बर्रे के छत्ते हैं तालाब, कतराते हैं साहब
वाराणसी, प्रतिनिधि : सरकारी रिकार्ड में एक दो नहीं पांच दर्जन से अधिक तालाब, कुंड ऐसे हैं जिन्हें पाटकर लोग काबिज हो गए हैं। बचे-खुचे कुछ ऐसे तालाब हैं जिसपर अट्टालिका तानने के लिए भू-माफिया तेजी से उसे पाट रहे हैं। अब जरा इधर गौर फरमाएं। पिछले लगभग आठ माह से जिला प्रशासन ने तालाबों को भू-माफियाओं के कब्जे से छुड़ाने की कोई कार्रवाई तो छोडि़ए, तालाबों का हाल क्या हैं, देखने की जहमत तक नहीं उठाई है। जबकि समय-समय पर प्रशासन को हाईकोर्ट को तालाबों की वस्तुस्थिति से अवगत कराना होता है। आखिर क्या वजह है कि तालाब हो या सड़क या फिर पटरियों को माफियाओं के चंगुल से मुक्त कराने में प्रशासनिक अमला कागज पर फरमान जारी कर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाता है। प्रशासनिक कुर्सी पर बैठे चंद अफसरों से पूछिए तो ऑफ द रिकार्ड बताते हैं कि शासन तक गहरी पैठ बना चुके चंद भू माफिया शहर का भला करने वाले अफसरों को गैर जिला भिजवाने का नुस्खा अच्छी तरह जानते हैं। इसके शिकार कई तेज-तर्रार अधिकारी हो चुके हैं। जिस अफसर ने तेजी दिखाई और अड़ंगा डाला तो भू माफिया गंगाजल, भभूत और बेसन के साथ राजधानी में डेरा डाल देते हैं। भारी-भरकम चढ़ावे के साथ ही उनका कष्ट भी दूर हो जाता है। बाद में जो भी आला अफसर यहां आता है उन्हें अधीनस्थ यही टिप्स देते हैं कि साहब तालाब, सड़क पर कब्जा जमाने वाले बर्रे के समान हैं। इनके छत्ते में हाथ डाला नहीं कि ये काट खाएंगे। शहर में आए चंद अफसरों ने इस मूलमंत्र को अपने दिमाग में बिठा लिया है। यही वजह है कि तालाबों पर कब्जा जमाए लोगों पर हाथ डालने से अफसर कतराते नजर आ रहे हैं। मशीनरी की कमजोरी का फायदा उठाते हुए भू माफिया दोगुनी स्पीड से तालाब पाटने में लग गए हैं
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