Monday, 11 June 2012

वाराणसी। कुछ मौसम की मार तो कुछ प्रशासन की लापरवाही जिसके चलते प्रदेश की नदियां एक-एक कर सूखती जा रही है। धार्मिक नगरी वाराणसी की पहचान असि नदी तो पहले ही सूख कर नाले का रूप ले चुकी है और अब पौराणिक नदी वरुणा की बारी है। वरूणा का क्षेत्रफल लगातार घटता जा रहा है और यदि इस ओर ध्यान न दिया गया तो आने वाले कुछ समय में यह भी सूख जाएगी।
वाराणसी के लोगों के अनुसार शहर से दस किलोमीटर की दूरी पर वरूणा लगभग सूख जाती है। पूर्वांचल को हराभरा बनाने वाली गोमती, सई, पीली और गडई नदियों का भी यही हाल है। जल स्तर घट रहा है और नदियों की सफाई आदि न होने की वजह से उनका दायरा कम हो रहा है। इनमें से कुछ नदियों से तो धूल उड़ा रही है। वरुणा में भी अब केवल कीचड ही दिखायी दे रहा है जिसमें पानी की मात्रा नहीं के बराबर है।
इलाहबाद जिले की फूलपुर तहसील के मैलहन तालाब से निकलकर भदोही और जनपुर हाते हुए 162 किलोमीटर की यात्रा करके वरुणा वाराणसी पहुंचती है और बीच वाराणसी में गंगा में मिल जाती है। वरुणा नदी का अस्तित्व संकट में पडऩे का मुख्य कारण सीवरों का इसमें गिरना है। इसके अलावा वरुणा के दोनों तटों पर अतिक्रमण करके बहुमंजिली इमारतें बना ली गयी है। भदोही एवं आसपास के क्षेत्रों का कालीन का कचरा भी सीधे वरुणा में गिराया जा रहा है।
वाराणसी में तो करीब एक दर्जन गन्दे नाले वरुणा में गिर रहे हैं। वरुणा में गन्दगी का आलम यह है कि उसके निकट से गुजरने वाले नाक पर कपड़ा लगा लेते हैं। आदमी तो दूर पशु-पक्षी भी इसके पानी को पी नहीं सकते। गंगा की दुर्दशा से सभी परिचित हैं और उसकी निर्मलता तथा अविरलता के लिए आन्दोलन चल रहा है। कभी इन नदियों की बदौलत आबाद रहने वाली काशी अब पानी को तरस रही है। यही रफ्तार रही तो लोगों को निकट भविष्य में लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा।

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