वाराणसी : पौधरोपण व संरक्षण के प्रति शासन की उपेक्षा के चलते हालात इस
कदर अफसोसनाक हैं कि पिछले तीन वर्षो से शहर में पौधरोपण के लिए वन विभाग
को एक पैसा तक नहीं मिला। अधिकारी व कर्मचारी भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।
पेड़ कटते गए, लाए पौधे लगे नहीं, नई कॉलोनियां बसती गई यानी आबादी बढ़ी
लेकिन प्राणवायु प्रदान करने वाले पेड़ों की संख्या बढ़ाने के बजाय उन्हें
नुकसान पहुंचाया गया।
आखिर बचा क्या। पक्के मकान, पथरीली सड़कें और वीरानी। ऐसे में जीवन कैसे
बचेगा। यह सोचना सिर्फ सरकार का ही नहीं वरन आमजन का भी दायित्व है और इस
दिशा में शिद्दत से मंथन करना होगा। अब हालत यह है कि कैंट से लंका,
आशापुर, अलईपुर, कचहरी और लहरतारा-मड़ौली मार्ग पर वृक्षों की संख्या मात्र
25 से 50 के बीच सिमट गई हैं। ऐसा लगता है कि नगरीय क्षेत्र में
पेड़-पौधों का भारी अकाल है। शहर के चारों ओर कॉलोनियां बसीं लेकिन नियोजित
तरीके से विकास न होने के कारण वहां पौधरोपण पर ध्यान ही नहीं दिया गया।
भीषण गर्मी में पलभर के लिए पेड़ की छांव की तलाश बालू में पानी की खोज
सरीखी हो गयी है।
वन क्षेत्र विहीन वाराणसी
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2011 के अनुसार वाराणसी में वन क्षेत्र ही
नहीं है। शहर में औसतन एक हेक्टेयर में पेड़ लगे हैं। पौधरोपण में कोई
प्रगति नहीं है यानी वृक्षों की संख्या स्थिर है। वन संरक्षण आर हेमंत
कुमार कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में पौधरोपण के लिए बजट नहीं है। ग्रामीण
क्षेत्रों व हाईवे पर मनरेगा के तहत पौधे लगाए गए। शहर में पौधे लगाने की
जिम्मेदारी विकास प्राधिकरण व नगर निगम को सौंपी गई।
वैसे, मोहनसराय-इलाहाबाद मार्ग व बाईपास के निर्माण में हजारों पेड़ कटने
के बाद भी बनारस में वृक्षों की स्थिति यथावत है। विकास प्राधिकरण व नगर
निगम ने पिछले कई वर्षो से पौधरोपण की दिशा में कारगर कदम बढ़ाया ही नहीं।
निगम धन का रोना रोता रहा है तो प्राधिकरण ने जहां-तहां ट्री गार्ड के साथ
पौधे लगाने की औपचारिकता पूरी कर किनारा कस लिया।
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