बीएचयू में पर्यावरण विज्ञानी प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण और घटते प्रवाह ने नदी ही नहीं वरन जन जीवन को भी खतरे में डाल दिया है। वजह, संतुलित पर्यावरण के लिए नदी में अधिकाधिक गहराई, नियंत्रित तापीय स्थिति और पानी में वेग का होना बेहद जरूरी है। नदी की गहराई ज्यादा होगी तो नीचे का ताप कम होगा। जब ताप कम होगा तो पानी में आक्सीजन रखने की क्षमता अधिक होगी और पानी का वेग अवजल की मात्रा को घटाता जाएगा। गंगा की मौजूदा दशा ठीक इसके विपरीत है। अत्यधिक जल दोहन से नदी की गहराई जहां कम होती जा रही है वहीं तलहटी का तापक्रम सामान्य से कही अधिक होता जा रहा है और पानी में आक्सीजन रखने की क्षमता घटती जा रही है। गंगा में पानी का वेग घटने और दूषित जल की मात्रा बढ़ने से गंगा घाटी में विपरीत माहौल तैयार होता जा रहा है। प्रो.त्रिपाठी ने बताया कि पिछले दिनों राष्ट्रीय गंगा नदी बेसीन प्राधिकरण की बैठक में गंगा की अविरलता और निर्मलता सुनिश्चित करने पर गहन चर्चा हुई। कहा गया कि गाद जमा होने से गंगा की जलग्रहण क्षमता घटती जा रही है लिहाजा प्रदूषण डाइल्यूशन प्रक्रिया भी गिरती जा रही है। ऐसे में गंगा से पानी निकासी रोकने और सिंचाई की व्यवस्था के लिए कोई और विकल्प तलाशने पर विचार करने का निश्चय किया गया
Wednesday 10 November, 2010
घटती गहराई और बढ़ता तापक्रम खतरे का संकेत : प्रो. त्रिपाठी
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