वाराणसी। सदानीरा के सिरहाने बसे शहर और उसके आंचल में कल्लोल करती वरुणा व असि नदियां, लुप्त होने के बाद भी अनेक कुंड और सरोवरों से घिरी काशी का कंठ पानी के लिए सूखने लगा है। अचरज यह भी है कि कभी नदी, नद नालों व विभिन्न जल धाराओं वाले घिरे रहने वाली प्राचीन नगरी की जलभरी कोख प्रदूषण की भेंट चढ चुकी है।
गंगा और वरुणा नदियों के प्रवाह की अनदेखी से जहां इन नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र (इको सिस्टम) असंतुलित होता जा रहा है वहीं शहर के गिरते भूजल स्तर से निर्जलीकरण के हालात बनते जा रहे हैं। नदी, कुंड सरोवरों पर कब्जे और कुदृष्टि भी निर्जलीकरण के महत्वपूर्ण कारण रहे हैं।
विशेषज्ञ लगातार चेता रहे हैं कि गंगा और वरुणा के सूखने से भूमिगत जल के रिसाव की गति नदियों की ओर बढती जा रही है जो बडे खतरे का संकेत है। सूखते कुएं, जवाब देते हैंडपंप, रिबोर की जरूरत महसूस कर रहे ट्यूबवेल इस बात के संकेत हैं कि जिस गति से पानी नीचे जा रहा है उसी अनुपात में जमीन के नीचे मृदाक्षरण भी बढता जा रहा है। भूजल विभाग की रिपोर्ट कहती है कि पिछले वर्ष बरसात के पूर्व जहां भूमिगत जलस्तर औसतन 21 से 24 मीटर के बीच था वहीं इस वर्ष औसतन 22 से 25.20 के बीच आंका गया।
क्या है इको सिस्टम-जैविक-अजैविक पदार्थो के बीच संतुलन बनाना ही पारिस्थितिकी तंत्र है। नदी में पानी की मात्रा, उसका बहाव, जीव-जंतु और बेसिन क्षेत्र की वनस्पतियां मिल कर एक वातावरण तैयार करते हैं जिसे हम नदी का इकोसिस्टम अथवा पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। साइंस जैविक पदार्थ की श्रेणी में वनस्पति और जीव-जंतु को रखता है तो अजैविक में पानी, मिट्टी और हवा को।
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Tuesday, 12 June 2012
ओह! काशी का भी कंठ सूखा
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