Monday, 12 March 2012

प्रधानमंत्री जी के नाम खुला पत्र लेखक: अरुण तिवारी

Source:
गंगा सेवा अभियानम्
पौष शुक्ल दशमी संवत् 2068 वि. 3 जनवरी 2012 ई.

प्रतिष्ठा में
माननीय डॉ. मनमोहन सिंह जी,
प्रधानमंत्री – भारत सरकार एवं अध्यक्ष – राष्ट्रीयनदी गंगा घाटी प्राधिकरण 7,
रेसकोर्स रोड नई दिल्ली- 110001

विषय – राष्ट्रीयनदी गंगा जी की विषम स्थिति में सुधार के उद्देश्य से हमारा तपस्या करने और बलिदान देने का संकल्प।

माननीय प्रधानमंत्री महोदय,
जय गंगे।

आप और आपकी सरकार पुण्य सलिला गंगाजी की हमारी संस्कृति में महत्ता, उनके विलक्षण गुण, उन्हें भारतीय जनमानस की एकता का सूत्र तथा देश की आन, शान और पहचान के रूप में महत्वांकित करती रही है। इसी संदर्भ में आपने पूज्यपाद गुरूदेव ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को 16-10-2008 को पुण्य सलिला गंगा जी को राष्ट्रीय नदी का सम्मान देने तथा एक राष्ट्रीय नदी गंगा घाटी प्राधिकरण गठित करने का आश्वासन दिया था। पर उन आश्वासनों का छलपूर्ण क्रियान्वयन आपकी एवं आपकी सरकार की भगवती गंगा के प्रति उदासीनता सिद्ध करता है। आपकी सरकार के पिछले तीन वर्ष के गंगा जी के प्रति बेहद अपमानजनक एवं विनाशकारी निर्णयों, क्रियाकलापों तथा हर स्तर पर उनके हितों की पूर्ण अवहेलना ने सिद्ध कर दिया है कि आपकी सरकार अल्पकालीन आर्थिक विकास और भौतिक सुख-सम्पदा की ललक में गंगा जी को बेच देने, उनकी हत्या तक को तैयार है। इसके कुछ उदाहरण हम नीचे दे रहे हैं :

(क) 4 नवम्बर 2008 को प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति में दिए गए वचनों के छलपूर्ण अनुपालन में जारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की 20 फरवरी 2009 की अधिसूचना सं. 328, जिसमें गंगा को राष्ट्रीयनदी का सम्मान देने की बजाय उन्हें एक राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया और इस नाते गंगा जी को कभी भी एक राष्ट्र-चिह्न का सम्मान नहीं दिया गया। जो लचर, सरकार की आर्थिक स्वार्थपूर्ण हितों को प्रमुखता से आगे रखने वाला प्राधिकरण गंगा जी के प्रबंधन के लिए इस अधिसूचना द्वारा गठित किया गया, उसकी 3 वर्ष में मात्र दो छोटी-छोटी बैठकें होना, गंगा से जुड़े किसी भी प्रश्न पर अर्थपूर्ण चर्चा न होना और केवल सरकारी अधिकारियों द्वारा पहले से लिए गए निर्णयों के समर्थन में सिर हिला देना, उस प्राधिकरण की पूर्ण निरर्थकता सिद्ध करते हैं। संलग्न (परिशिष्ट संख्या 1) से जहां उक्त प्राधिकरण से उसके गैर-सरकारी सदस्यों की पूर्ण निराशा सिद्ध हो जाती है; वहीं उनके इस पत्र पर आपके द्वारा कोई भी त्वरित प्रतिक्रिया न होना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए इस बारे में प्रमाण रूप में पर्याप्त है।

