Wednesday, 30 May 2012

गंगा को अविरल बहने दो


कपिल मुनि पंकज  
     मां गंगा के अस्तित्व की परिकल्पना अनादिकाल से है। जाह्नवी, मंदाकिनी, भागीरथी, आदि नामों से संबोधित की जाने वाली गंगा की अविरल धारा का महत्व हर युग में सर्वमान्य रहा है। मां गंगा की परिकल्पना शोध का नहीं चिंतन का विषय है। मां गंगा में बढ़ते प्रदूषण, इसकी अविच्छिन्नता व अविरलता को लेकर चला आंदोलन आज विराट स्वरूप लेकर जनमानस को झकझोर रहा है। साधु-संतों की तपस्या, अनशन, चेतावनी के द्वारा हुआ जागरण आज किसी खास वर्ग का नहीं अपितु सभी संप्रदाय व वर्गो का आंदोलन बन चुका है ताकि गंगा की निर्मलता बनी रहे। गंगा भारत की एक नदी नहीं वरन मां गंगा देश की धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक धरोहर, व अस्मिता की पहचान हैं। प्रदूषण मुक्त औषधीय गुणों से पूर्ण व जीवनदायिनी नदी है जिसमें अवगाहन कर हम मुक्ति की कामना करते है। तभी तो जब सिंकदर ने महान भारत विजय हेतु प्रस्थान किया तो उसके गुरु अरस्तू ने लौटते समय उससे पवित्र गंगाजल गुरु दक्षिणा में मांगा था। इसी से मां गंगा की महत्ता स्पष्ट हो जाती है। गंगा मुक्ति आंदोलन को लेकर कुंभकर्णी नींद में सोये सत्ता संचालन से जुड़े मुखिया व अन्य लोगों के कानों में जूं तक नही रेंग रही है जो गंगा की निर्मलता व अविरलता के बारे में न सोचकर गंगा व मंदाकिनी पर 121 और बांध बनाने की योजना बना रहे है। पनबिजली द्वारा 1875 मेगावाट विद्युत उत्पादन की बात सामने की जा रही है। तो क्या! मात्र निजी उत्पादन हेतु क्या थर्मल पावर या पवन चक्की के माध्यम से यह कार्य नहीं हो सकता है। टिहरी बांध अकेले गंगा को अवरुद्ध किए है। आंदोलनरत साधु संन्यासियों की मांग पर यदि टिहरी बांध का फाटक खोलकर पर्याप्त मात्रा में जल निस्तारण किया जाय तो गंगा की अविरलता कायम रह सकती है। समझ में नहीं आता कि सरकार को इसमें दिक्कत क्या है। मेरा मानना है कि गंगा किनारे अवस्थित टेनरियों, कल कारखानों, व शहरों के सीवर का मल जल गंगा में गिराए जा रहे है जिससे गंगा की निर्मलता प्रभावित हो रही है। यदि तत्काल प्रभाव से ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर इसका उपचार सरकार करे तो समस्या का समाधान हो सकता है। गंगा में रेत व बालू जमा होने के कारण गंगा की धारा कई भागों में बंट कर दम तोड़ रही है। अत: इसका उत्खनन कराकर रेत व बालू का निस्तारण हो और गंगा की गहराई बढ़े तो इस समस्या का समाधान हो सकता है। आज आवश्यकता है पुन: एक भगीरथ की जो गंगा मां को समस्याओं की जय से निकाल कर माता की महत्ता को पुर्नस्थापित करें तभी तो हम गर्व से यह गीत गाएगें। गंगा मइया में जब तक पानी रहे-मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे अन्यथा सजना अकाल मौत मरेगा। तुलसी की चौपाई जब तक रहे गंगा जल धारा अचल रहे। जागो शंखनाद हो चुका है आगे बढ़े और गंगा की पवित्रता को कलंकित न होने दें। पूर्वजों को इसने तारा है मगर वंशजों से यह गई मारी नदी जागो वरन मृत्युशय्या पर पड़े हमारे स्वजन तरस जाएगें। तुलसी गंगाजल के बिना, तरस जाएगें देव पूजा पात्र गंगाजल के बिना। आइए हम सभी गंगा की अविच्छिन्नता अविरलता और इसको प्रदूषणमुक्त बनाने का संकल्प ले। जय मां गंगा। (लेखक भोजपुरी के लब्ध गीतकार हैं)

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