Sunday, 11 March 2012

गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण भी हुआ कागजी!


नई दिल्ली गंगा नदी की सेहत सुधारने के लिए प्रधानमंत्री की नेतृत्व में बने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का स्वास्थ्य ही विवादों से लड़खड़ाने लगा है। प्राधिकरण को कागजी संस्था बताते हुए मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और जल पुरुष राजेंद्र सिंह सहित तीन सदस्य इस्तीफे की तैयारी कर चुके हैं। इस बीच गंगा के लिए प्रो. जीडी अग्रवाल के आमरण अनशन को लेकर केंद्र सरकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं की शनिवार को हुई मुलाकात में भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। दैनिक जागरण से बातचीत में राजेंद्र सिंह का कहना था कि बीते साढ़े तीन साल में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) अपने उद्देश्य को पाने में नाकाम रहा है। यह संस्था न तो गंगा को उचित राष्ट्रीय सम्मान दिलवा सकी और न ही उसकी धारा का अविरल प्रवाह सुनिश्चित कर पाई। ऐसे में इसका सदस्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। सिंह रविवार को औपचारिक ऐलान की तैयारी कर रहे हैं। वहीं देहरादून स्थित पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक रवि चोपड़ा और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राशिद हयात सिद्दीकी भी उनके साथ एनजीआरबीए को विदा कह सकते हैं। संकेत हैं कि एनजीआरबीए के एक अन्य सदस्य व मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पर्यावरणविद एमसी मेहता ने भी संस्था के कामकाज को लेकर उठे असंतोष के सुरों में सुर मिलाया है। इस बीच गंगा के लिए वाराणसी में जारी पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल के अनशन को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं व केंद्रीय जल संसाधन और संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल की मुलाकात कोई ठोस नतीजा नहीं दे पाई। मुलाकात के बाद राजेंद्र सिंह का कहना था कि बंसल ने उन्हें केवल आश्वासन दिया कि वे इस मामले को उच्च स्तर पर रखेंगे। एनजीआरबीए सदस्यों ने गंगा को लेकर प्रधानमंत्री के रुख पर भी सवालिया निशान लगाए हैं। सिंह का कहना है कि गंगा रक्षा के मुद्दों पर प्राधिकरण के अध्यक्ष प्रधानमंत्री से शीघ्र बैठक बुलाने का आग्रह करते हुए सदस्यों ने 20 नवंबर 2011 को पत्र लिखा था। लेकिन तीन महीने के इंतजार के बाद न तो इसका कोई जवाब आया और न ही बैठक की कोई तारीख निकली। सदस्यों का कहना है कि गठन के बाद कभी भी एनजीआरबीए की नियमित बैठकें नहीं हुई। साथ ही उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित तो कर दिया, लेकिन यह महज दिखावा ही साबित हो रही है। उल्लेखनीय है कि गंगा एक्शन प्लान की असफलता और करोड़ों रुपये बहाने के बाद 2009 में गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया था। इसमें केंद्र सरकार के शहरी विकास, जल संसाधन, पर्यावरण तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रियों के अलावा गंगा प्रवाह क्षेत्र वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत कुल 24 सदस्य हैं।

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