुजर चुके हैं लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। वरुणापार इलाके में चिकेन-मटन शॉप की दुकानों को भी निगम ने ही लाइसेंस दे रखा है। लाइसेंस में पशुओं के अपशिष्ट के निस्तारण के संबंध में शर्ते होती हैं जिसका पालन कराना निगम की जिम्मेदारी है। बकौल एडीएम सिटी एमपी सिंह ..अफसोस कि ऐसा हो नहीं रहा है।
बन जाएगा एक दिन नाला : जिला प्रशासन हो या शहरवासी, यदि अब किसी ने इसके अस्तित्व की रक्षा को आगे कदम नहीं बढ़ाया तो जिले को वाराणसी (वरुणा और असि) नाम देने वाली वरुणा भी एक दिन असि की तरह वरुणा नाला कही जाने लगेगी। नदी को किसी ऐसे जीवट वाले व्यक्ति का इंतजार है जो उसके वैभवशाली अतीत को वापस ला दे। कई स्थानों पर नदी नाला बन गई है। आसपास लोगों के मकान बन गए हैं। अपने घरों का गंदा पानी इसी में गिरा रहे हैं। पुल से गुजरते समय देख सकते हैं कि अक्सर ही लोग कूड़ा-करकट का पैकेट घुमाकर नदी में फेंक देते हैं। नदी को बचाने की दिशा में न तो सरकारी तंत्र में कोई दृढ़ता दिख रही और न ही स्वयंसेवी संगठनों में।
जुलाई से बंद है फाटक : जुलाई 2011 से ही पुराना पुल स्थित फाटक को सिंचाई विभाग ने बंद कर रखा है। इसके चलते वरुणा का पानी गंगा में नहीं जा रहा है। ठहराव के कारण पानी और भी प्रदूषित हो गया है। मालूम हो कि जिन दिनों गंगा का पानी तेजी से बढ़ता है तो वरुणा ही उसके 'वेग' को संभालती है, जिससे शहर को ज्यादा क्षति नहीं होती। यदि वरुणा को गहरा कर वर्ष भर जल संग्रह के लिए कुछ स्थानों पर डैम बना दिए जाएं तो यहां के जलस्तर में सुधार हो सकता है। इसी तरह जिला प्रशासन ने बनारस पैकेज में वरुणा नदी को गहरा करने व डैम बनाने का प्रस्ताव प्रदेश सरकार के पास भेजा था जिसे शासन में बैठे अफसर समझ नहीं सके। उन्हें बनारस के लिए वरुणा की कोई उपयोगिता ही नहीं दिखी। इसी कारण उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।
नगर निगम है दोषी : जिला प्रशासन का कहना है कि नदी में गिर रहे अपशिष्ट पदार्थ के लिए सीधे तौर पर नगर निगम जिम्मेदार है। एडीएम सिटी एमपी सिंह के अनुसार पूर्व में नगर निगम के एक अधिकारी ने जिला प्रशासन को धोखे में रखते हुए हुकुलगंज क्षेत्र में कई स्लाटर हाउस को संचालन की अनुमति दे दी। मामला संज्ञान में आने के बाद जब पूछताछ की गई तो निगम से जवाब आया कि उनके लाइसेंस निरस्त किए जाएंगे। कई माह गुजर चुके हैं लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। वरुणापार इलाके में चिकेन-मटन शॉप की दुकानों को भी निगम ने ही लाइसेंस दे रखा है। लाइसेंस में पशुओं के अपशिष्ट के निस्तारण के संबंध में शर्ते होती हैं जिसका पालन कराना निगम की जिम्मेदारी है। बकौल एडीएम सिटी एमपी सिंह ..अफसोस कि ऐसा हो नहीं रहा है।
बन जाएगा एक दिन नाला : जिला प्रशासन हो या शहरवासी, यदि अब किसी ने इसके अस्तित्व की रक्षा को आगे कदम नहीं बढ़ाया तो जिले को वाराणसी (वरुणा और असि) नाम देने वाली वरुणा भी एक दिन असि की तरह वरुणा नाला कही जाने लगेगी। नदी को किसी ऐसे जीवट वाले व्यक्ति का इंतजार है जो उसके वैभवशाली अतीत को वापस ला दे। कई स्थानों पर नदी नाला बन गई है। आसपास लोगों के मकान बन गए हैं। अपने घरों का गंदा पानी इसी में गिरा रहे हैं। पुल से गुजरते समय देख सकते हैं कि अक्सर ही लोग कूड़ा-करकट का पैकेट घुमाकर नदी में फेंक देते हैं। नदी को बचाने की दिशा में न तो सरकारी तंत्र में कोई दृढ़ता दिख रही और न ही स्वयंसेवी संगठनों में।
जुलाई से बंद है फाटक : जुलाई 2011 से ही पुराना पुल स्थित फाटक को सिंचाई विभाग ने बंद कर रखा है। इसके चलते वरुणा का पानी गंगा में नहीं जा रहा है। ठहराव के कारण पानी और भी प्रदूषित हो गया है। मालूम हो कि जिन दिनों गंगा का पानी तेजी से बढ़ता है तो वरुणा ही उसके 'वेग' को संभालती है, जिससे शहर को ज्यादा क्षति नहीं होती। यदि वरुणा को गहरा कर वर्ष भर जल संग्रह के लिए कुछ स्थानों पर डैम बना दिए जाएं तो यहां के जलस्तर में सुधार हो सकता है। इसी तरह जिला प्रशासन ने बनारस पैकेज में वरुणा नदी को गहरा करने व डैम बनाने का प्रस्ताव प्रदेश सरकार के पास भेजा था जिसे शासन में बैठे अफसर समझ नहीं सके। उन्हें बनारस के लिए वरुणा की कोई उपयोगिता ही नहीं दिखी। इसी कारण उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।
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