Friday, 17 September 2010

वरुणा ने जो बटोरा उसे सहेज न सके हम

वरुणा का पानी जागरण' की कोशिश

वरुणा ने जो बटोरा उसे सहेज सके हम
वाराणसी। वर्षा की एक-एक बूंद की कीमत का अहसास हमें बीते पांच वर्षो में अच्छी तरह रहा लेकिन प्रकृति के इस कोप से हम सबक नहीं ले पाए। इस दौरान कोई बड़ा इंतजाम नहीं कर सके जिससे वर्षा के जल को सहेजा जा सके। इस बार अच्छी वर्षा का नतीजा रहा कि वरुणा में पर्याप्त पानी दिखने लगा। इससे उम्मीद जगी कि कम से कम वरुणा के किनारे बसे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र का जलस्तर वर्ष के अन्य महीनों में भी ठीक रहेगा। इससे पेयजल और सिंचाई का संकट नहीं गहराने पाएगा।
यहां हालात इसके उलट है। अभी वर्षाकालीन मौसम खत्म भी नहीं हुआ कि वरुणा का पानी तेजी से घटकर तलहटी से चिपककर रह गया। नदी की गहराई भी पटाव के कारण कम हो जाने से पानी तेजी से घटा। वरुणा का पानी गंगा में वापस चला गया। इसे रोकने का कोई इंतजाम वरुणा नदी पर नहीं किया गया।

'जागरण' की कोशिश
'
जागरण' ने इस दिशा में कई बार ध्यान आकृष्ट कराया कि जनपद सीमा के भीतर बहनेवाली वरुणा सहित अन्य छोटी नदियों नालों के पानी संचयन की दिशा में प्रयास किए जाए। अफसोस अब तक कोई कार्ययोजना वरुणा के लिए नहीं बनाई जा सकी। इस नदी को गहरा कर कुछ स्थानों पर डैम बनाने की बात थी ताकि नदी में बराबर पानी बना रहे। इससे वाराणसी के शहरी और देहाती क्षेत्र के भूजल का प्राकृतिक शोधन होता। इसके बारे में कई बार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने भी राय दी कि वाराणसी में भूजल को शोधित करने की प्राकृतिक व्यवस्था है, इससे छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए। इसमें शहर के एक तरफ से गंगा निकलती है तो उसके दो तरफ से वरुणा और असी। आज वरुणा का ही अस्तित्व बचा है। असी को तो पाट दिया गया। उसके जल ग्रहण क्षेत्र तक में मकान बन गए। इस समय वरुणा के साथ भी इसी तरह का कृत्य चल रहा। अब तक प्रशासन की प्राथमिकता में वरुणा नहीं सकी। इसके आसपास मनमानी जारी है। कहीं कूड़ा फेंका जा रहा तो कहीं मकान बन रहे।
किसी समय केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जगमोहन इसी वरुणा नदी को गहरा कराकर जल परिवहन की संभावना पर कार्य कर रहे थे। उनके मंत्री पद से हटते ही वह प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में चला गया। यदि इस नदी की हिफाजत हो जाए तो नगर में होने वाले नित्य जाम की समस्या का काफी हद तक निदान निकल सकता है। यही नहीं इसी नदी के किनारे स्थित पंचतारा होटलों में ठहरने वाले पर्यटकों के लिए भी जल परिवहन की अच्छी संभावना हो सकती है। फिलहाल नदी को अपने बचाव की लड़ाई लड़नी है। यहां ब्यूरोक्रेसी की सोच का अंदाज इसी से लगा सकते है कि चोलापुर ब्लाक में बहने वाली बरसाती नदी नाद को गहरा कर जल संचयन का प्रोजेक्ट वहां के ब्लाक प्रमुख त्रिभुवन सिंह ने तैयार कराया था। उसे अफसरों ने खारिज कर दिया जबकि वहां पर भी यदि नदी के जल को संचित करने के प्रबंध किये गए होते तो उसके अच्छे परिणाम मिलते।
इस मामले को भी 'जागरण' ने प्रकाशित कर प्रशासनिक मशीनरी का ध्यान आकृष्ट कराया था लेकिन जूं तक नहीं रेंगी। फिलहाल दूरगामी इंतजाम की कमी का नतीजा रहा कि वरुणा का पानी निथर कर गंगा में वापस हो गया। हम हाथ मलते अगली बरसात का इंतजार कर रहे।
Sep 19, 2008

साभारजागरण याहू

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