Saturday, 12 February 2011

गंगा-गोमती में आर्सेनिक!

गंगा की सफाई नहीं हो पा रही, यह विषय पुराना हुआ। नई बात यह है कि पहली बार गंगा में आर्सेनिक मिला है। आर्सेनिक यानी संखिया जो सेहत के लिए धीमा जहर है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड को आर्सेनिक मिला है कानपुर और इलाहाबाद में। यह खबर सरकारों और पर्यावरणविदों के माथे पर इसलिए बल डाल रही है क्योंकि घोर प्रदूषण के बावजूद पावन गंगा अभी तक आर्सेनिक से बची हुई थी। चिंताजनक खबर यह भी है कि गंगा की एक सहायक नदी गोमती में भी आर्सेनिक पाया गया है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. राम प्रकाश ने इस बारे में शोध किया। इसकी रिपोर्ट के अनुसार कानपुर व इलाहाबाद में गंगा के पानी में आर्सेनिक मानक 10 माइक्रो ग्राम के मुकाबले 9 से 27 माइक्रोग्राम प्रति लीटर के स्तर में पाया गया है। वहीं, लखनऊ में भी गोमती में आर्सेनिक 20 माइक्रोग्राम तक मिला है। यमुना नदी खासकर मथुरा, वृंदावन क्षेत्र में भी कैडमियम, लेड, निकिल, मैगनीज, जिंक, आयरन जैसे विषाक्त धातुओं से प्रदूषित पाई गई है। यही वजह है कि रिपोर्ट आते ही विश्व बैंक ने समूचे गंगा बेसिन में नदियों की जल गुणवत्ता की गहन जांच की सिफारिश की है। सवाल यह है कि गंगा व अन्य नदियों को सीवेज प्रदूषण से मुक्त करने के लिए लगाये जाने वाले सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) क्या नदी जल को इन घातक रसायनों से निजात दिला पाएंगे? जल निगम के प्रबंध निदेशक एके श्रीवास्तव कहते हैं कि एसटीपी में इस प्रकार के घुलित रसायनों को दूर करने की क्षमता नहीं होती है। नदी जल में रासायनिक विषाक्तता के यह मामले इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कई शहरों में पेयजल आपूर्ति नदियों पर टिकी है। पेयजल शोधन में इन विषाक्त धातुओं व कीटनाशकों आदि के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। साफ है कि शहरवासियों की सेहत इन घातक खतरों से घिरी है। जो आर्सेनिक बालू व मिट्टी के कणों में मौजूद होता है वही घुलित रूप में पानी में आ जाता है।-डॉ.राम प्रकाश, केंद्रीय भूमिजल बोर्ड गंगा में आर्सेनिक पहली बार मिला है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा जाएगा कि वह भी जांच करा लें जिससे यह पता चल सके कि गंगा में इसका कहां से कहां तक प्रभाव है।-डॉ.सीएस भट्ट, सदस्य सचिव, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहां दबी है रिपोर्ट आइआइटीआर ने 15 वर्ष पूर्व गंगा व गोमती में बड़ी मात्रा में कीटनाशक पाये जाने की पुष्टि की थी। रिपोर्ट राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय को भेजी गई थी। लेकिन इस पर क्या कदम उठाये गए किसी को पता नहीं।

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