वाराणसी, प्रतिनिधि : गंगा की अविरलता व निर्मलता को गंगा सेवा अभियान के तहत स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने शुक्रवार को जल त्याग तप शुरू कर दिया। लोगों की मनुहार दरकिनार कर संत सानंद ने गंगा स्नान किया और शंकराचार्य घाट पर बनी पुआल की कुटिया में धुनी रमा दी। कहा संकल्प के अनुसार पांच सूत्रीय मांगों के पूरा होने तक आंदोलन जारी रहेगा। सांस टूटी तो अन्य चार संकल्पी बारी बारी से कमान संभालेंगे। तपस्या के लिए उन्होंने मकर संक्रांति से एक दिन पहले 14 जनवरी को गंगा सागर में संकल्प लिया था। प्रयाग माघमेला में 15 जनवरी से अन्न त्याग कर पहले चरण की शुरूआत की थी। साथ ही आठ फरवरी को मातृ सदन हरिद्वार में फल का त्याग कर दिया जो आठ मार्च तक चला। इसके बाद भी मांग न पूरे होने पर स्वामी ज्ञान प्रकाश सवेरे काशी पहुंचे। यहां जुटे संतों ने उन्हें जल त्याग फिलहाल स्थगित करने का अनुरोध किया लेकिन बात नहीं बनी। दोपहर में जल त्याग कर तपस्या शुरू कर दी। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बताया कि गंगा को राष्ट्रीय प्रतीक के अनुरूप महत्व नहीं दिया गया। इस संबंध में कई मंचों पर मांग उठाने के बाद भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है। ऐसे में यह कदम उठाना पड़ा है। शरीर जाने पर अन्य गंगा भक्त तपस्यारंभ करेंगे। उन्होंने बताया कि गंगा प्राधिकरण का गठन दोषपूर्ण किया गया है। पिछले तीन वर्षों में इसकी सक्रियता भी लगभग शून्य ही है। इसमें गैरसरकारी सदस्यों की अनदेखी की जा रही है। गंगा की अविरलता को बाधित करने वाले बांध बैराज व परियोजनाओं पर विरोध के बाद भी कार्य जारी है। न्यूनतम प्रवाह तो दूर इसमें नालों के जरिए नगरीय व औद्योगिक अवजल उड़ेला जा रहा है। यही नहीं स्वामी निगमानंद की आहुति के बाद भी सरकार के रवैये पर असर नहीं दिख रहा है। जन आंदोलनों को लेकर भी सरकार संवेदनहीन है। इस दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद समेत अन्य संत महंत मौजूद थे।
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