Tuesday, 22 March 2011

क्यों फेंके जाते हैं नदियों में सिक्के

अक्सर आपने देखा होगा कि जब बड़े-बुजुर्गो के साथ यात्रा कर रहे होते हैं तो रास्ते में किसी पौराणिक नदी के पड़ने पर वे उसे नमन करने के साथ ही परंपरा अनुसार नदी में सिक्के फेंकते हैं। अक्सर यह सवाल उठता है कि लोग नदी में सिक्के क्यों फेंकते हैं, यह परंपरा क्यों है और उसका क्या प्रभाव होता है। इसके पीछे कई कारण हैं। सभी धर्मो में दान-पुण्य मुख्य कर्म माना गया है। शास्त्रों के अनुसार दान करना पुनीत कार्य है। दान के महत्व को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वजों ने कई नियम बनाए थे। भारत में भी अनेकों परंपराएं ऐसी हैं जिन्हें लोग अंधविश्वास मानते है तो कुछ उनको निभाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। ऐसी ही एक परंपरा है नदी में सिक्के डालना। दरअसल हमारे पूर्वज प्रकृति व उसके द्वारा उपहार में दी गई चीजों की पूजा करते थे। मसलन आग, हवा, पानी, पेड़-पौधे, सूर्य व चांद। पौराणिक नदियों को हमारे यहां देवी का मान दिया गया है। प्राचीन काल में चांदी व तांबे के सिक्कों का प्रचलन हुआ करता था। नदियों में स्नान-पूजन के बाद श्रद्धालु उसमें दान स्वरूप चांदी-तांबे के सिक्के डालते थे। नदियों के किनारे रहने वाले गरीब बच्चे उन्हें एकत्र करते थे। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बहते पानी में चांदी का सिक्का डालने से चंद्रदोष का प्रभाव समाप्त होता है। यानि दान पुण्य के साथ ही दोष का भी अंत। अब जरा इसके दूसरे पहलू पर भी नजर डालिए। सभी जानते हैं कि तांबा व चांदी में जल को शुद्ध करने के तमाम गुण मौजूद हैं। नदियों की तलहटी में जमा रहने वाले चांदी-तांबा के सिक्के पानी के शुद्धीकरण का कार्य करते थे। समय बदला तो प्राचीन काल में चलने वाले सिक्के भी बदल गए। वर्तमान में भारत में गिलट के सिक्कों का प्रचलन है जो मिश्रित धातुओं का आकार है। उनमें ऐसा कोई खास गुण नहीं है जो जल के शुद्धीकरण में महती भूमिका निभा सके। अधिकतर बड़े बुजुर्ग अभी भी परंपरा को निभाते हुए मजबूरीवश प्रचलित सिक्के फेंकते हैं। कुछ दिनों पूर्व ही एक रिपोर्ट आई थी कि गंगा के पानी में आक्सीजन की मात्रा मानक से बहुत कम रह गई है। कुछ तटवर्ती इलाकों में अब गंगा का जल आचमन योग्य भी नहीं रह गया है। ऐसे में हम अगर एकजुट होकर अपनी परंपराओं का सहारा लें तो गंगाजल के शुद्धीकरण में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। सिक्का न सही, धातु ही सही।

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