Saturday, 16 June 2012

यूपी की एक दर्जन नदियों का अस्तित्व खतरे में

पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ता जा रहा है जल संकटवाराणसी (डीएनएन)। प्रदूषण और अंधाधुंध दोहन से पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक दर्जन नदियां मृतप्राय हो चुकी है और जो बची हैं उनका भी अस्तित्व खतरे में है। इनमें अधिकतर गंगा एवं यमुना की सहायक नदियां हैं। जल ही जीवन है और पानी बचाओ जैसे नारे बेमानी हो चुके हैं। इन नदियों के प्रति न तो सरकार और न जनता जागरूक है। नदियां प्रदूषण से कराह रही हैं। इनका अंधाधुंध दोहन जारी है। शहरों का गंदा जल एवं कारखानों का कचरा इन नदियों में बेरोक टोक गिर रहा है। गंगा एवं यमुना समेत तमाम नदियां या तो प्रदूषण की मार झेल रही हैं या सूखने की त्रासदी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जल संकट बराबर बढ़ता जा रहा है। नदियों से मनुष्य का नाता किसी से छुपा नहीं है। पीने के पानी, नहाने, धोने से लेकर सिचाई तक आदमी नदियों पर निर्भर है। यहां तक कि सारे संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठान नदियों के किनारे सम्पन्न होते हैं। धार्मिक नगरी वाराणसी में गंगा प्रदूषण के चलते काली पड़ गयी है। उनका बहाव नाम मात्न को रह गया है। अब तो हाल यह है कि लोग गंगा स्नान करने से कतराने लगे हैं। वरुणा एवं अस्सी जिनके योग से वाराणसी नाम पड़ा नाले के रुप में परिवति॔त हो चुकी है। इन दोनों नदियों में पानी कम कचरा अधिक नजर आता है। उधर से गुजरने वाले लोग बदबू के चलते नाक पर कपड़ा रखने को मजबूर होते हैं। असी नदी में शहर के बड़े हिस्से का गंदा पानी बह रहा है। वरुणा में बड़े-बड़े गन्दे नाले बेरोकटोक गिर रहे हैं। नदी के दोनो किनारों पर अवैध कब्जा कर अट्टालिकाएं बन रही है। कालोनियों का सारा गंदा पानी नदी में गिर रहा है यही नही शहर का सारा कचरा इनके किनारों पर डाला जा रहा है। जौनपुर में भी पीली एवं सई नदी प्रदूषण की मार झेल रही है। गोमती नदी की हालत भी खस्ता है। इलाहाबाद में यमुना एवं गंगा में दर्जनों गंदे नाले गिर रहे हैं। फैजाबाद मे बहने वाली मडहा एवं विषही नदियों में बरसात को छोड़ अन्य दिनों में पानी नही रहता। सिल्ट जमा होने के कारण दोनों नदियां छिछली हो गयी है। रामचरित मानस में वíणत तमसा नदी का भी वजूद खतरे में हैं। मिर्जापुर में खतुही नदी सूखने के कगार पर है। सोन नदी भी सिकुड़ कर नाला बन गयी है। इन नदियों के सूखने से जल स्तर तेजी से घट रहा है। गर्मी शुरु होते ही हैन्डपम्प कुएं एवं नलकूप सूख जाते हैं। नदियों को आपस में जोडने की बात तो होती है पर अमल में नही लाया जाता। सैकड़ों गांवों की प्यास बुझाने वाली गाजीपुर की मन्गई नदी में गर्मी आते आते इतना भी पानी नहीं बचता की खुद अपनी प्यास बुझा सके। मई जून में तो इसकी तलहटी में धूल उड़ती है। पर्यावरणविदों का कहना है कि समय रहते हम नही चेते तो गंगा यमुना का यह क्षेत्र न केवल भयंकर जल संकट से जूझेगा बल्कि देश की सांस्कृतिक पहचान ये नदियां इतिहास के पन्नों की चीज रह जाएगी एवं हरा भरा मैदान रेगिस्तान में बदल जाएगा।

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