(ख) हमारे शास्त्रों एवं लोक-संस्कृति दोनों के अनुसार ब्रह्माजी के कमण्डलु से, शिवजी की जटाओं से होती हुई भगीरथ जी के रथ के पीछे चली धारा भागीरथी, विष्णुपदी होने से बद्रीविशाल के चरणों को छूती धारा अलकनंदा, अलकनंदा पर स्थित पंचप्रयाग (विष्णु प्रयाग, नन्द प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग तथा देव प्रयाग) तथा इन प्रयागों पर मिलने वाली गंगाजी की प्रमुख धाराएं (क्रमशः धौली (विष्णु) गंगा, नंदाकिनी, पिण्डर, मंदाकिनी तथा भागीरथी) ये सभी अत्यन्त महत्वपूर्ण पुण्य स्थल/धाराएं हैं। इन धाराओं/स्थलों को हानि पहुँचाने वाली कोई भी छेड़-छाड़ हमें स्वीकार्य नहीं है। वर्तमान में धौली गंगा पर तपोवन-विष्णुगाड़, मंदाकिनी पर फाटा-बिऊग तथा सिंगौली-भटवारी, अलकनंदा पर विष्णु प्रयाग-पीपल कोटी तथा श्रीनगर परियोजना पर निर्माण कार्य भारी जन-विरोध, जिसमें लम्बे धरने, जेल-यात्रा (सुशीला भण्डारी, जगमोहन सिंह आदि), अनशन (जन-नेत्री उमाश्री भारती) शामिल रहे हैं, के बावजूद धड़ल्ले से चल रहा है। इस परियोजनाओं से उक्त प्रमुख धाराओं की अविरलता पूर्णतया नष्ट हो जाएगी। आपकी सरकार इन पर तुरन्त रोक लगाने से तो रही, अभी दो सप्ताह पूर्व उसने अलकनंदा जी पर एक अन्य बड़ी जल-विद्युत परियोजना को ठीक बद्रीनाथ धाम के नीचे, सभी पर्यावरणीय तर्कों को नकारते हुए सीधे मंत्राणी जी (मा.जयन्ती नटराजन्) के व्यक्तिगत हस्तक्षेत्र द्वारा हरी झण्डी दे दी गई। यह सब सीधे-सीधे हमारी भावनाओं और गंगा माँ का, हमारी राष्ट्रीय पहचान का अपमान नहीं तो क्या है? आदि शंकराचार्य भगवत्पाद द्वारा प्रणीत मठाम्नाय महानुशासनम् के अनुसार अलकनंदा धारा ज्योतिष्पीठ का प्रमुखतम तीर्थ है। इसके साथ कोई छेड़-छाड़ हमें स्वीकार नहीं।

(ग) छः मास पूर्व 9 जुलाई 2011 के हमारे पत्र में (देखें परिशिष्ट-2) हमने जो माँग गंगाजी के महत्वपूर्ण भाग (नरौरा से प्रयाग तक) में न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने के लिए की थी उस पर आवश्यक निर्णय लेना तो दूर, न तो इस पर चर्चा के लिए प्राधिकरण की बैठक बुलाई गई और न ही हमारे पत्र का, उस पर भेजे स्मरण पत्रों का कोई उत्तर दिया गया। यहां तक कि सूचना के अधिकार के अंतर्गत पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में भी कुछ भी स्पष्ट उत्तर न देकर बात टाल दी गई। प्रयाग का माघ मेला एकदम सिर पर है पर गंगाजी में प्रवाह के बारे में सरकार की नीति में आज भी कोई स्पष्टता नहीं। (देखें परिशिष्ट-3)

(घ) जलप्रदूषण तथा पर्यावरण संरक्षण के तथाकथित कई कानून होने तथा केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के सफेद हाथी तुल्य प्रदूषण नियंत्रण तंत्रों के बावजूद नगरीय एवं औद्योगिक अवजल धड़ल्ले से विभिन्न नालों द्वारा गंगा जी में निरंतर उड़ेला जा रहा है। आपके प्रदूषण-नियंत्रण एवं पर्यावरण-संरक्षण तंत्रों के अधिकारीगण इन विषयों में कितने संवेदनशील या कर्तव्यपरायण हैं यह तो इनकी पिछले कई दशकों की (जल-प्रदूषण बिल 1974 में पास हुआ था तो पर्यावरण संरक्षण बिल 1985 में) कार-गुजारियों से स्पष्ट है ही, पर हमारे इस विषय के पत्र पर (देखें परिशिष्ट-4) पूर्ण चुप्पी साध जाना, कोई उत्तर तक न देना, माँ गंगा और जनभावनाओं के प्रति उनकी अवहेलना-भरे भाव और निरंकुशता का भी प्रमाण है। विशेषतया धातु उद्योंगों, चमड़ा इकाइयों, कागज कारखानों, रासायनिक उद्योंगो आदि का अवजल अत्यंत विषाक्त तथा प्रदूषणकारी होता है। इनका गंगा जी में गिरना तुरन्त रोका जाना चाहिए।

