Tuesday, 12 June 2012

‘वरुणा’ का अस्तित्व खतरे में



वाराणसी। पर्यावरणीय संकट के दौर से गुजर रहे देश में पूर्वांचल की एक नदी घाटी संस्कृति का आने वाले दिनों में नामोनिशान मिट सकता है। जी हां, गंगा पर शोर मचाने वालोंको यह जानकर झटका लगेगा कि वाराणसी की पहचान के तौर पर विख्यात वरुणा न सिर्फ डायलसिस पर पड़ चुकी है, बल्कि किसी भी समय उसका अस्तित्व खत्म हो सकता है। कसबों, गांवों, शहरों के बेतहाशा प्रदूषण, तटीय अतिक्रमण और सरकारी उपेक्षा के मकडज़ाल में घिरी इस नदी को बचाना कितना कठिन होगा इसे उसके दफन होते किनारों को देख समझा जा सकता है। माना जा रहा है कि इसे पुनर्जीवित करने के ठोस प्रयास जल्द शुरू नहीं हुए तो भोले की नगरी के पौराणिक, सांस्कृति महत्व को चौपट होने से रोका नहीं जा सकेगा।
पूर्वांचल की 162 किमी लंबी नदी घाटी को खत्म करने में सबसे बड़ा हाथ बेहद कमजोर और अनियोजित सीवर प्रणाली का माना जाएगा। ट्रांस वरुणा से लगे इलाकों में किनारों को पाट कर बहुमंजिली इमारतें खड़ी करने वाले कालोनाइजर और उनके संरक्षणदाताओं को इसके लिए कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। इलाहाबाद के मेल्हन से निकलकर जौनपुर होते हुए बढऩे वाली वरुणा भदोही में सर्वाधिक प्रदूषित हुई है। वहां कालीन उद्योग से निकलने वाले रासायनिक कचरे को नालों के जरिए नदी में बहाए जाने से ज्यादा दुर्गति हुई। उससे आगे सत्तनपुर से रामेश्वरम तीर्थ के बीच बस्तियों के नाले भी इसमें गिर रहे हैं। हालांकि वरुणा को सर्वाधिक झटका बनारस में कैंट के पास से लगना शुरू हो जाता है। वहां से आदि केशव घाट के पास सराय वरुणा मोहना तक छावनी क्षेत्र, पांडेयपुर और कचहरी इलाके के बड़े नालों के बहाव का वरुणा माध्यम बना दी गई है। छिछले नाले का रूप ले चुकी वरुणा में काला, बदबूदार अवजल इस कदर भरा है कि नदी के पेटे में तटीय बस्तियों के लोग झांकते तक नहीं। पशु-पक्षी भी प्यास बुझाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
  • 162 किमी लंबी वरुणा नदी अब पहचान खोने की कगार पर
  • 150 मीटर चौड़ा किनारा सिकुड़कर कहीं 17 तो कहीं 30 मीटर तक आ गया
  • 05 से अधिक शहरों, कसबों के नालों के बहाव का माध्यम बनी नदी
दुर्दशा के कारण
  • शहरों, बस्तियों में अवजल निकास की ठोस योजना का अभाव होना
  • नदी के बाढ़ प्रभावित इलाकों में किनारों का बेतहाशा अतिक्रमण
  • तटवर्ती तालाबों, पोखरों और जोहड़ों का पाटा जाना
  • तटीय इलाके में कंक्रीट के विस्तार के चक्कर में जल संचय करने वाले पेड़ों की कटान
  • वरुणा बेसिन में बगीचों का खत्म होना

No comments: