वाराणसी। वरुणा के कारुणिक हालात पर्यावरण प्रेमियों को स्याह कर देंगे। त्रेता युग में जहां कभी भगवान राम ने पड़ाव डाला था, उस रामेश्वर तीर्थ से लगे इलाकों में पांच स्थानों पर वरुणा जलराशि विहीन होकर खेल का मैदान बन गई है। भूगर्भीय जलस्रोतों के दबकर नष्ट होने से कई मुसीबतें पैदा हो गई हैं। तटवर्ती बस्तियों के तालाब-पोखरे सूख गए हैं तो कुओं का पानी सड़न के चलते पीने लायक नहीं है। इसके चलते पेयजल संकट गहरा गया है। वाटर रिचार्जिगिं की दिशा में शीघ्र कदम नहीं उठाए गए तो पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस जाएंगे।
रामेश्वर तीर्थ के पास ही वरुणा काशी में प्रवेश करती है। यहां कोरौत नाले के अलावा आधा दर्जन से अधिक बस्तियों का भी अवजल वरुणा में जहर घोलता रहा है। जगह-जगह सूख चुके नदी के पेटे देख कोई भी सिहर जाएगा। यह गुनाह किसने किया? आखिर किन वजहों से जीवनदायिनी नदी अस्तित्व खोने के कगार पर चली गई? ऐसे तमाम सवाल अनसुलझे हुए हैं। न जनता यह गुनाह कबूलने को तैयार है और प्रशासन। रसूलपुर, औसानपुर, तेंदुई, रामेश्वर, लच्छीपुर घाटों पर पानी न होने से बच्चे गिल्ली-डंडा खेलने लगे हैं। वहीं तटीय इलाकों में जलस्रोत मिटने से जग्गापट्टी, पांडेयपुर, परसीपुर, खंडा, इंदरपुर, अनौरा एवं चक्का जैसी डेढ़ सौ से अधिक बस्तियों में पेयजल संकट गहरा गया है। कुएं प्रदूषित हो गए हैं। हैंडपंपों का पानी खिसक कर नीचे चला गया है। खास बात यह है कि इन बस्तियों के लोग सिंचाई, पेयजल, पशुपालन से लेकर कर्मकांड तक के लिए वरुणा पर ही निर्भर हैं। नदी को पुनर्जीवित करने के उपाय न हुए तो वरुणा कहानी-किस्सा का हिस्सा बन जाएगी।
*05 स्थानों पर रामेश्वर तीर्थ के बाद सूख गई नदी
*150 से अधिक तटीय बस्तियों में पानी को लेकर चिंता बढ़ी
*20 से ज्यादा तालाब-पोखरे सूखने से बढ़ गई है मुसीबत
मंत्री का भरोसा टूटने से जनता के तेवर तल्ख
रामेश्वर। वरुणा की दुर्दशा पर जहां इलाके की जनता चिंतित है, वहीं लोक निर्माण एवं सिंचाई राज्य मंत्री सुरेंद्र पटेल की पहल बेकार जाने से आमजन के तेवर तल्ख हो गए हैं। नागरिकों की गुहार पर मंत्री ने फोन पर भरोसा दिलाया था कि लिफ्ट कैनाल से वरुणा में पानी भरवा दिया जाएगा लेकिन अफसरों को या तो जानकारी नहीं मिली या फिर उन्होंने जानबूझकर नदी की रिचार्जिगिं पर अमल नहीं किया।
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