(ङ) मातृसदन के गंगा-भक्त स्व. स्वामी निगमानंद जी की लम्बी तपस्या और उनके बलिदान के प्रति आपकी और आपकी सरकार की प्रतिक्रियाहीनता क्या आँखे खोल देने वाली नहीं?

(च) सरकारी तंत्र के गंगाजी के प्रति और हम सरीखे गंगाजी के श्रद्धालुओं के प्रति पूर्ण अवहेलना भरे भाव का एक अन्य नया प्रमाण आपकी सरकार की हमारे 20 नवम्बर 2011 के प्रस्ताव, प्रतिवेदन एवं मांग-पत्र (देखें परिशिष्ट- 5) पर जो 14 दिसम्बर 2011 को आपको भेज दिया गया था, कोई भी कार्यवाही या प्रतिक्रिया तक भी न होना है।

उरोक्त परिस्थितियों में हमारे पास आपकी सरकार, उसके तंत्र, उनकी गंगा-विरोधी नीतियों का खुला विरोध करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता। हमारी संस्कृति में आत्मबल को, तपोबल को सबसे ऊपर माना गया – हमारे पास सत्ताबल या भीड़-बल भले न हों पर हमारी आस्था के आगे इन कमियों का कोई महत्व नहीं। तपस्या और बलिदान से तो हमारे पूर्वजों ने देवताओं के आसन हिला दिये थे- हम प्रयास करेंगे अपनी तपस्या से, बलिदान से (एक जीवन से नहीं, एक के बाद एक जीवन से जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये) आपकी आंखे खोलने, आपके तंत्र का आसन उलटने का।

हमने निश्चय किया है, संकल्प लिया है कि पुण्य सलिला, पतित पावनी माता गंगाजी की सेवा में, उनके हितों की रक्षा के लिये, मकर संक्रांति, माघ कृष्ण सप्तमी संवत् 2068 विक्रमी (तदनुसार रविवार, 15 जनवरी 2012 ई.) से मांग पूर्ति तक ज्योतिष्पीठ के प्रतिनिधि द्वारा निरंतर अनशन करते हुए अपने प्राणों की आहुति देंगे (एक के बाद एक) देते रहेंगे। हमारी मांगें और कार्यक्रम की रूपरेखा साथ की सारणी-1 में दी गई है।

परमपूज्य गुरूदेव ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंनद सरस्वती जी महाराज गंगाजी की प्रमुख धाराओं की अविरलता को एवं सम्पूर्ण गंगाजी की निर्मलता को लेकर अत्यंत चिंतित हैं और हमारे प्रयासों में उनकी प्रेरणा, ऊर्जा और आशीर्वाद हमारे साथ हैं।

