Wednesday 6 June, 2012

काशी की हरियाली पर डाका




*डॉ. शैलेन्द्र भारती, वाराणसी
                                  काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) ,डीजल इंजन रेल कारखाना(डीरेका) और छावनी क्षेत्र से गुजरते ही मनभावन हरियाली दिल को बाग -बाग कर देती है लेकिन इन क्षेत्र विशेष को जोड़ने वाले मार्गो से गुजरिए तो मंजर बदला नजर आता है। यूं लगता है मानों कंक्रीट के तपते जंगल में सफर तय हो रहा हो। कैंट-बीएचयू मार्ग, कैंट-कचहरी समेत नगर की तमाम सड़कें वृक्षहीन हैं। कहीं भी ऐसे पेड़ नहीं जिनके तले छांव मिले, ठांव मिले। बीएचयू, डीरेका व छावनी परिषद क्षेत्र की हरियाली उनका नितांत निजी प्रयास है। दूसरी ओर शहर को हरा भरा रखने की जिम्मेदारी प्रशासन की है। वन विभाग, वीडीए व नगर निगम के पौधरोपण के दावे यहां पूर्णत: खोखले साबित हो रहे हैं। तकरीबन पांच किमी लंबे कैंट-बीएचयू मार्ग पर करीब 52 वृक्ष हैं। अर्थात एक किमी में लगभग 10 पेड़। इस अति व्यस्त सड़क पर पेड़ों की संख्या यूं ही घटती रही तो आने वाले दिनों में तपिश व पर्यावरणीय क्षरण की कल्पना की जा सकती है। कैंट, विद्यापीठ, सिगरा, रथयात्रा, कमच्छा, भेलूपुर, दुर्गाकुंड, संकटमोचन, लंका मार्ग पर बने डिवाइडर पर कहीं-कहीं झाड़ी जैसे पौधे दिखाई पड़ते हैं। कहीं गमलों में तो कहीं डिवाइडर पर लगे पौधे मानो हर आने-जाने वाले से मांगते हैं पानी। दशा यह है कि जल्द ही इन पौधों को पानी नसीब नहीं हुआ तो उन्हें सूखने से कोई नहीं रोक सकता। इस मार्ग के दोनों ओर स्थित पार्क, स्कूल और कार्यालय परिसर में कुछ पेड़ जरूर दिखते हैं लेकिन उनमें भी अधिकांश को कई दिनों से पानी नहीं मिला। तीन किमी के कैंट-मैदागिन मार्ग पर पेड़ों का अकाल है। इसके दोनों ओर ईट, सीमेंट व बालू से बने मकान ही हैं। भारतीय शिक्षा मंदिर के पास तीन वृक्ष हैें। काशी अनाथालय व लहुराबीर चौराहे के समीप भी आधा दर्जन पेड़ों के दर्शन होते हैं। आगे बढ़ने पर पिपलानी कटरा तक सन्नाटा है। लोहटिया में भी तीन-चार पेड़ हैं। मैदागिन चौराहे व उसके आगे दो चार वृक्ष मिल जाएंगे। सड़क के डिवाइडर भी झाडि़यों से हीन हैं। इस सड़क के दोनों ओर पड़ने वाले बगीचे, स्कूल व भवनों में जरूर पेड़ हैं लेकिन उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। साफ लगता है कि कभी हरा-भरा आनंद वन कहा जाने वाला बनारस कंक्रीट का जंगल बन चुका है। सबको मालूम है कि पेड़ नहीं रहेंगे तो वातावरण शुद्ध नहीं रहेगा। अगर ऐसा हुआ तो मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा फिर भी इतनी लापरवाही। पूरा शहर तप रहा है। वृक्ष होते तो इस भीषण गर्मी में कुछ शीतलता जरूर होती, पर्यावरण शुद्ध होता, लोगों को राहत होती, अफसोस प्रशासनिक उदासीनता के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा।

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