Sunday, 19 September 2010

काशी को बचाने के लिए गंगा ही नहीं वरुणा भी जरूरी

काशी को बचाने के लिए गंगा ही नहीं वरुणा भी जरूरी

Apr 26, 02:22 am

वाराणसी। काशी को बचाने के लिए गंगा के साथ ही वरुणा को भी बचाना होगा। गंगा की कटान को रोककर नगर के भूमिगत जलस्तर को संतुलित रखनेवाली वरुणा आज अपने वजूद के लिए संघर्ष करती नजर रही है, जो शहर और उसके बाशिंदों के लिए खतरे की घंटी है।

बीएचयू में गंगा अन्वेषण केंद्र की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि गंगा और वरुणा की महत्ता उसके जल की मात्रा, गुणवत्ता वेग से है। दोनों में इन तीनों का आनुपातिक अंतर लगभग 30 गुना है। यही आनुपातिक अंतर ही एक दूसरे को बचाने का काम करती हैं। गंगा के डाउन स्टीम में दोनों का संगम 75 से 80 डिग्री का कोण बनाती है जो गंगा के कटान को रोकने में सहायक साबित होती है। यहां गंगा के किनारे के जल का आवेग और वरुणा के बीच का आवेग टकराने के बाद संगम क्षेत्र के जल प्रवाह को वेग शून्य कर देती है। लिहाजा संगम तट पर जहां वरुणा द्वारा मिट्टी जमाव की क्रिया आरंभ हो जाती है वहीं वेग शून्यता के ही चलते गंगा के मिट्टी कटाव की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि गंगा-वरुणा के टकराव के ही चलते संगम क्षेत्र से 1650 मीटर दूर अप स्ट्रीम (पंचगंगा घाट) में मिंट्टी जमाव शुरू हो जाता है। देखा गया कि पंचगंगा घाट से संगम क्षेत्र की ओर जैसे-जैसे बढ़ते जाते हैं गंगा के किनारे की गहराई कम होती जाती है। इससे पता चलता है कि वरुणा द्वारा गंगा के कटाव क्षेत्र को भरा जाता है। मालवीय पुल (राजघाट) के अब तक सुरक्षित रहने की वजह भी यही है।

अध्ययन रिपोर्ट यह भी बताती है कि वरुणा सिर्फ गंगा के कटाव क्षेत्र को भरने का ही काम नहीं करती वरन गंगा की ओर भूमिगत जल प्रवाह को अपनी ओर खींच कर रिसाव के दबाव को कम करने का भी काम करती है। वजह, वरुणा अपनी गतिशीलता के अनुपात में गंगा के किनारे-किनारे मिट्टी का मेड़ बनाकर उसके जलस्तर को बढ़ाने का काम करती है। साथ ही गंगा किनारे के अवजल और नदी जल के अनुपात को भी बढ़ाती है। ऐसे में वरुणा का जल जैसे दूषित और गतिहीन होता जाएगा गंगा का किनारा असुरक्षित, दूषित और शहर के भूजल मृदा क्षरण का वेग उसी अनुपात में गंगा की ओर बढ़ता जाएगा। इससे साफ जाहिर है कि गंगा किनारे की स्थिरता वरुणा ही प्रदान करती है। आज गंगा के किनारे बढ़ती गहराई और कटान की वजह वरुणा के आवेग का दिनोंदिन घटना है। लिहाजा गंगा-वरुणा में जल की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों को समान रूप से बचाने की जरूरत है। तभी शहर को बचाया जा सकेगा।



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