वाराणसी, संवाददाता : नदी विज्ञान की अनदेखी कर लिये जा रहे निर्णय से गंगा का पारिस्थितिकी तंत्र (इको सिस्टम) असंतुलित होता जा रहा है। इसके चलते गंगा घाटी क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का खतरा गहराने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी की प्रकृति को समझे बगैर कोई कार्ययोजना अथवा कानून गंगा के संदर्भ में बनता है तो वह न प्रभावी होगा और न व्यावहारिक, क्योंकि गंगा का विज्ञान एक शरीर का विज्ञान है। यह केवल जल का नहीं वरन जीव-जंतु, पेड़-पौधों के संवर्धन और वातावरण संतुलन का आधार भी है। मानवीय जीवन में गंगा की महत्ता को देखते हुए ही वेद, पुराण, उपनिषद् आदि ग्रंथों में गंगा को जीवनदायिनी की संज्ञा दी गई है। आज डैम, बैराज एवं नहरों द्वारा अवैज्ञानिक तरीके से गंगा जल के दोहन और अनियंत्रित अवजल प्रवाह से नदी का इको सिस्टम लड़खड़ा गया है। नतीजन उसकी सारी शक्तियां विलुप्त होती जा रही हैं। काशी में बालू क्षेत्र का विस्तार, सिमटता पाट इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। लिहाजा गंगा घाटी क्षेत्र में मृदाक्षरण बढ़ने, भूमिगत जल स्तर गिरने, पेड़-पौधों के सूखने जैसे हालात बनते जा रहे हैं।
Wednesday, 10 November 2010
लड़खड़ाया गंगा का इको सिस्टम
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