Monday, 11 June 2012

मोरवा व वरुणा लड़ रही अस्तित्व की जंग

: भारत सरकार भले ही गंगा जैसी बड़ी नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है लेकिन अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही वरुणा व मोरवा जैसी छोटी नदियों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है।
मैली गंगा को साफ करने के नाम पर प्रतिवर्ष अरबों रुपये पानी में बहाए जा रहे हैं। अन्य बड़ी नदियों को लेकर भी केंद्र सरकार सजगता बरत रही है, ताकि भविष्य में इन नदियों का अविरल प्रवाह कहीं थम न जाए लेकिन जनपद के हृदय से बहने वाली मोरवा व वरुणा जैसी छोटी नदियां अपने अस्तित्व के संघर्ष की लड़ाई खुद लड़ रही हैं। इन नदियों में जगह-जगह हो रहे अवैध खनन के कारण कुछ स्थानों पर नदी का नामोनिशान ही मिट गया है। बारिश के दिनों में इन नदियों का पानी फैल कर बहता है, जबकि गर्मी के दिनों में पशु-पक्षियों को भी इनमें पानी तलाश करना पड़ता है। ढाई से तीन दशक पहले यह दोनों नदियां पशुओं को नहलाने व पानी पिलाने में गर्मी के मौसम अहम भूमिका निभाया करती थीं।
स्थानीय प्रशासन अथवा शासन स्तर से इन नदियों को बचाने की दिशा में कोई कारगर प्रयास नहीं किया गया। वैसे भी अवर्षा के चलते इन नदियों में जलधारा का अभाव रहता है, जबकि इधर-उधर से बहकर पहुंचने वाला थोड़ा बहुत पानी भी गंगा नदी में निकल जाता है। शासन स्तर से इन छोटी नदियों में बंधी का निर्माण कर जल संरक्षण की कवायद शुरू की जा सकती है। नदियों में पानी का सरंक्षण सुनिश्चित कर पानी को सिंचाई के काम में लाया जा सकता है बशर्ते इसके लिए सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा।

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