Sunday, 26 September 2010

पर्यावरण संरक्षण की अनूठी पहल

पर्यावरण संरक्षण की अनूठी पहल

: पूनम नेगी

दिन--दिन बिगड़ते पर्यावरण की समस्या केवल सम्मेलनों से हल नहीं हो सकती, इसके लिए सबसे जरूरी है जन जागरूकता।

इसी का प्रतीक है 'अर्थपावर' अभियान जो हमारी मानसिकता बदलने की बात करता है। 'अर्थपावर' पर्यावरण को बचाने का ऐसा सकारात्मक अभियान है, जिसका इतिहास केवल तीन साल पुराना है। इतिहास में कम ही ऐसे अभियान हुए हैं, जिनको इतने कम समय में इतनी अधिक लोकप्रियता एवं जनसमर्थन मिला है।

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वल्र्डवाइड फंड फार नेचर' द्वारा मौसम परिवर्तन के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए चलाये गये इस अभियान की शुरुआत 2007 में सिडनी के 22 लाख लोगों ने अपने घर और इंडस्ट्री में गैर जरूरी लाइटें बंद करके की। इसकी शुरुआत इसलिए भी हुई थी कि गरम हो रही धरती और असंतुलित मौसम के प्रति कोई भी प्रयास कारगर नहीं हो पा रहा था।

2007
में सिडनी से आरम्भ होने वाले इस अभियान में 2008 तक, यानी एक साल में ही 35 देशों के लगभग पांच करोड़ लोग जुड़े। किसी भी अभियान में एक ही वर्ष में इतनी संख्या में लोगों का शामिल होना इसकी लोकप्रियता दर्शाता है। 2009 में इस अभियान से जुड़ने वाले देशों की संख्या 88 तक पहुंच गयी। 2009 में विश्व के चार हजार शहरों के लगभग आठ करोड़ लोग एक घंटे के लिए अपने घरों कारखानों में बिजली के उपकरण बंद रख 'अर्थपावर' मुहिम में शामिल हुए। अपने देश में 2009 में 50 लाख लोगों ने बत्तियां बंद रखीं।

इस अभियान में 56 शहरों ने भाग लिया। कुतुबमीनार, लाल किला, हुमायूं मकबरा, सिनेमा, माल, सभी एक घंटे तक बंद रहे। एक घंटे में 1000 मेगावाट की बिजली बची, 600 मेगावाट केवल दिल्ली शहर में बची। 2009 में मौसम पविर्तन को लेकर किये गये किसी भी प्रयास में यह सबसे बड़ा अभियान था। 'अर्थपावर' की एक घंटे में ऊर्जा की बचत ने ग्लोबल वार्मिक से जूझ रही दुनिया को नई राह दिखाई। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख बान की मून के मुताबिक जलयायु परिवर्तन हम सभी के लिए चिंता का विषय है।

इसके समाधान की दिशा में 'अर्थपावर' सकारात्मक पहल है। 2010 में पाकिस्तान सहित अफ्रीका के नौ मुल्क अंटार्कटिका का डेविड स्टेान भी इसमें सम्मिलित हुआ। दुनिया के 125 देशों ने इस अभियान में शामिल होकर पर्यावरण के प्रति अलख जगायी।

प्रतिवर्ष मार्च के अंतिम शनिवार को मनाये जाने वाले इस अभियान को इस साल और बल मिला। इस साल भी इस दिन रात्रि साढ़े आठ बजे से साढ़े नौ बजे तक 125 देशों के एक अरब से अधिक लोगों ने धरती के सुरक्षित भविष्य के संकल्प के साथ इसे दोहराया। इस दौरान दुनिया बिजली बचाने के लिए अंधेरे के आगोश में रही। अभियान की सफलता इसे मिली जनसहभागिता का अंदाजा इसी से लगता है कि निर्धारित समय में विश्व के 812 प्रमुख स्मारकों की बत्तियां बुझी रहीं। यही नहीं, अनेक नामी गिरामी कंपनियों ने भी अपने कार्यालयों की बत्तियां बुझा कर इस अभियान को सफल बनाने में पूरा सहयोग दिया।

कुल मिलाकर 'अर्थपावर' हमें बताता है कि हमें जल, जमीन और वनस्पति-जगत को नैसर्गिक रूप में बनाये रखने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए। असंतुलित मौसम के प्रति हम स्वयं सजग रहें और भावी पीढ़ियों को सचेत करें। इस अभियान का दायरा व्यापक एवं विस्तृत है यानी पूरी धरती हरियाली से भरी-पूरी हो, मौसम अपने क्रम से परिवर्तित हों तथा इंसान और पर्यावरण के बीच आवश्यक सह संबंध निर्मित हो सके। (जनसत्ता, 24 सितंबर 2010)