Saturday 26 February, 2011
काशी का दर्द : गंगा है, गंगाजल नहीं
वाराणसी, अविरल प्रवाह का गला घोंटने से विकलांग हो चुकी गंगा का भविष्य सवालों के घेरे में है। जिस गंगा की एक बूंद मात्र से मन निर्मल और तन पावन हो जाता हो, पवित्रता जिसकी पहचान हो और जिसपर करोड़ों-करोड़ लोगों की अटूट आस्था टिकी हो उसे अपने जल से विहीन कर नालों के हवाले किये जाने का ही परिणाम है कि काशी में गंगा सूखती जा रही है। इसके जल-गुण नष्ट हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा में गंगाजल के घटते अनुपात से यह नदी धीरे-धीरे एक बड़े नाले का रूप अख्तियार करती जा रही है। गंगा में घाटों के निकट डीओ (घुलित आक्सीजन) की मात्रा सात पीपीएम से किन्हीं भी परिस्थितियों में कम नहीं होनी चाहिए। यह आज घट कर 4 पीपीएम के आसपास हो गई है। बीओडी लोड दो पीपीएम से ऊपर नहीं होना चाहिए, यहां बढ़कर औसतन 16 पीपीएम हो गयी है। ऊपर से औद्योगिक इकाइयों के बढ़ते अवजल से गंगा के पानी में जहरीले विषाणुओं की भरमार होने लगी है। वह भी ऐसे में जब तमाम योजनाएं संचालित हैं और इसकी मॉनीटरिंग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण कर रही हो। बीएचयू में गंगा रिसर्च सेंटर के कोआर्डिनेटर प्रो. यूके चौधरी कहते हैं कि हाल में कराई गई जांच में देखा गया कि काशी में गंगा तीन तरफ से प्रदूषण की गिरफ्त में है। अपने अप स्ट्रीम (अस्सी से पहले) में पहले से मिले अवजल की शिकार है। डाउन स्ट्रीम (सरायमोहाना) के निकट वरुणा के दूषित जल इसे और प्रदूषित कर रहे हैं तो सेंट्रल जोन (बीच) में 38 नालों के जरिए इसमें शहर के अवजल गिराए जा रहे हैं। इसकी मात्रा साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। अब सारी कवायद इसी नालों व कल-कारखानों के पानी को साफ करने की हो रही है। लिहाजा गंगा में उसके मौलिक जल का अनुपात घटता जा रहा है। ऐसे में कल की गंगा कैसी होंगी अंदाजा खुद-ब-खुद लगाया जा सकता है। किसी भी नदी का सीधा सा फंडा है कि इसका न्यूनतम और अधिकतम प्रवाह निर्धारित किया जाना चाहिए जबकि गंगा के साथ ठीक इसके विपरीत आचरण किया जा रहा है। हम गंगा का 85 फीसदी जल अप स्ट्रीम (हरिद्वार) में ही निकाल ले रहे हैं और इसमें जगह-जगह से अवजल छोड़ रहे हैं। इस क्रिया की नदी में क्या प्रतिक्रिया हो रही है इसके आकलन पर ध्यान नहीं है। नतीजा यह हो रहा है कि अवजल और मौलिक जल का अनुपात जहां कम से कम हजार गुना होना चाहिए वहीं यहां देखा जा रहा है कि पांच फीसदी गंगा जल है तो 70 फीसदी अवजल और 25 फीसदी दूषित नदियों का पानी। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यहां हम जो पानी देख रहे हैं वह विभिन्न दूषित नदियों, नालों और कल-कारखानों का जहरीला पानी है। सारी कवायद इसी पानी को शोधित कर वापस गंगा में गिराने की हो रही है। दरअसल गंगा में गंगाजल तो है ही नहीं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment