संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त हैं वहीं पानी, खाद्य तथा ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियों का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और सैनिटेशन यानी साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं।
एक पीढ़ी से कुछ अधिक समय में दुनिया की आबादी के 60 प्रतिशत लोग कस्बों और शहरों में रहने लगेंगे और इसमें सबसे अधिक बढ़ोतरी विकासशील संसार में शहरों के अंदर उभरी मलिन बस्तियों तथा झोपड़-पट्टियों के रूप में होगी। इस वर्ष के विश्व जल दिवस का विषय “शहरों के लिए पानी” –शहरीकरण की प्रमुख भावी चुनौतियों को उजागर करता है।
शहरीकरण के कारण अधिक सक्षम जल प्रबंधन तथा समुन्नत पेय जल और सैनिटेशन की जरूरत पड़ेगी। इसके साथ ही शहरों में अक्सर समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं, और इस समय तो समस्याओं का हल निकालने में हमारी क्षमताएं बहुत कमजोर पड़ रही हैं।
जिन लोगों के घरों या नजदीक के किसी स्थान में पानी का नल उपलब्ध नहीं है ऐसे शहरी बाशिंदों की संख्या पिछले दस वर्षों के दौरान लगभग ग्यारह करोड़ चालीस लाख तक पहुंच गई है, और साफ-सफाई की सुविधाओं से वंचित लोगों की तादाद तेरह करोड़ 40 लाख बतायी जाती है। बीस प्रतिशत की इस बढ़ोतरी का हानिकारक असर लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक उत्पादकता पर पड़ा हैः लोग बीमार होने के कारण काम नहीं कर सकते।
पानी संबंधी चुनौतियां पहुंच से भी आगे बढ़ चुकी हैं। अनेक देशों में साफ-सफाई की सुविधाओं में कमी के कारण लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और पनघट से पानी लाते समय या सार्वजनिक शौचालयों को जाते या आते हुए औरतों को परेशान किया जाता है। इसके अलावा, समाज के अत्यधिक गरीब और कमजोर वर्ग के सदस्यों को अनौपचारिक विक्रेताओं से अपने घरों में पाइप की सुविधा प्राप्त अमीर लोगों के मुकाबले 20 से 100 प्रतिशत अधिक मूल्य पर पानी खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है। यह तो बड़ा अन्याय है। रियो डि जेनेरियोन में सन 2012 में होने वाले संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास सम्मेलन में पानी का मसला उठाया जायेगा। गरीबी तथा असमानता घटाने, रोजगारों की रचना करने, तथा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से उत्पन्न दबावों से होने वाले खतरों को कम करने के उद्देश्य से मेरा वैश्विक टिकाऊपन और यूएन-वॉटर पैनेल यह जांच कर रहा है कि पानी, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की समस्याओं को आपस में जोड़ने के लिए क्या रास्ते निकाले जाएं।
इस विश्व दिवस पर मैं सरकारों से अनुरोध करता हूं कि शहरी जल संकट के बारे में वे यह मानकर चलें कि पानी की किल्लत जैसी कोई समस्या नहीं है, समस्या केवल चुस्त प्रशासन, लचर नीतियों और ढीले प्रबंधन की है। आइये, हम प्रतिज्ञा करें कि निवेश की भारी कमी को दूर करेंगे, और यह संकल्प भी ले कि प्रचुरता से सम्पन्न इस संसार में 80 करोड़ से भी अधिक लोग स्वस्थ और सम्मानपूर्वक रूप से जीने के लिए अब भी शुद्ध और सुरक्षित जल एवं साफ-सफाई के लिए तरस रहे हैं।
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