आपकी आंखें अब भी खुल जायें तो गंगा मां की आप पर कृपा होगी।

निवेदक


(अविमुक्तेश्वरानंन्दः सरस्वती ‘स्वामिश्रीः’)
सार्वभौम संयोजक गंगा-सेवा-अभियानम्

सारणी -1


हमारी चिंता के मुख्य कारण


1.गंगाजी को राष्ट्र-प्रतीक के अनुरुप महत्व, सम्मान, अतिविशिष्ट स्थान न दिया जाना।
2. गंगा-प्राधिकरण का दोषपूर्ण एवं लचर गठन, उसका पर्यावरण मंत्रालय के आधीन होना, पिछले तीन वर्षों में उसकी शून्य-निकट सक्रियता; गैर-सरकारी सदस्यों की अनदेखी, उनका निष्प्रभावी होना।
3. गंगाजी की विभिन्न धाराओं की अविरलता को नष्ट करने वाली बांध/बराज/सुरंग परियोजनाओं पर धड़ल्ले से चल रहे निर्माण कार्य। एक नई परियोजना को हाल ही में पर्यावरणीय हरी झंडी दिया जाना।
4. गंगाजी में न्यूनतम प्रवाह न बनाये रखा जाना, विशेषतया नरौरा से नीचे।
5. नगरीय तथा औद्योगिक अवजल उड़ेल रहे नालों पर नियंत्रण की दिशा में संतोषजनक पहल नहीं, विषाक्त रासायनिक अवजल पर भी नहीं।
6. सरकार की गंगाजी संबंधित मुद्दों पर संवेदनहीनता। जन-आंदोलनों, प्राधिकरण के गैर-सरकारी सदस्यों के पत्र, हमारे पत्रों के उत्तर तक नहीं।
7. पूज्य स्वामी निगमानंद जी की आहुति से सरकार के रवैये में कोई परिवर्तन न होना।

हमारी तात्कालिक मांगे


1. पंचप्रयागों की निर्मात्री अलकनंदा गंगा, विष्णु-गंगा, नंदाकिनी गंगा और मंदाकिनी गंगा जी पर निर्माणाधीन सभी परियोजनाएं तत्काल बंद/निरस्त हों। भविष्य में भी राष्ट्रीयनदी (अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी की मूलधाराओं सहित गंगासागर तक की मूलधारा) पर अविरलता भंग करने वाली कोई परियोजना न हों।
2. नरौरा से प्रयाग तक हर बिंदु पर, हर समय सदैव 100 घनमीटर/सेकेंड से अधिक प्रवाह रहे। माघमेला, कुंभ तथा पर्व-स्नानों पर न्यूनतम 200 घनमीटर/सेकेंड प्रवाह रखा जाये।
3. गंगाजी के नाम पर ऋण लेकर विभिन्न प्रकार के नगर उन्नयन कार्यों पर धन लुटाने/बांटने पर रोक लगे, चल रहे कार्यों को तुरंत बंद किया जाये और उनकी गहन समीक्षा हो। समीक्षा परियोजनाओं द्वारा गंगाजी को होने वाले लाभ की दृष्टी से हो।
4. विषाक्त रसायनों से प्रदूषित अवजल गंगाजी में या उनमें गिरने वाले नदी-नालों में डालने वाले उद्योगों को गंगाजी से कम से कम 50 किमी. दूर हटाया जाये। सुनिश्चित हो कि उनका अवजल प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी रूप में गंगा जी में न जाए।
5. गंगाजी को संवैधानिक रूप से राष्ट्रीय-नदी घोषित करने, पदोचित सम्मान देने और प्रबंधन के लिये समुचित, सक्षम, सशक्त बिल संसद द्वारा पारित हो।

हमारा तात्कालिक कार्यक्रम


भारत प्रमुख स्वामी ज्ञानस्वरूप ‘सानन्द’ जी द्वारा
1. मकर संक्रांति 2068 वि. के पूर्वदिन (14 जनवरी 2012) को गंगा-सागर में तपस्या का संकल्प
2. मकर संक्रांति से माघपूर्णिमा (15 जनवरी से 07 फरवरी 2012) तक माघ मेला प्रयाग में अन्न त्याग
3. फाल्गुन माह भर (08 फरवरी से 08 मार्च 2012 ) मातृ सदन हरिद्वार में फल त्याग
4. चैत्र कृष्ण प्रतिपदा (09 मार्च 2012) से श्रीविद्यामठ, वाराणसी में जल त्याग
शरीर जाने पर अन्य गंगा-भक्त द्वारा तपस्यारम्भ.......लक्ष्य प्राप्ति तक यही क्रम........

श्री शंकराचार्य गंगा सेवा न्यास के तत्वावधान में पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा आरब्ध सार्वभौम गंगा-सेवा-अभियानम्

सार्वभौम संयोजक : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती – शिष्य प्रतिनिधि- पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज

भारत प्रमुख : स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द (प्रो. जीडी अग्रवाल)

मुख्य कार्यालय – श्रीविद्यामठ, केदारघाट, वाराणसी – 221001 उ.प्र.)
दूरभाष – 0542-2450520, 2450362
मो. 09005485481 Email : gangaseva@gmail.com
Website: www.ganga-sevaa-abhiyaanam.org

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