Monday, 11 June 2012

दिल का चैन खा रही वरुणा






वाराणसी। वरुणा अब तटीय शहर में लोगों की रात की नींद और दिन का चैन खाने लगी है। घरों में दम घुटने, शुद्ध हवा न मिलने से तिल-तिल कर जीने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। वजह है बढ़ती आबादी के दबाव से नदी के आकार में चौड़ा होकर बहता बघवा नाला। अकेले इस नाले से प्रतिदिन 10 लाख लीटर से अधिक बहने वाली सीवर की धारा तटीय जन जीवन के लिए खतरे की घंटी साबित हो रही है। अवजल की इस बड़ी मात्रा को रोकने, शोधित करने के शीघ्र उपाय नहीं किए गए तो बड़ा संकट खड़ा होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
किसी जमाने में बरसाती पानी के निकास के तौर पर वरुणा से मिलने वाला बघवा नाला शहर के विस्तार के साथ ही अवजल निकास का जरिया बना गया। अब तो 40 से अधिक मोहल्लों का घरेलू डिस्चार्ज सीधे बघवा नाले से बहाया जा रहा है। नगर निगम के छह बड़े वार्डों में रमरेपुर, लालपुर, पांडेयपुर, खजुरी, नई बस्ती, हुकुलगंज की करीब डेढ़ लाख की आबादी का अवजल बहाने के लिए इस नाले के अलावा दूसरा माध्यम नहीं है। अगर प्रति व्यक्ति 50 लीटर पानी की खपत को आधार बनाया जाए तो सिर्फ साढ़े सात लाख लीटर घरेलू डिस्चार्ज बघवा नाला से होता है। साड़ी कारखानों, पीतल बर्तन उद्योग के अलावा चर्म शोधन केंद्रों से ढाई लाख लीटर भी रासायनिक अवजल की मात्रा का डिस्चार्ज माना जाए तो कुल 10 लाख लीटर अवजल प्रतिदिन वरुणा में मिल रहा है। इस तरह देखा जाए तो नगर निगम, जल संस्थान, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ही नहीं वरुणा को बेजान बनाने में पार इलाके के घर-घर के लोग जिम्मेदार माने जाएंगे। जल निकास पर प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च के बाद भी शहर के उत्तरी विस्तार में सीवरेज सिस्टम का अभाव सक्षम एजेंसियों के लिए गंभीर जांच का विषय बन सकता है। हुकुलगंज में बघवा नाले के पास रहने वाले राहुल, मुकेश सोनकर, मोहनचंद्र, प्रेम कुमार हालात बताते हुए रो पड़ते हैं। उनकी मानें तो इस उमस में हवा चलने पर खिड़कियां बंद न की जाएं तो दुर्गंध से दम घुटने लगता है। सिर्फ 15 साल पहले तक जहां इस इलाके के लोग खाना बनाने, प्यास बुझाने तक के लिए वरुणा पर ही निर्भर थे. वहीं अब उसमें कपड़े तक नहीं धोना चाहते।

गंगा की छोटी वहन मानी जाती है वरुणा

स्पर्श के भी योग्य नहीं रहा सहायक नदी का पानी 


*10 लाख लीटर अवजल रोज बघवा नाला से जा रहा है वरुणा में
*1.5 लाख की आबादी के घरेलू डिस्चार्ज का सीधा माध्यम है यह नाला
*50 से अधिक साड़ी कारखानों का रासायनिक कचरा भी गिरता है
*08 कारखाने पीतल के बर्तन, मूर्तियां और सिंहासन बनाने के हैं
*03 चर्म शोधन केंद्र भी चल रहे हैं गुपचुप तरीके से

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